समाजखेल पिच पर बराबरी की लड़ाई: भारतीय महिला क्रिकेट का इतिहास और सफर

पिच पर बराबरी की लड़ाई: भारतीय महिला क्रिकेट का इतिहास और सफर

भारत ने अपना पहला महिला क्रिकेट विश्व कप 1978 में खेला। अब 1978 के विश्व कप के बाद से भारतीय महिला टीम के लिए परिस्थितियां धीरे-धीरे बेहतर होने लगीं। 1979 से भारतीय महिला टीम ने नियमित रूप से क्रिकेट खेलना शुरू किया न केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बल्कि घरेलू स्तर पर भी।

भारत में क्रिकेट सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि एक जुनून है जिसमें लंबे समय तक पुरुषों का ही बोलबाला रहा है। महिलाओं के लिए क्रिकेट का मैदान समान अवसरों से नहीं, बल्कि संघर्षों और चुनौतियों से भरा रहा। जहां एक ओर पुरुष क्रिकेट खिलाड़ियों को नाम, पैसा और पहचान मिलती रही, वहीं दूसरी ओर महिला खिलाड़ियों को अपनी मौजूदगी साबित करने के लिए भी लड़ना पड़ा। भारत की महिला क्रिकेट खिलाड़ियों ने तमाम बाधाओं को पार कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। क्रिकेट जैसे पुरुष प्रधान खेल में लैंगिक समानता की दिशा में यह एक ऐतिहासिक कदम था, जब बीसीसीआई ने महिला क्रिकेट खिलाड़ियों के लिए समान मानदेय की घोषणा की थी। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी की इस समानता तक पहुंचने के लिए भारतीय महिला क्रिकेट टीम को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर एक लंबे संघर्ष से गुजरना पड़ा है।

भारतीय महिला क्रिकेट टीम को अपने पहले अंतरराष्ट्रीय टेस्ट मैच खेलने के लगभग 30 साल बाद वर्ष 2006 में आधिकारिक रूप से बीसीसीआई में एक भारतीय महिला क्रिकेट टीम के तौर पर शामिल किया गया क्योंकि उन दिनों भारत में महिला और पुरुष क्रिकेट के लिए अलग-अलग एसोसिएशन हुआ करती थीं। महिला क्रिकेट, वुमन्स क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के तहत संचालित होता था। ऐसा माना जाता है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी बीसीसीआई में मिलने के बाद से महिला क्रिकेट की स्थिति में सुधार हुआ। यह संघर्ष और इंतजार केवल संगठनात्मक नहीं था बल्कि संसाधनों, अवसरों और पहचान की लड़ाई भी थी। इसमें महिला क्रिकेट टीम ने बनने के प्रारम्भिक वर्षों से लेकर एक लंबे समय तक बिना पर्याप्त वित्तीय और बुनियादी ढांचे के समर्थन के बाबजूद भी महिला क्रिकेट को जीवित रखा और दुनिया भर में एक अलग मुकाम हासिल किया। अपने बेहतरीन प्रदर्शन और निरंतर संघर्ष से सामाजिक और राजनीतिक सोच में बदलाव लाकर यह साबित कर दिया कि क्रिकेट सिर्फ पुरुषों का खेल मात्र नहीं हैं। 

भारतीय महिला क्रिकेट टीम को अपने पहले अंतरराष्ट्रीय टेस्ट मैच खेलने के लगभग 30 साल बाद वर्ष 2006 में आधिकारिक रूप से बीसीसीआई में एक भारतीय महिला क्रिकेट टीम के तौर पर शामिल किया गया।

संघर्षों से भरी शुरुआत

तस्वीर साभार : Chase Your Sport

भारत में महिला क्रिकेट टीम की शुरुआत साल 1973 में वुमन्स क्रिकेट एसोसिएशन इन इंडिया यानि डब्लूसीएआई के गठन के साथ हुई थी। महेंद्र कुमार शर्मा के प्रयासों से साल 1973 में वुमन्स क्रिकेट एसोसिएशन इन इंडिया अस्तित्व में आया। इस शुरुआत के साथ महिला क्रिकेट आगे बढ़ा, 1970 का दशक भारतीय महिला क्रिकेट के लिए एक महत्वपूर्ण समय था । साल 1976 में भारतीय महिला क्रिकेटरों ने वेस्ट इंडीज महिला टीम के खिलाफ अपना पहला टेस्ट सीरीज मैच खेला।

इस सीरीज़ में कुल छह टेस्ट हुए और प्रत्येक मैच तीन दिन का था। पटना में जो मैच भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने शांता रंगास्वामी की कप्तानी में खेला और जीता था, उसे देखने के लिए 25,000 दर्शक शामिल हुए थे। आज के समय में यह संख्या सामान्य लग सकती हैं पर यह वह समय था जब 1983 का विश्व कप भी नहीं हुआ था। ऐसे में महिलाओं के मैच में इतने ज्यादा दर्शकों की उपस्थिति एक बहुत बड़ी बात थी।

साल 1976 में भारतीय महिला क्रिकेटरों ने वेस्ट इंडीज महिला टीम के खिलाफ अपना पहला टेस्ट सीरीज मैच खेला। इस सीरीज़ में कुल छह टेस्ट हुए और प्रत्येक मैच तीन दिन का था।

भारत ने अपना पहला महिला क्रिकेट विश्व कप साल 1978 में खेला। साल 1979 से अंतरराष्ट्रीय और घरेलू स्तर पर भारतीय महिला टीम ने नियमित रूप से क्रिकेट खेलना शुरू किया। डब्लूसीएआई ने यह सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी ली कि भारत में लड़कियों के लिए अधिक से अधिक क्रिकेट मैच आयोजित किए जाएं। हालांकि  समस्या यह थी कि डब्लूसीएआई एक स्व-वित्तपोषित संस्था थी जो महिला टीम की देखरेख कर रही थी। इसलिए, साल 1986 से 1991 के बीच भारतीय महिला टीम ने एक भी अंतरराष्ट्रीय मैच नहीं खेला क्योंकि उनके पास पैसे नहीं थे।

भारत के पहली विश्व कप में निराशाजनक प्रदर्शन के 19 साल बाद साल 1997 में एक और महिला विश्व कप आयोजित हुआ जिसकी मेज़बानी भारत ने की। इसे हीरो होंडा महिला विश्व कप 1997 भी कहा जाता है। भारत ने इस विश्व कप में सेमी फाइनल तक अपनी जगह बनाई। उस समय महिला टीम की हालत उतनी अच्छी नहीं थी। जितनी कि होनी चाहिए थी। भले ही टीम सेमीफाइनल तक पहुंची लेकिन कोई भी व्यक्ति साइट स्क्रीन को हिलाने के लिए मौजूद नहीं था। साल 1998 से 2002 के बीच का समय भारतीय महिला क्रिकेट के लिए बहुत खास था। इस दौर में कई घरेलू टूर्नामेंट भी आयोजित किए गए। उदाहरण के लिए 1999 में एक अंतर-क्षेत्रीय टूर्नामेंट रानी झांसी टूर्नामेंट खेला गया। जिसमें कुल छह टीमों ने हिस्सा लिया और कुल 15 मैच खेले गए।

भारत ने अपना पहला महिला क्रिकेट विश्व कप 1978 में खेला। साल 1978 के विश्व कप के बाद से भारतीय महिला टीम के लिए परिस्थितियां धीरे-धीरे बेहतर होने लगीं। साल 1979 से भारतीय महिला टीम ने नियमित रूप से क्रिकेट खेलना शुरू किया न केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बल्कि घरेलू स्तर पर भी।

संघर्ष से सम्मान तक का सफर 

तस्वीर साभार : India Today

 साल 2003 से 2006 का समय भारत में महिला क्रिकेट के लिए मुश्किलों से भरा था। इसी समय एशिया कप की शुरुआत भी हुई। साल 2004 में खेले गए पहले एशिया कप में केवल दो टीमों भारत और श्रीलंका ने हिस्सा लिया और भारत ने श्रीलंका को 5-0 से हराया। वहीं, साल 2005 में भारत ने पहली बार महिला क्रिकेट विश्व कप के फाइनल में प्रवेश किया। इस समय तक आईसीसी महिला क्रिकेट की ज़िम्मेदारी नहीं संभालता था, बल्कि आईडब्ल्यूसीसी नामक एक अलग संस्था थी जो महिला क्रिकेट टूर्नामेंट्स का संचालन करती थी।

हालांकि साल 2005 में आईडब्ल्यूसीसी का आईसीसी के साथ मर्ज हो गया और आईसीसी ने दुनिया भर के क्रिकेट बोर्ड्स से भी ऐसा ही करने को कहा यानि महिला और पुरुष क्रिकेट के बोर्ड्स का एकीकरण। उस समय का वुमेन्स क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ इंडिया उन अंतिम प्रमुख बोर्ड्स में से एक था जिसने खुद को आईसीसी से जोड़ा। इन उपलब्धियों के पीछे के संघर्ष को देखें तो टीम के लिए शुरुआती दिन काफी मुश्किलों से भरे थे ।

2004 में खेले गए पहले एशिया कप में केवल दो टीमों भारत और श्रीलंका ने हिस्सा लिया और भारत ने श्रीलंका को 5-0 से हराया। 2005 में भारत ने पहली बार महिला क्रिकेट विश्व कप के फाइनल में प्रवेश किया। 2005 तक का समय महिला क्रिकेट के लिए एक दिलचस्प दौर था न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में।

बीसीसीआई के साये में संघर्ष

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नवंबर 2006 में डबल्यूसीआई को बीसीसीआई में शामिल कर लिया गया और तभी से बीसीसीआई भारत में महिला क्रिकेट का केंद्रीय संचालन बोर्ड बन गया। हालांकि यह प्रक्रिया बिल्कुल भी आसान नहीं थी। बीसीसीआई ने इस एकीकरण का काफी विरोध किया। आईसीसी की कई चेतावनियों के बाद जाकर बीसीसीआई ने डब्ल्यूसीआई को स्वीकार किया। बीसीसीआई के इस विरोध को हम बीबीसी की रिपोर्ट में प्रकाशित भारत की पूर्व कप्तान डायना एडुलजी के एक बयान से समझ सकते हैं, वह बताती हैं कि भारतीय क्रिकेट बोर्ड के एक चुने हुए अध्यक्ष ने उनसे कहा था कि अगर मेरा बस चलता तो मैं महिला क्रिकेट होने ही नहीं देता। डब्ल्यूसीआई के संचालन में विकसित हो रही महिला क्रिकेट टीम, बीसीसीआई के अंतर्गत इंग्लैंड में टेस्ट मैच खेला। इस टेस्ट मैच में भारत ने इंगलेंड को हराकर टेस्ट मैच जीता। एशिया कप में भारत की लगातार जीतों के अलावा देखा जाए तो कुछ प्रदर्शन बहुत अच्छे नहीं रहे और इसके लिए काफी हद तक बीसीसीआई को दोषी ठहराया जा सकता है।

इसका एक बड़ा कारण यह था कि उस समय महिला टीम को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत कम मैच खेलने दिए जाते थे। बीसीसीआई महिला क्रिकेट के विकास को लेकर बहुत गंभीर नहीं था। इसके बाबजूद भारतीय महिला क्रिकेट टीम को एक बार फिर इंग्लैंड जाने का मौका मिला और वहां साल 2014 में खेले गए एकमात्र टेस्ट मैच में इंग्लैंड को हरा दिया। इस टेस्ट में इंग्लैंड की पहली पारी को सिर्फ 92 रनों पर समेट दिया गया और भारत ने 6 विकेट से जीत हासिल की। यह जीत कई मायनों में ऐतिहासिक थी क्योंकि उस मैच में भारत की ओर से खेलने वाली 11 खिलाड़ियों में से 8 का यह पहला टेस्ट मैच था। बीसीसीआई के साथ होकर इस नए दौर में भी, महिला क्रिकेट में बहुत सी असमानताएं थी जैसे कि महिला क्रिकेट टीम के खिलाड़ियों को पुरुष खिलाड़ियों के स्पॉन्सर के बनाए गए ड्रेस में से बाक़ी बचे कपड़ों में खेलना होता था। 

बीसीसीआई के अंदर होकर भी महिला क्रिकेट में एक नए दौर में भी बहुत सी असमानताएं थी जैसे कि महिला क्रिकेट टीम के खिलाड़ियों को पुरुष खिलाड़ियों के स्पॉन्सर के बनाए गए ड्रेस में से बाक़ी बचे कपड़ों में खेलना होता था। 

सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट से कॉमनवेल्थ तक का सफर 

तस्वीर साभार : India TV

साल 2015 में पहली बार बीसीसीआई ने महिला क्रिकेटरों को सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट दिए। यह एक सही दिशा में बड़ा कदम था क्योंकि उससे पहले महिला खिलाड़ी केवल दैनिक भत्ते और मैच फीस पर निर्भर थीं। यह इसलिए भी ऐतिहासिक था क्योंकि दुनिया के 8 क्रिकेट बोर्डों में भारत ही एकमात्र ऐसा देश था जहां महिलाओं के लिए कोई केंद्रीय वेतन प्रणाली मौजूद नहीं थी। इसी दौर में आज जो नियमित घरेलू टूर्नामेंट हम देखते हैं जैसे सीनियर वुमेन्स ओ डी आई ट्रॉफी और सीनियर वुमेन्स टी -20 ट्रॉफी उनकी शुरुआत हुई। महिला क्रिकेट में स्प्लिट कैप्टेंसी (विभाजित कप्तानी) का भी दौर शुरू हुआ। साल 2016 में भारत ने पहली बार महिला टी-20 विश्व कप की मेज़बानी की और सबसे यादगार वर्ष 2017 रहा खासकर उस विश्व कप का सेमीफाइनल महिला क्रिकेट का अब तक का सबसे ज़्यादा देखा गया फाइनल मैच था। 

सिर्फ भारत में ही इस वर्ल्ड कप को लगभग 15.6 करोड़ लोगों ने देखा जिससे टीवी व्यूअरशिप में जबरदस्त उछाल आया। इसके बाद वह समय था जब पहली बार टी-20 चैलेंज टूर्नामेंट का आयोजन हुआ और भारत ने साल 2020 के टी-20 विश्व कप में भी बेहतरीन प्रदर्शन किया। इस मैच को एमसीजी में 86,000 लोगों ने देखा जो कि एक रिकॉर्ड था। साल 2017 के वीमेंस वर्ल्ड कप और 2020 के टी-20 वर्ल्ड कप में भारतीय टीम फ़ाइनल तक पहुंची । इस कामयाबी से भारतीय खिलाड़ियों को और ज़्यादा एक्सपोज़र मिला। भारत की शीर्ष महिला खिलाड़ियों को वीमेंस बिग बैश टूर्नामेंट और इंग्लैंड में के सुपर लीग और वीमेंस हंड्रेड में खेलने का मौक़ा मिला। साल 2022 में भारतीय टीम ने राष्ट्रमंडल खेलों में सिल्वर मेडल जीता। यह एक ऐसा टूर्नामेंट था जिसमें केवल महिला क्रिकेट टीम ने भाग लिया था। यह साल भारतीय क्रिकेट के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ भी था क्योंकि साल 2022 में पुरुषों और महिलाओं की टीमों को समान मैच फीस मिलनी शुरू हुई।

साल 2016 में भारत ने पहली बार महिला टी-20 विश्व कप की मेज़बानी की और सबसे यादगार वर्ष 2017 रहा खासकर उस विश्व कप का सेमीफाइनल महिला क्रिकेट का अब तक का सबसे ज़्यादा देखा गया फाइनल मैच था। सिर्फ भारत में ही इस वर्ल्ड कप को लगभग 15.6 करोड़ लोगों ने देखा जिससे टीवी व्यूअरशिप में जबरदस्त उछाल आया।

डब्ल्यूपीएल एक नई पहल और कायम जेंडर गैप 

तस्वीर साभार : NDTV Sports

बीबीसीआई के संचालन में साल 2023 में डब्ल्यूपीएल यानि महिला प्रीमियर लीग अस्तित्व में आई। इंडियन प्रीमियर लीग की शुरुआत साल 2007 में हुई थी लेकिन अब तक महिलाओं के लिए ऐसी लीग की शुरुआत नहीं हो सकी थी। इस पर भारतीय महिला टीम की कप्तान हरमनप्रीत कौर ने खुशी जाहीर करते हुए कहा था कि डब्ल्यूपीएल भारत में महिला क्रिकेट के लिए सिर्फ़ गेम चेंजर नहीं है, बल्कि एक क्रांति है और भारतीय महिला क्रिकेट के लिए रोमांचक समय आने वाला है। महिला क्रिकेट टीम इस नई लीग को लेकर क्रिकेट विशेषज्ञों का मानना हैं कि इस नई शुरुआत से क्रिकेट दूर-दराज के इलाकों में लोकप्रिय होगा और युवा महिला क्रिकेटरों तक पहुंचेगा। इसके माध्यम से महिला क्रिकेट की टीवी कवरेज और लोगों के बीच लोकप्रियता बढ़ेगी।

 इस नई शुरुआत से महिला क्रिकेट की लोकप्रियता बढ़ना इतना आसान बात नहीं हैं क्योंकि अभी भी जेंडर गैप की समस्या बरकरार हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि डब्ल्यूपीएल में महिला क्रिकेटरों और आईपीएल में पुरुष क्रिकेटरों को मिलने वाले पैसों के बीच काफी अंतर है। यह अंतर इसलिए क्योंकि डब्ल्यूपीएल और आईपीएल दोनों में खिलाड़ियों को मिलने वाले पैसे फ्रेंचाइज़ी मालिकों की ओर से मिलने वाले नीलामी के पैसों पर निर्भर करता है। इस संदर्भ में क्रिकेट विशेषज्ञों और खिलड़ियों का मानना हैं कि बाजार की कीमत के हिसाब से जेंडर गैप को तभी खत्म किया जा सकता है जब डब्ल्यूपीएल की क्रिकेट बाजार में वैसी ही कीमत बन जाए जैसी आईपीएल की है। 

 इस नई शुरुआत से महिला क्रिकेट की लोकप्रियता बढ़ना इतना आसान बात नहीं हैं क्योंकि अभी भी जेंडर गैप की समस्या बरकरार हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि डब्ल्यूपीएल में महिला क्रिकेटरों और आईपीएल में पुरुष क्रिकेटरों को मिलने वाले पैसों के बीच काफी अंतर है।

मैच फीस में लैंगिक असमानता

भारतीय महिला क्रिकेट की दुनिया भर में एक अलग पहचान है। वह समय और था जब महिला क्रिकेट को पुरुषों की उदारता वाली नजर से देखा जाता था । हालांकि इतने सालों के बाद महिला क्रिकेट में लैगिंक समानता के लिए जैसे मैचों में समान फीस और डब्ल्यूपीएल जैसे कदम उठाएं गए हैं। इसके बावजूद अनदेखी संस्थागत असमानताएं अभी भी हैं। हम इसे बीबीसीई के समान मैच फीस की घोषणा के बाद भारत की पूर्व कप्तान डायना एडुल्जी के बयान से समझ सकते हैं। वह मानती है कि यह एक अच्छा कदम है लेकिन महिला क्रिकेटरों को पहले से भी अधिक मैच खेलने की ज़रूरत है। यह एक सच हैं कि समान मैच फीस तो हैं लेकिन महिला क्रिकेट टीम पुरुष क्रिकेट टीम के तुलना में बहुत कम क्रिकेट मैच खेलती हैं। अगर डब्ल्यूपीएल में जेंडेर गैप को देखे इसमें भी हम दोनों टीम द्वारा खेले जाने वाले मैचों में एक बड़ी असमानता को देख सकते हैं। हम देख सकते हैं कि कैसे आईपीएल के मुकाबले डब्ल्यूपीएल के दर्शक कम हैं। इसका कारण डब्ल्यूपीएल कम टीमें और कम मैच खेले जाते हैं।

जहां आईपीएल के 2024 सीज़न में 10 टीमों ने 13 शहरों में 74 मुकाबले खेले थे। वही डब्ल्यूपीएल में पांच टीमों ने चार शहरों में सिर्फ 22 मैच। इस तरीके से समानता के बीच महिला क्रिकेट में मैचों मे असमानता अभी है। समानता के लिए चाहिए कि महिला क्रिकेट टीम ज्यादा से ज्यादा हर स्तर के मैच खेले जैसे पुरुष क्रिकेट टीम खेलती हैं। समान मैच फीस में समानता तब ही होंगी जब दोनों टीमे समान मैच खेलेंगी। भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कहानी सिर्फ खेल के मैदान की नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और संस्थागत असमानताओं से जूझते हुए खुद को स्थापित करने की है। दशकों के संघर्ष, उपेक्षा और सीमित संसाधनों के बावजूद इस टीम ने अपनी मेहनत से वो मुकाम हासिल किया है, जहां आज उसे एक पहचान, सम्मान और समर्थन मिल रहा है। हालांकि समान मैच फीस और डब्ल्यूपीएल जैसी पहलें महिला क्रिकेट को एक नई दिशा दे रही हैं, लेकिन असली समानता तभी मानी जाएगी जब महिला क्रिकेट को पुरुषों के बराबर मैच खेलने, संसाधन पाने और दर्शकों का समर्थन मिलने लगेगा। यह संघर्ष अभी भी अधूरा है

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