उत्तराखंड के पहाड़ी और ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं अब पर्यटन क्षेत्र को एक नए रोजगार के रूप में अपना रही हैं। यह उनके लिए न केवल एक नया अनुभव है, बल्कि चुनौतीपूर्ण भी है। दरअसल, पर्यटन जैसे कार्यों पर लंबे समय से पुरुषों का वर्चस्व रहा है। ऐसे में महिलाओं का इस क्षेत्र में आना एक महत्वपूर्ण सामाजिक बदलाव की ओर इशारा करता है। परंपरागत रूप से इन क्षेत्रों की महिलाएं सदियों से कृषि और पशुपालन जैसे कामों में संलग्न रही हैं। लेकिन अब वे अपने घरों को होमस्टे में बदलकर पर्यटकों को स्थानीय संस्कृति, खानपान और पहाड़ी जीवनशैली का अनुभव दे रही हैं। इस पहल से न केवल उनकी आय बढ़ रही है, बल्कि वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी हो रही हैं। होमस्टे के ज़रिए महिलाएं न सिर्फ अपने परिवार की मदद कर रही हैं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मज़बूती दे रही हैं। पर्यटन के माध्यम से महिलाएं अब सेवा क्षेत्र में एक सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।
रोजगार के आंकड़ों में महिलाओं की भागीदारी का महत्व
पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे 2023–2024 के अनुसार, उत्तराखंड में सभी आयु वर्ग की बेरोजगारी दर 4.3 फीसद रही, जबकि 15–29 आयु वर्ग में यह दर 9.8 फीसद तक पहुंच गई। इससे यह साफ़ है कि युवाओं और खासकर महिलाओं के लिए नए प्रकार के रोजगार की आवश्यकता है। राज्य के सेवा योजना कार्यालय की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, 31 जनवरी 2024 तक प्रदेश में कुल 8,83,346 लोग बेरोजगार के रूप में पंजीकृत थे। इन आंकड़ों के बीच ग्रामीण पर्यटन और होमस्टे एक उभरता हुआ अवसर है, जो विशेषकर महिलाओं को रोजगार की नई राह दिखा रहा है।

होमस्टे संचालन महिलाओं के लिए केवल एक आर्थिक गतिविधि नहीं है, बल्कि यह सामाजिक पहचान, आत्मविश्वास और सामुदायिक नेतृत्व का माध्यम भी बन रहा है। कई महिलाएं आज इस काम के ज़रिए गांव की अन्य महिलाओं को भी प्रेरित कर रही हैं। इससे सामूहिक रूप से महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिल रहा है। इस बदलाव से यह स्पष्ट होता है कि यदि महिलाओं को अवसर और संसाधन मिलें, तो वे न केवल अपने परिवार को, बल्कि पूरे समुदाय को भी आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बना सकती हैं।
परंपरागत रूप से इन क्षेत्रों की महिलाएं सदियों से कृषि और पशुपालन जैसे कामों में संलग्न रही हैं। लेकिन अब वे अपने घरों को होमस्टे में बदलकर पर्यटकों को स्थानीय संस्कृति, खानपान और पहाड़ी जीवनशैली का अनुभव दे रही हैं।
होमस्टे से व्यवसाय की शुरुआत
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के कटारमल गांव की रहने वाली 42 वर्षीय कमला देवी पहले खेती-किसानी करती थीं। पति के निधन के बाद उन पर बच्चों और घर की पूरी जिम्मेदारी आ गई। जलवायु परिवर्तन और खेती में हो रही दिक्कतों के बीच उन्होंने 2022 में ‘द नेचर ग्रेस’ नाम से होमस्टे की शुरुआत की। कटारमल का प्राचीन सूर्य मंदिर पर्यटकों को आकर्षित करता है, जिससे उन्हें यह विचार आया। उन्होंने अपने घर के एक कमरे को होमस्टे में बदल दिया और रजिस्ट्रेशन उत्तराखंड पर्यटन विभाग में कराया। कमला देवी बताती हैं कि शुरुआत में डर था, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें मेहमानों की मेजबानी करने में आनंद आने लगा। अब उनके यहाँ वर्क फ्रॉम होम करने वाले, परिवार, दोस्त और सरकारी प्रोजेक्ट्स से जुड़े लोग रुकते हैं। मेहमानों से संवाद, गाँव की संस्कृति बताना और आत्मनिर्भर बनना उन्हें बेहद प्रेरक लगता है।
कैसे महिलाएं बन रही हैं आत्मनिर्भर

कमला देवी के दोनों बेटे अब उनकी ऑनलाइन मार्केटिंग में मदद करते हैं। सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के ज़रिए वह अपने होमस्टे की जानकारी लोगों तक पहुंचा रहे हैं। कमला देवी बताती हैं, “मेरा होमस्टे एक सीजनल व्यवसाय है और साल भर में लगभग 4–5 महीने गेस्ट आते हैं। इस दौरान मैं महीने के हिसाब से लगभग ₹25,000 से ₹30,000 तक की कमाई कर लेती हूं।” कमला देवी की कहानी एक प्रेरणा है। उन्होंने विषम परिस्थितियों में भी हिम्मत नहीं हारी और अपने बच्चों के भविष्य के लिए एक नया रास्ता चुना। उनका यह प्रयास न सिर्फ आर्थिक रूप से सशक्तिकरण का माध्यम है, बल्कि यह स्थानीय संस्कृति और ग्रामीण पर्यटन को भी बढ़ावा देता है। होमस्टे केवल कमरे किराए पर देने का काम नहीं है, बल्कि यह मेहमानों को स्थानीय संस्कृति, रीति-रिवाज और घर जैसा माहौल देने का अनुभव है।
रुद्रप्रयाग के कंडारा गांव की 50 वर्षीय महिला हैं। साल 2019 में उन्होंने सेवा संस्था से जुड़कर होमस्टे का काम शुरू किया। मुनस्यारी में हिमालय आर्क समूह से प्रशिक्षण लेकर उन्होंने गेस्ट सत्कार, साफ़-सफ़ाई और संवाद की बारीकियां सीखी। वे अपने खेत की ताज़ा सब्ज़ियां मेहमानों को खिलाती हैं। हर साल केदारनाथ यात्रा के सीज़न में वे 30-35 हज़ार रुपये तक कमा लेती हैं।
यह सांस्कृतिक आदान-प्रदान का जरिया भी है, जिससे मेजबान और मेहमान एक-दूसरे को समझते हैं। खासकर पहाड़ी इलाकों की महिलाओं के लिए यह आत्मविश्वास बढ़ाने और बाहरी दुनिया से जुड़ने का एक अवसर बनता है। निर्मला देवी, रुद्रप्रयाग के कंडारा गांव की 50 वर्षीय महिला हैं। साल 2019 में उन्होंने सेवा संस्था से जुड़कर होमस्टे का काम शुरू किया। मुनस्यारी में हिमालय आर्क समूह से प्रशिक्षण लेकर उन्होंने गेस्ट सत्कार, साफ़-सफ़ाई और संवाद की बारीकियां सीखी। वे अपने खेत की ताज़ा सब्ज़ियां मेहमानों को खिलाती हैं। हर साल केदारनाथ यात्रा के सीज़न में वे 30-35 हज़ार रुपये तक कमा लेती हैं। शुरुआत में देर रात मेहमानों का आना और होटल जैसी अपेक्षाओं ने मुश्किलें बढ़ाईं। गांव के लोग भी इस काम को लेकर ताने मारते थे। लेकिन, अनुभव के साथ निर्मला देवी ने आत्मविश्वास और सम्मान से यह काम संभालना सीख लिया।
ग्रामीण महिलाओं के सामने चुनौतियां
ग्रामीण महिलाओं को पर्यटन व्यवसाय में आने के लिए कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है—जैसे परिवार का सहयोग न मिलना, आर्थिक तंगी और ज़मीन पर मालिकाना हक न होना। पंजीकरण के लिए ज़रूरी दस्तावेज़ पुरुषों के नाम पर होते हैं, जिससे महिलाओं को एनओसी और अनुमति लेनी पड़ती है। महिलाओं को पर्यटकों से बातचीत में झिझक होती है। कई बार पुरुष पर्यटकों का व्यवहार असहज कर देता है। एकल महिलाओं के लिए सुरक्षा चिंता का विषय बन जाती है। समाज भी महिलाओं की नई कोशिशों को संदेह की दृष्टि से देखता है, जिससे उनका मनोबल टूटता है। उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों में महिलाओं का पारंपरिक काम खेती रहा है।
मेरा होमस्टे एक सीजनल व्यवसाय है और साल भर में लगभग 4–5 महीने गेस्ट आते हैं। इस दौरान मैं महीने के हिसाब से लगभग ₹25,000 से ₹30,000 तक की कमाई कर लेती हूं।
ऐसे में पर्यटन जैसे नए व्यवसाय में आने में उन्हें कई सामाजिक और आर्थिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। परिवार का सहयोग न मिलना, आर्थिक संसाधनों की कमी, और ज़मीन पर मालिकाना हक न होना प्रमुख समस्याएं हैं। रुद्रप्रयाग की विलोचन बहन बताती हैं कि होमस्टे शुरू करने के लिए ज़मीन और बिजली के बिल महिला के नाम होने चाहिए, जो अक्सर नहीं होते। इसके लिए पुरुष रिश्तेदारों से अनुमति या एनओसी लेनी पड़ती है, जो कई बार मुश्किल होता है। कई महिलाओं का कहना है कि पुरुष पर्यटकों से संवाद करते समय झिझक और असुरक्षा की भावना बनी रहती है।
उत्तराखंड में पर्यटन, होमस्टे और महिलाओं की भागीदारी

उत्तराखंड पर्यटन मंत्री के अनुसार, 2016 से अब तक आतिथ्य क्षेत्र में 4,582.17 करोड़ रुपये का निवेश हुआ है, लेकिन महिला-पुरुष संचालित होमस्टे की सटीक संख्या उपलब्ध नहीं है। पहाड़ी राज्य होने के कारण धार्मिक और प्राकृतिक पर्यटन यहां लंबे समय से फल-फूल रहा है। हालांकि महिलाओं की भूमिका अब भी मूल रूप से अतिथि सत्कार, भोजन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों तक सीमित है, जबकि निर्णय, निर्माण, लॉजिस्टिक्स और पैसों के कामों में पुरुषों का वर्चस्व है। यह ज़रूरी है कि महिलाएं भी पर्यटन क्षेत्र में नेतृत्वकारी भूमिकाएं निभाएं। उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद के अनुसार, पर्यटन का सकल घरेलू उत्पाद में 15.45 फीसद योगदान है और बीते दस वर्षों में पर्यटकों की संख्या में लगभग 12 फीसद की वार्षिक वृद्धि देखी गई है। UNWTO के अनुसार, पर्यटन क्षेत्र में 54 फीसद महिलाएं कार्यरत हैं, लेकिन शीर्ष पदों पर उनकी भागीदारी बेहद कम है।
उत्तराखंड की ग्रामीण महिलाएं जो पारंपरिक रूप से कृषि कार्य में संलग्न रही हैं, अब पर्यटन क्षेत्र, विशेषकर होमस्टे व्यवसाय, को रोजगार के रूप में अपना रही हैं। यह परिवर्तन राज्य में पर्यटन के बढ़ते अवसरों और ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास की संभावनाओं के कारण हो रहा है। उत्तराखंड की ग्रामीण महिलाएं पर्यटन क्षेत्र में सक्रिय रूप से शामिल होकर आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में कदम बढ़ा रही हैं। हालांकि चुनौतियों के बावजूद, उनकी बढ़ती भागीदारी राज्य के समग्र विकास में सहायक होगी और राज्य की अर्थव्यवस्था एवं सकल घरेलू उत्पाद में महत्वपूर्ण योगदान देगी और राज्य में हो रहे पलायन को भी रोकने में मदद करेगी।