संस्कृतिसिनेमा ‘रानी पद्मिनी’: पितृसत्ता के खिलाफ दो महिलाओं के सफर की कहानी

‘रानी पद्मिनी’: पितृसत्ता के खिलाफ दो महिलाओं के सफर की कहानी

निर्देशक आशिक अबू की साल 2015 की मलयालम फिल्म 'रानी पद्मिनी' एक खास फिल्म है, जो दो महिलाओं के सफर की कहानी को दिखाती है। यह सफर सिर्फ बाहर का नहीं, बल्कि उनके मन, आत्मा और सोच का भी है जहां वे खुद को समझती हैं, आजादी महसूस करती हैं और एक-दूसरे का साथ देती हैं।

भारतीय सिनेमा में महिलाओं को अक्सर किसी पुरुष किरदार की भूमिका के साथ जोड़कर ही दिखाया जाता रहा है जैसे माँ, पत्नी, प्रेमिका या बहन के रूप में। लेकिन कुछ फिल्में इन पारंपरिक ढांचों को तोड़कर महिलाओं को उनके सपनों, संघर्षों और आत्म-खोज की प्रक्रिया के साथ सामने लाती हैं। निर्देशक आशिक अबू की साल 2015 की मलयालम फिल्म रानी पद्मिनी‘ ऐसी ही एक खास फिल्म है, जो दो महिलाओं के सफर की कहानी दिखाती है। यह सफर सिर्फ बाहर का नहीं, बल्कि उनके मन, आत्मा और सोच का भी है जहां वे खुद को समझती हैं, आजादी महसूस करती हैं और एक-दूसरे का साथ देती हैं।

यह फिल्म दिखाती है कि महिलाएं एक-दूसरे की विरोधी नहीं, बल्कि साथी भी हो सकती हैं। मुश्किल समय में वे एक-दूसरे का सहारा बन सकती हैं, हिम्मत दे सकती हैं। यह फिल्म सिर्फ पहाड़ों की यात्रा नहीं है, बल्कि खुद को पहचानने, डर से बाहर निकलने और आजाद होने की एक खूबसूरत कोशिश है। फिल्म में दोस्ती, आत्मसम्मान और आजादी जैसे भाव गहराई से जुड़े हैं, जो उस समाज की पितृसत्तात्मक सोच को चुनौती देते हैं, जहां अक्सर महिलाओं की पहचान दूसरों के नजरिए से तय की जाती है। 

आशिक अबू की साल 2015 की मलयालम फिल्म ‘रानी पद्मिनी’ ऐसी ही एक खास फिल्म है, जो दो महिलाओं के सफर की कहानी दिखाती है। यह सफर सिर्फ बाहर का नहीं, बल्कि उनके मन, आत्मा और सोच का भी है जहां वे खुद को समझती हैं

आज़ादी की ओर बढ़ता एक नारीवादी सफ़र

तस्वीर साभार : On Manorama.com

फिल्म की कहानी दो अलग-अलग पृष्ठभूमियों से आई महिलाओं पद्मिनी और रानी की यात्रा के इर्द-गिर्द घूमती है। पद्मिनी जो कि एक पारंपरिक गृहिणी है और रानी एक निडर और आज़ाद बाइक राइडर है। गिरि (जीनू जोसेफ) से शादी के बाद पद्मिनी दिल्ली चली जाती है। गिरि को कार रेस में हिस्सा लेना बहुत पसंद था, उसकी मां (सजिता मदाथिल) चाहती थीं कि उनकी बहू भी उनके बेटे के साथ कार रैलियों में जाए, इसलिए उन्होंने दोनों की शादी करवाई थी । लेकिन शादी के बाद पद्मिनी, जो एक फिजियोथेरेपिस्ट है, एक अस्पताल में काम करना चाहती थी। यह बात गिरि और उसकी मां को पसंद नहीं आई जिस बजह से  गिरि, अपनी मां के कहने पर रैली में जाने से पहले उसे तलाक दे देता है। इसके बाद वह हिम्मत जुटाकर मनाली की बस पकड़ती है, जहां से रैली शुरू होनी थी। बस में उसकी मुलाकात रानी से होती है, रानी दिल्ली की सड़कों पर पली-बढ़ी, अपने दम पर जीवन जीने वाली एक साहसी महिला है, जो एक आपराधिक पुरुष से बचने के लिए भाग रही होती है।

वहीं से शुरू होती है, दोनों की दोस्ती जो उन्हें जीवन की सारी असहमतियों, डर और पीड़ाओं से निकलने का रास्ता दिखाती है। फिल्म दो महिलाओं के बीच एक खूबसूरत रिश्‍ते को दिखाती है। रानी और पद्मिनी की सोच और जिंदगी बहुत अलग है, लेकिन फिर भी वे एक-दूसरे को समझने लगती हैं और एक-दूसरे की ताकत बन जाती हैं। यह रिश्ता उन्हें मुश्किल हालात से लड़ने और अपनी परेशानियों से बाहर निकलने में मदद करता है। फिल्म यह साफ दिखाती है कि महिलाएं एक-दूसरे का साथ देकर एक-दूसरे को मज़बूत बना सकती हैं। यह बात खास है क्योंकि ज़्यादातर फिल्मों में औरतों को एक-दूसरे की दुश्मन या प्रतियोगी की तरह दिखाया जाता है, लेकिन इस फिल्म में यह सोच बदली गई है। फिल्म की ख़ूबसूरती देखने लायक है। यह फिल्म  दिखाती है कि जब हम अपने आराम के दायरे से बाहर निकलते हैं, तो हम खुद को बेहतर समझ पाते हैं। फिल्म की खुली सड़कें आज़ादी, भागने और खुद को दोबारा गढ़ने की ताकत को दिखाती हैं। यही सोच फिल्म के नारीवादी संदेश को मजबूती से पेश करती है।

फिल्म दो महिलाओं के बीच एक खूबसूरत रिश्‍ते को दिखाती है। रानी और पद्मिनी की सोच और जिंदगी बहुत अलग है, लेकिन फिर भी वे एक-दूसरे को समझने लगती हैं और एक-दूसरे की ताकत बन जाती हैं।

जब निर्देशक की संवेदना महिलाओं आवाज़ बन जाए

तस्वीर साभार : On Manorama.com

फिल्म “रानी पद्मिनी” में आशिक अबू का निर्देशन इस बात का एक शानदार उदाहरण है कि कैसे कहानी कहने की कला पारंपरिक कथाओं से आगे निकल सकती है और दर्शकों के साथ गहराई से जुड़ सकती है। फिल्म में रीमा कलिंगल और मंजू वारियर जैसी शानदार अभिनेत्रियां हैं। दोनों ने बहुत ही अच्छा और दमदार अभिनय किया है। उनका काम शांत होते हुए भी दिल पर गहरी छाप छोड़ता है। फिल्म के निर्देशक ने नारीवाद, पहचान और हिम्मत जैसे मुश्किल विषयों को बहुत ही खूबसूरती से कहानी में पिरोया है। फिल्म सिर्फ किरदारों की अपनी परेशानियां नहीं दिखाती, बल्कि समाज से जुडी सोच और समस्याओं को भी सामने लाती है। उनका निर्देशन हर दृश्य को भावनाओं से भर देता है। वह इस तरह कहानी दिखाते हैं कि दर्शक इन दोनों महिलाओं काफी सराहना करते हैं क्योंकि वे अपनी सच्चाई के लिए लड़ती हैं।

उनका निर्देशन फिल्म को एक सांस्कृतिक और सामाजिक पहलु  बना देता है। वे नारीवाद को केवल भाषण या बयान के रूप में नहीं, बल्कि जीवन के रोज़मर्रा के अनुभवों के माध्यम से पेश करते हैं। उनका निर्देशन यह बताता है कि सिनेमा केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक विमर्श को जन्म देने वाला माध्यम भी हो सकता है। फिल्म का संगीत बिजिबाल ने दिया है, जो हर सीन के साथ अच्छी तरह मेल खाता है और कहानी को और भी भावुक और असरदार बनाता है। यह संगीत किसी किरदार की तरह लगता है, जो रानी और पद्मिनी की जिंदगी के उतार-चढ़ाव में हमारे साथ चलता है। यह हमें याद दिलाता है कि आवाज हमारी भावनाओं को गहराई से छू सकती है, जैसे फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे महिलाएं अपने अनुभवों से सीखकर मज़बूत बनती हैं।

फिल्म के निर्देशक ने नारीवाद, पहचान और हिम्मत जैसे मुश्किल विषयों को बहुत ही खूबसूरती से कहानी में पिरोया है। फिल्म सिर्फ किरदारों की अपनी परेशानियां नहीं दिखाती, बल्कि समाज से जुडी सोच और समस्याओं को भी सामने लाती है।

एक सफर जो मंज़िल नहीं, पहचान की ओर ले जाता है

तस्वीर साभार : On Manorama.com

यह फिल्म एक ऐसी यात्रा की कहानी है जो महिलाओं की पहचान को समझने की कोशिश करती है। इसमें रीमा और मंजू ने दो अलग-अलग तरह की महिलाओं का रोल निभाया है। फिल्म हमें उनके साथ एक भावनात्मक सफर पर ले जाती है। दोनों अपने-अपने तरीके से महिला  होने के अलग-अलग पहलुओं को दिखाती हैं। जैसे-जैसे वे सफर करती हैं, हम उनके साथ उनके बदलते हुए अनुभवों और सोच को भी महसूस करते हैं। यह फिल्म दिखाती है कि हर महिला की अपनी एक अलग कहानी होती है, और इन कहानियों से हमें महिलाओं की असली पहचान को समझने में मदद मिलती है।

फिल्म की कहानी में दो मुख्य किरदारों के बीच फर्क दिखाया गया है। रानी का किरदार बेफिक्र और बिंदास है, जबकि पद्मिनी  का किरदार शांत और सोचने-समझने वाला है। इन दोनों का यह फर्क दर्शकों को खुद के बारे में सोचने का मौका देता है हम कौन हैं और अपने जीवन में कैसे फैसले लेते हैं। फिल्म में दोनों की बातचीत यह सिखाती है कि हर किसी की सोच अलग हो सकती है और हमें एक-दूसरे को समझने और अपनाने की कोशिश करनी चाहिए। यह कहानी उन लोगों से जुड़ती है, जो खुद को समझने की कोशिश कर रहे होते हैं। 

यह फिल्म दिखाती है कि हर महिला की अपनी एक अलग कहानी होती है, और इन कहानियों से हमें महिलाओं की असली पहचान को समझने में मदद मिलती है।

सिनेमैटोग्राफी किसी जगह को नहीं, बल्कि भावनाओं को दिखाती है

तस्वीर साभार : Tumblr.com

फिल्म की सिनेमैटोग्राफी इस कहानी को और गहराई से दिखाते हैं। वे जगहें, जहां ये दोनों महिलाएं जाती हैं सिर्फ पीछे का दृश्य नहीं हैं, बल्कि उनके दिल और सोच में चल रही भावनाओं का हिस्सा हैं। हर सीन को बहुत ध्यान से फिल्माया गया है ताकि उनकी भावनाओं और अनुभवों को अच्छे से दिखाया जा सके। यह फिल्म याद दिलाती है कि सफर भी उतना ही ज़रूरी होता है जितनी मंज़िल ज़रूरी होती है। यह हमें उन रिश्तों और संघर्षों की अहमियत समझने की सीख देती है, जो हमें बदलते हैं और हमारी पहचान बनाते हैं।

रानी  और पद्मिनी दोनों किरदारों की स्क्रीन पर दोस्ती बहुत अच्छी लगती है और दिल को छू जाती है। बाकी कलाकारों ने भी अच्छा काम किया है, जिससे फिल्म के सभी किरदार और भी दिलचस्प बन जाते हैं। हो सकता है कुछ लोगों को फिल्म की रफ्तार थोड़ी धीमी लगे, लेकिन यह इसलिए किया गया है ताकि दर्शक दोनों महिलाओं की भावनाओं और उनकी अंदरूनी यात्रा को अच्छी तरह महसूस कर सकें। यह फिल्म सिर्फ हिमालय की सड़क यात्रा की नहीं है, बल्कि बदलाव की भी है, जिससे रानी और पद्मिनी तब गुजरती हैं जब वे अपने अतीत से सामना करती हैं और अपने भविष्य को अपनाती हैं।

यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि हिम्मत, पहचान और आज़ादी की एक खूबसूरत यात्रा है। यह फिल्म दिखाती है कि दो अलग-अलग तरह की महिलाएं एक-दूसरे का साथ देकर अपने जीवन की मुश्किलों से लड़ सकती हैं और समाज की पितृसत्तात्मक सोच को चुनौती दे सकती हैं। दोनों की दोस्ती, उनका आत्मविश्वास और अपने फैसले खुद लेने का साहस दिल को छूता है। फिल्म यह भी दिखाती है कि महिलाएं एक-दूसरे की दुश्मन नहीं, बल्कि साथी और ताकत बन सकती हैं।आशिक अबू का निर्देशन और दोनों अभिनेत्रियों का अभिनय फिल्म को और असरदार बनाता है। फिल्म हमें यह सिखाती है कि असली आज़ादी तब मिलती है जब हम अपने डर और सामाजिक बंदिशों से बाहर निकलकर खुद को अपनाते हैं।

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