इंटरसेक्शनलजेंडर फीमेल कंडोम: एक अनदेखा लेकिन ज़रूरी विकल्प

फीमेल कंडोम: एक अनदेखा लेकिन ज़रूरी विकल्प

फीमेल कंडोम एक ऐसा साधन है जो न केवल अनचाहे गर्भ से सुरक्षा देता है, बल्कि एचआईवी और एसटीआई  जैसे संक्रमणों से भी रक्षा करता है।

फीमेल कंडोम एक ऐसा साधन है जो महिला को गर्भनिरोध के मामले में निर्णायक भूमिका में लाता है।  यह न केवल अनचाहे गर्भ से सुरक्षा देता है, बल्कि एचआईवी और एसटीआई  जैसे संक्रमणों से भी रक्षा करता है। भारतीय समाज में पुरुष कंडोम  को कुछ हद तक स्वीकार्यता या मान्यता मिल चुकी है, लेकिन फीमेल कंडोम को लेकर जागरूकता बहुत कम है। यह सामाजिक असमानता की जड़ में बैठी उस मानसिकता को बताता है, जो मानती है कि सुरक्षा की ज़िम्मेदारी या यौन एजेंसी महिलाओं की प्राथमिकता नहीं हो सकती। जब हम यौन शिक्षा, यौन अधिकारों और प्रजनन आज़ादी की बात करते हैं, तो फीमेल कंडोम को एक आवश्यक उपकरण के रूप में स्वीकार करना ज़रूरी हो जाता है। यह महिलाओं को न केवल सुरक्षित, बल्कि सशक्त भी बनाता है। 

फीमेल कंडोम का इतिहास और आविष्कार 

द अटलांटिक पत्रिका के मुताबिक, फीमेल कंडोम  का आविष्कार डेनमार्क के एक  डॉक्टर लासे हेसल ने किया था। यह बात 1980 के दशक की शुरुआत की है, जब डेनमार्क के डॉक्टर लासे हेसल ने एक डेनिश स्त्री रोग विशेषज्ञ फ्रिट्ज़ फुच्स को एड्स जैसी नई बीमारी और महिलाओं को इससे बचाने में आ रही मुश्किलों के बारे में बोलते हुए सुना। बातचीत के दौरान, डॉक्टर फुच्स ने हेसल को सुझाव दिया कि क्यों न महिलाओं के लिए भी एक ऐसा कंडोम बनाया जाए जो उन्हें खुद को सुरक्षित रखने का अधिकार दे। इस तरह फीमेल कॉन्डम के विचार की शुरुआत हुई। 

फीमेल कंडोम एक ऐसा साधन है जो महिला को गर्भनिरोध के मामले में निर्णायक भूमिका में लाता है।  यह न केवल अनचाहे गर्भ से सुरक्षा देता है, बल्कि एचआईवी और एसटीआई  जैसे संक्रमणों से भी रक्षा करता है।

फीमेल कॉन्डम का पहला वर्ज़न (एफसी1) कहलाया इसे पॉलीयुरेथेन से बनाया गया था, एक प्रकार का पतला लेकिन मज़बूत प्लास्टिक  या रबर होता है। साल 1993 में अमेरिका की सरकारी संस्था फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए ) ने इसे आधिकारिक रूप से मंज़ूरी दे दी। लेकिन यह ज़्यादा नहीं चल पाया क्योंकि यह महंगा था। उपयोग के दौरान शोर करता था जिससे लोगों को असहजता महसूस होती थी। उत्पादन लागत अधिक होने के कारण कम आय वाले देशों में इसकी पहुंच सीमित थी। इन कमियों को देखते हुए साल 2005 में इसका नया संस्करण (एफसी2) फीमेल कंडोम 2 बनाया गयायह नाइट्राइल से बना था जो अधिक लचीला, टिकाऊ और कम कीमत वाला पदार्थ है। यह पहले के संस्करण की तुलना में सस्ता, ज़्यादा आरामदायक था। यह अब दुनियाभर में सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों और एचआईवी  रोकथाम अभियानों में इस्तेमाल किया जाता है।  

फीमेल कॉन्डम क्या है और इसे कैसे इस्तेमाल करते हैं?

तस्वीर साभार : Modern Ghana

हिन्दुस्तान टाइम्स के अनुसार, महिला कंडोम, पुरुष कंडोम का एक विकल्प है और इसे आंतरिक कंडोम या योनि थैली भी कहा जाता है। यह एक प्रकार का अवरोधी या गैर-हार्मोनल गर्भनिरोधक है जिसे संभोग (सेक्स) के दौरान योनि में डाला जाता है। ये मुलायम, पतले सिंथेटिक लेटेक्स या नाइट्राइल से बने होते हैं। यह एचआईवी, गर्भधारण और यौन संक्रमणों से बचाने में मदद करता है। यह एक तरह की परत बनाता है जो वीर्य या शुक्राणु और दूसरे तरल पदार्थों को शरीर के अंदर जाने से रोकता है। इसमें एक मुलायम, ढीला-ढाला पाउच होता है,  जिसकी लंबाई करीब 17 सेंटीमीटर होती है और इसके दोनों सिरों पर एक-एक छल्ला होता है। 

फीमेल कंडोम  का आविष्कार डेनमार्क के एक  डॉक्टर लासे हेसल ने किया था। यह बात 1980 के दशक की शुरुआत की है, जब डेनमार्क के डॉक्टर लासे हेसल ने एक डेनिश स्त्री रोग विशेषज्ञ फ्रिट्ज़ फुच्स को एड्स जैसी नई बीमारी और महिलाओं को इससे बचाने में आ रही मुश्किलों के बारे में बोलते हुए सुना।

महिला कंडोम को अपनी जगह पर बनाए रखने के लिए, एक छल्ला योनि में डाला जाता है और खुले सिरे वाला छल्ला योनि के बाहर रहता है जो योनी के बाहरी हिस्से को ढकता है। महिला कंडोम का बाहरी हिस्सा यौन संक्रमण से सुरक्षा की एक अतिरिक्त परत देता है। यह उसे पुरुष कंडोम से थोड़ा अलग बनाता है क्योंकि महिला कंडोम सिर्फ योनि के अंदर ही नहीं, बल्कि बाहर की त्वचा को भी ढकता है, जिससे ज़्यादा सुरक्षा मिलती है। यह सिर्फ एक बार इस्तेमाल करने वाला उत्पाद है, जिसे इस्तेमाल के बाद फेंक देना चाहिए। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन के मुताबिक, पुरुष कंडोम का एक अच्छा विकल्प हो सकता है, लेकिन अभी भी महिलाओं को इसके बारे में बहुत कम जानकारी है और यह बाज़ार में ज़्यादा आसानी से उपलब्ध नहीं है। दुनिया भर में केवल 1.6 फीसदी ही महिला कंडोम का इस्तेमाल किया जाता है।

भारत में फीमेल कंडोम की स्थिति

तस्वीर साभार : Sure Check

भारत में फीमेल कंडोम की शुरुआत 2000 के दशक में हुई थी। इसका उपयोग मुख्य रूप से एचआईवी रोकथाम अभियानों के तहत शुरू किया गया। लेकिन तब से लेकर आज तक या फीमेल कंडोम आने के बाद भी यह राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम में शामिल नहीं है और यह सरकारी अस्पतालों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों या आशा वर्कर्स के ज़रिए उपलब्ध नहीं है, जबकि पुरुष कंडोम और अन्य गर्भनिरोधक मुफ्त वितरित किए जाते हैं। द वायर के मुताबिक, भारत दुनिया के सबसे बड़े कंडोम निर्माताओं और निर्यातकों में से एक है। सरकारी स्वामित्व वाली हिंदुस्तान लेटेक्स लिमिटेड कंपनी (एचएलएल) सालाना एक अरब से ज़्यादा कंडोम बनाती है, जिसमें निरोध भी शामिल है।

महिला कंडोम, पुरुष कंडोम का एक विकल्प है और इसे आंतरिक कंडोम या योनि थैली भी कहा जाता है। यह एक प्रकार का अवरोधी या गैर-हार्मोनल गर्भनिरोधक है जिसे संभोग (सेक्स) के दौरान योनि में डाला जाता है। ये मुलायम, पतले सिंथेटिक लेटेक्स या नाइट्राइल से बने होते हैं।

इनमें से 65 करोड़ निरोध कंडोम सुरक्षित यौन संबंध अभियान के तहत हर साल मुफ़्त में दिए जाते हैं। लेकिन महिला कंडोम की बात करें तो कोई मुफ़्त सुविधा नहीं है यह सिर्फ दुकानों में उपलब्ध होता है। पुरुष कंडोम के एक पैकेट की कीमत लगभग 25 रुपये है, जबकि महिला कंडोम की कीमत 59 रुपये या उससे ज़्यादा है। जिस वजह से भी इसका इस्तेमाल कम होता है। लेकिन इसके पीछे पितृसत्ता भी एक कारण है, क्योंकि महिलाओं का कंडोम इस्तेमाल करने का निर्णय भी किसी पुरुष के ही हाथ में होता है। साल 2019 -21 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, भारत में 10 में से केवल 1 पुरुष से भी कम पुरुष कंडोम का इस्तेमाल करते हैं, जबकि 10 में से लगभग 4 महिलाएं गर्भ रोकने के लिए नसबंदी करवाती हैं। क्योंकि लोगों को इसके वारे में जानकारी नहीं है। जागरूकता की कमी के कारण ज़्यादातर महिलाएं इसका इस्तेमाल नहीं कर पाती हैं ।  बीएमसी पब्लिक हेल्थ के किये गए एक अध्ययन के मुताबिक, इसमें 35 लोगों से बात की गई इनमें 5 ग्रामीण महिलाएं, 20 शहरी महिलाएं, जिनमें से 10 महिला सेक्सवर्कर्स थीं और 5 महिला सेक्सवर्कर्स के पुरुष साथी और 5 परिवार नियोजन से जुड़े स्वास्थ्य कर्मचारी शामिल थे।

तस्वीर साभार : PATH

जिन 25 महिलाओं से बात की गई, उनमें से करीब आधी यानी 12 महिलाओं ने कहा कि वे आगे चलकर महिला कंडोम इस्तेमाल करना चाहेंगी। 15 लोगों ने महिला कंडोम को ऐसा तरीका बताया जो महिलाओं को अपने यौन और प्रजनन जीवन पर कंट्रोल देने में मदद करता है। कुछ लोगों ने महिला कंडोम के नुकसान भी बताए। 35 में से 6 लोगों ने कहा कि यह दूसरों की तुलना में ज़्यादा महंगा है, 9 लोगों ने बताया कि इसे इस्तेमाल करने का अनुभव कम है, और 4 लोगों को लगा कि जो महिलाएं इसे खरीदती या इस्तेमाल करती हैं, उन्हें समाज की नजरों का डर और शर्मिंदगी महसूस हो सकती है। फिर भी, 30 उपयोगकर्ताओं में से करीब तीन चौथाई लोग  इसके इस्तेमाल को लेकर सकारात्मक नज़र आए।

पुरुष कंडोम के एक पैकेट की कीमत लगभग 25 रुपये है, जबकि महिला कंडोम की कीमत 59 रुपये या उससे ज़्यादा है। ज़्यादा महंगा होने की  बजह से पहुंच से दूर हैं।

फीमेल कंडोम के फायदे और नुक्सान 

क्लीवलैंड क्लिनिक के मुताबिक, पुरुष कंडोम की तुलना में इससे एलर्जी होने की संभावना कम होती है, और इसके टूटने की संभावना भी कम होती है। ये शुक्राणु को अंडे तक पहुंचने  से रोकते हैं, जिससे गर्भधारण से बचाव होता है। यौन संचारित रोगों से सुरक्षा करता है त्वचा के संपर्क से संक्रमण होने की संभावना कम होती है।  कुछ गर्भनिरोधक विधियों के विपरीत, कंडोम एक बार इस्तेमाल करने योग्य होते हैं और इनका कोई स्थायी प्रभाव नहीं होता। कंडोम का इस्तेमाल बंद करने पर  हार्मोन लेने या दुष्प्रभावों की चिंता करने की ज़रूरत नहीं होती। महिला  कंडोम के कुछ नुकसान बाहरी कंडोम जैसे ही होते हैं उदाहरण के लिए, कंडोम फट सकता है। भारत में महिलाओं के इसे खरीद पाना मुश्किल है क्योंकि यह महंगा होता है पुरुष कंडोम की तुलना में।

तस्वीर साभार : NHS Inform

इसका इस्तेमाल करने वाले कुछ लोगों को एलर्जी की प्रतिक्रिया या अनुचित फिटिंग के कारण जलन और असुविधा का अनुभव होता है। फीमेल कॉन्डम सुरक्षित है, लेकिन हर किसी के लिए पहली बार में सहज लगना ज़रूरी नहीं। थोड़ी प्रैक्टिस और जानकारी से इसका इस्तेमाल आसान हो सकता है। फीमेल कंडोम एक ऐसा गर्भनिरोधक साधन है जिसे महिलाएं इस्तेमाल करती हैं ताकि वे अनचाहे गर्भ और यौन संक्रमणों से बच सकें। यह उन्हें अपने शरीर और यौन संबंधों पर ज़्यादा नियंत्रण देता है। जहां पुरुष कंडोम के बारे में लोग काफी जानते हैं और उसका इस्तेमाल आम है, वहीं फीमेल कंडोम  के बारे में बहुत कम जानकारी है।

इसे बनाने का मकसद था कि महिलाएं भी अपनी सुरक्षा के लिए खुद फैसला ले सकें। लेकिन भारत जैसे देश में यह अभी तक आम लोगों तक नहीं पहुंच पाया है इसकी कीमत ज़्यादा है, बाजार में आसानी से नहीं मिलता, और लोग इसके बारे में बात करने से भी झिझकते हैं। यह एक ज़रूरी और सुरक्षित विकल्प है। यह महिलाओं को सुरक्षित रहने का हक और आज़ादी देता है। अगर इसके बारे में लोगों को सही जानकारी दी जाए और इसे सस्ता व उपलब्ध बनाया जाए, तो यह महिलाओं के जीवन में बड़ा बदलाव ला सकता है। इसलिए, यह ज़रूरी है कि हम फीमेल कंडोम को सिर्फ एक साधन नहीं, बल्कि महिलाओं की सेहत और हक़ से जुड़ा मुद्दा समझें।

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