15 दिसबंर की शाम जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में के कैंपस में घुसकर छात्रों के साथ हिंसा की गई, उन्हें बेरहमी से पीटा गया। पुलिस पर छात्रों के साथ हिंसा करने के आरोप लगे, अब तक कोई कार्रवाई नहीं, कोई सुनवाई नहीं। लेकिन कोरोना वायरस महामारी के दौरान भी जामिया के ही छात्रों और नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन में शामिल एक्टिविस्टों की गिरफ्तारी नहीं थमी।
अब नैशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वीमन की तरफ से एक फैक्ट-फाइडिंग रिपोर्ट जारी की गई है जिसमें कई चौंकाने वाले खुलासे किए गए हैं। इस रिपोर्ट में किए गए खुलासे एक बार फिर से दिल्ली पुलिस और नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हुए प्रदर्शनों में उसकी कार्रवाई कटघरे में खड़ी नज़र आती है। यह रिपोर्ट आधारित है 10 फरवरी को जामिया के छात्रों, सिविल सोसायटी से जुड़े लोगों और स्थानीय नागरिकों ने नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ़ निकाले गए मार्च पर। यह फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट NFIW ने प्रदर्शन में शामिल 15 साल से 60 साल तक के 70 से 80 लोगों से ली गई टेस्टिमनी के आधार पर बनाई है। साथ ही प्रदर्शन में शामिल घायल लोगों का इलाज करने वाले डॉक्टरों और नर्सों से भी बातचीत की गई है।
रिपोर्ट में प्रदर्शन में शामिल छात्रों और शिक्षकों ने जिन प्रमुख बिंदुओं की ओर इशारा किया उनमें से एक है- शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर केमिकल गैस का इस्तेमाल। रिपोर्ट के मुताबिक उस दिन पुलिस की तरफ टियर गैस का नहीं बल्कि किसी दूसरी केमिकल गैस का इस्तेमाल नहीं किया गया था क्योंकि उस दिन किसी की आंखों में जलन नहीं हुई थी। पुलिस के इस्तेमाल किए गए गैस के बाद कई प्रदर्शनकारियों में सिरदर्द, बेहोशी, दम घुटने और मांशपेशियों में दर्द जैसे लक्षण देखने को मिले। प्रदर्शन स्थल से दूर मौजूद छात्रों में भी सर दर्द और चलने-फिरने में परेशानी देखी गई थी। कई प्रदर्शनकारियों में ये लक्षण करीब एक हफ्ते तक दिखे। इस गैस के संबंध में पुलिस ने कोई भी जवाब देने से इनकार कर दिया। इन लक्षणों वाले प्रदर्शनकारियों का इलाज कर रहे डॉक्टरों ने भी इस संबंध में कुछ भी कहना मुनासिब नहीं समझा।
दूसरा प्रमुख खुलासा जो इस रिपोर्ट में किया गया है वह है- प्रदर्शन में शामिल महिलाओं और पुरुषों के साथ हुई यौन हिंसा। NFIW की रिपोर्ट के मुताबिक 10 फरवरी को हुए प्रदर्शन के दौरान करीब 45 लोग जिसमें 30 पुरुष और 15 महिलाओं शामिल थी, उनका यौन शोषण किया गया। रिपोर्ट कहती है कि महिलाओं का पुरुष पुलिसकर्मियों ने शोषण किया, उनके कपड़े फाड़ने की कोशिश की गई, छातियों और गुप्तांगों पर बूट से मारा गया। कई महिलाओं की योनि में डंडा घुसाने की भी कोशिश की गई। करीब 15 महिलाओं की योनियों में गंभीर चोट देखने को मिली। रिपोर्ट के मुताबिक 16 साल से लेकर 60 साल तक की महिलाओं का यौन शोषण किया गया। सिर्फ महिला ही नहीं पुरुषों के साथ भी गंभीर यौन शोषण के मामले सामने आए हैं। पुरुषों के निजी अंगों पर भी गंभीर चोट होने की बात कही गई है।
यह रिपोर्ट महिलाओं ने तैयार की है इसलिए घायल महिला प्रदर्शनकारी अपनी निजी अंगों की चोट के बारे में बात करने में सहज थी लेकिन पुरुष अपनी चोट के बारे में खुलकर बात करने में अहसज महसूस कर रहे थे।
जामिया मिलिया इस्लामिया की छात्रा फौज़िया (बदला हुआ नाम) नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जामिया में हुए प्रदर्शनों के शुरुआती दिनों को याद करते हुए कहती हैं, जामिया इलाके में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ शुरू हुए प्रदर्शन के पहले दिन से ही मैंने पुलिसिया हिंसा का अनुभव किया। जैसे-जैसे प्रदर्शन शुरू हुए पुलिस का बल प्रयोग हिंसक होता गया। प्रदर्शन के दौरान पुलिसवाले भद्दी गालियों और भाषा का इस्तेमाल करते। कैंपस के अंदर और बाहर टियर गैस का इस्तेमाल किया गया। वे बिना देखे किसी को भी मारते, मुझे कभी ऐसा लगा ही नहीं कि पुलिस छात्रों के प्रदर्शन को संभाल रही है। एक दिन जब फौज़िया कैंपस से अपने घर लौट रही थी तो रास्ते में उन्हें पुलिसवालों ने रोककर पूछताछ करनी शुरू कर दी, मसलन कहां जा रही हो, क्यों जा रही हो। फौज़िया कहती हैं मुझे एक मुसलमान होने का एहसास इतना कभी नहीं हुआ जितना अब होता है।
नाम न बताने की शर्त पर जामिया की एक और छात्रा ने बताया कि प्रदर्शन के दौरान एक महिला कॉन्स्टेबल ने मेरी आंखों के सामने मेरी दोस्त के साथ शारीरिक हिंसा की, उसकी छातियों को चोट पहुंचाई गई। कार्रवाई कर रही पुलिस कॉन्स्टेबल की वर्दी पर नेम प्लेट भी नहीं थी। प्रदर्शन के दौरान मुझे भी मेरे पेट के निचले हिस्से पर मारा गया। फौज़िया की तरह ही इस छात्रा ने हमें बताया कि प्रदर्शनों के दौरान पुलिस का रवैया क्रूर था, वे बिना देखे किसी को भी, कहीं भी मार रहे थे।
नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शनों में एक्टिव रही जामिया की एक और छात्रा इमान 10 फरवरी को हुए मार्च में मौजूद थी। उस दिन को याद करते हुए इमान कहती हैं, ‘हम उस दिन संसद तक मार्च निकालने वाले थे। मार्च शुरू होने के बाद जब हम होली फैमिली अस्पताल तक पहुंचे तो वहां भारी बैरिकेडिंग थी, बड़ी संख्या में पुलिसवाले मौजूद थे। उस दिन हुई हिंसा में हमारी छातियों और योनियों पर पुलिस ने मारा, उस गैस के कारण हमें सांस नहीं आ रही थी। पुरुष पुलिसकर्मी हमें पकड़कर जबरदस्ती पीछे ढकेल रहे रहे थे। गैस की वजह से मैं होश खो रही थी लेकिन मेरे दिमाग में बस चल रहा था कि मुझे अपना होश नहीं गंवाना है। उस दिन मुझे मेरे पेट के निचले हिस्से में मारा गया, मेरा हिजाब खींचने की कोशिश की गई। हमारी पहचान के खिलाफ लगातार भद्दी भाषा का इस्तेमाल किया गया। मुझे दर्द हो रहा था लेकिन मैं अपने आंसुओं को रोकने की कोशिश कर रही थी। मुझे खून की उल्टियां हुई और मैं लगातार कहती जा रही थी हर बार ऐसा क्यों होता है? अस्पताल में भर्ती होने के बाद भी मुझे न नींद आ रही थी, न सांस। वह कहती हैं, हमें पीटा गया, हम घायल हुए लेकिन एहसास ये दिलाया गया कि विरोध करना हमारी ही गलती है। इमान को पूरी तरह ठीक होने में 45 दिन लगे। अपने इलाज के लिए उन्हें एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल के लगातार चक्कर भी काटने पड़े।
छात्रों के बीच अपनी बात रखने को लेकर झिझक भी है जिसका ज़िक्र रिपोर्ट में भी है। यह रिपोर्ट महिलाओं की मदद से तैयार की गई है इसलिए घायल महिला प्रदर्शनकारी अपनी निजी अंगों की चोट के बारे में बात करने में सहज थी लेकिन पुरुष अपनी चोट के बारे में खुलकर बात करने में अहसज महसूस कर रहे थे। जिन अस्पतालों में घायल प्रदर्शनकारियों का इलाज हुआ उन्होंने भी इस संबंध में कोई भी आधिकारिक बयान जारी करने से इनकार कर दिया। अपनी इस रिपोर्ट में NFIW ने 10 फरवरी को प्रदर्शनकारियों के साथ हुई हिंसा के मुद्दे पर मांग की है कि गृह मंत्रालय इस हिंसा के संदर्भ में श्वेत पत्र जारी करे। पुलिस की हिंसात्मक कार्रवाई के खिलाफ स्पेशल ज्यूडिशल इंक्वायरी बैठाई जाए। साथ ही डॉक्टरों की एक टीम छात्रों पर इस्तेमाल की गई केमिकल गैस के संदर्भ में एक पब्लिक रिपोर्ट सौंपे।
रिपोर्ट तैयार करने में शामिल रही NFIW की महासचिव एनी राजा ने फेमिनिज़म इन इंडिया से बातचीत के दौरान कहा कि उन्हें इस देश की न्याय प्रणाली पर भरोसा है। वह कहती हैं, ‘हमें इस घटना को एक मुद्दा बनाना होगा, समाज को पुलिस और गृह मंत्रालय पर ज़ोर देना होगा। इस रिपोर्ट को गृह मंत्रालय, मानवाधिकार कार्यकर्ता या पुलिस नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। हमारा काम रिपोर्ट जारी करने के बाद रुकेगा नहीं। हमारी कोशिश यह सुनिश्चित करना है कि ऐसी हिंसा दोबारा किसी के साथ न हो।’
रिपोर्ट में पुलिस के हिंसात्मक रवैये पर भी सवाल उठाए गए हैं। इस मुद्दे पर एनी राजा कहती हैं, ‘मैं कई सालों से दिल्ली में काम कर रही हूं, सड़क से लेकर संसद के बाहर तक हर जगह प्रदर्शन किए हैं लेकिन मैं अपने निजी अनुभव के आधार पर ये कह सकती हूं कि बीते 6 साल में पुलिस का चरित्र इतना बदल चुका है कि आप कल्पना नहीं कर सकते। पुलिस का चरित्र अब अधिक क्रूर हो गया है, मुस्लिम द्वेष पूरे पुलिस विभाग में फैल रहा है।
रिपोर्ट में यह भी मांग की गई है कि पुलिस के इस्लामोफोबिक रवैये को जल्द से जल्द संबोधित करने की ज़रूरत है। इस रिपोर्ट में पुलिस इस्लामोफोबक रवैये के बारे में जो कहा गया है उसका ज़िक्र हमें सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज़ और कॉमन कॉज की तरफ़ से किए गए सर्वे में भी मिलता है। साल 2019 में जारी की गई स्टेटस ऑफ पुलिसिंग रिपोर्ट इन इंडिया के मुताबिक सर्वे में शामिल हर 2 में से 1 पुलिसवाले का मानना था कि मुसलमानों द्वारा कुछ हद तक अपराध करने की संभावना अधिक होती है।
10 फरवरी को हुई इस हिंसा के संबंध में पुलिस की तरफ से कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है। वहीं बीते साल दिसंबर में जामिया के छात्रों के साथ हुई हिंसा की जांच के लिए एसआईटी के गठन का भी दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हाईकोर्ट में विरोध किया है। लेकिन हाल के दिनों में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले कई लोगों को अब तक गिरफ्तार किया जा चुका है जिसमें कई महिला एक्टिविस्ट और छात्र भी शामिल हैं। पुलिस पर जामिया, जेएनयू हिंसा और प्रदर्शनकारियों के खिलाफ एकतरफा कार्रवाई करने के भी आरोप हैं।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 10 फरवरी को हुई हिंसा का पैटर्न इससे पहले जामिया और जेएनयू में छात्रों के साथ हुई हिंसा से मिलता-जुलता था। उस दिन भी कई पुलिसवालों की वर्दी पर नेमप्लेट्स नहीं थे, कुछ लोग सादे कपड़ों में थे जिन्होंने प्रदर्शनकारियों पर हमले किए। फेमिनिज़म इन इंडिया ने कई और छात्रों से बात करने की कोशिश की जो नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जारी प्रदर्शनों में सक्रिय थे लेकिन छात्रों और एक्टिविस्टों के खिलाफ जारी कार्रवाई के कारण अब छात्र अपनी बात कहने में डर रहे हैं। प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा से उपजे ट्रॉमा के कारण कई छात्र उस दिन को याद भी नहीं करना चाहते।
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