वैवाहिक जीवन में ‘घरेलू हिंसा’ एक ऐसा मुद्दा है जिसके बारे में सामाजिक स्तर पर काफी चर्चा की जाती है लेकिन सच्चाई यह है कि हमारे घरों में यह हिंसा अच्छे से अपनी पैठ बना चुकी है। घरेलू हिंसा को हमारे समाज ने जीवन का एक अभिन्न अंग मान लिया है। पति द्वारा पत्नियों को लगातार ताने देते रहना वैवाहिक जीवन का अंग बन चुका है। हमारे समाज में यह माना जाता है कि पति द्वारा ताना या अपशब्दों का इस्तेमाल आम बात है। हमारी संस्कृति और परंपरा के अनुसार महिला को पति के इन कटीले शब्दों का आदी हो जाना चाहिए क्योंकि पति परमेश्वर है, सरताज है, वह कुछ गलत नहीं कर सकता। अगर वह पत्नी को शब्दों के ज़रिये प्रताड़ित कर रहा है तो इसके पीछे ज़रूर कोई बात होगी, वह पत्नी और घर का भला ही चाहता है।
घरेलू हिंसा के कई रूप हैं; शारीरिक, लैंगिक, आर्थिक, शाब्दिक, मनोवैज्ञानिक, इन सभी प्रकार की हिंसा के नकारात्मक प्रभाव हैं। शारीरिक हिंसा सबको दिखाई दे जाती है, लेकिन मनोवैज्ञानिक हिंसा एक ऐसी हिंसा है जो सामने से दिखाई नहीं देती है। इसके बारे में समझना और जानना बहुत आवश्यक है। एक महिला की मुस्कान के पीछे का सत्य क्या है यह कोई नहीं समझ पता। वह महिला अपने जीवन में किन कठिनाइयों का सामना कर रही है यह समझ पाना हर किसी के बस की बात नहीं है। यह देखा गया है कि मनोवैज्ञानिक हिंसा की शिकार महिलाओं की या तो आत्महत्या से मौत हो जाती है या फिर वे अलग-अलग मानसिक विकार से पीड़ित जाती हैं, जिन्हें बाद में पति और समाज द्वारा ‘पागलपन’ का नाम दे दिया जाता है।
और पढ़ें : घरेलू हिंसा को रोकने के लिए पहले उसकी पहचान ज़रूरी है
मनोवैज्ञानिक हिंसा क्या है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, “मनोवैज्ञानिक हिंसा यानी भावनात्मक या मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार जैसे, अपमान, डराना, नुकसान की धमकी, बच्चों को ले जाने की धमकी आदि मनोवैज्ञानिक हिंसा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन किसी के व्यवहार को नियंत्रण करने को इस प्रकार प्रभाषित करता है, “एक व्यक्ति को परिवार से अलग करना, उनके कार्यों पर निगरानी और वित्तीय संसाधनों, रोजगार, शिक्षा या चिकित्सा देखभाल तक पहुंच को प्रतिबंधित करना।” मनोवैज्ञानिक हिंसा को किसी व्यक्ति या सामूहिक बल के खिलाफ जानबूझकर किए गए कृत्य के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसके परिणामस्वरूप अपमान, धमकी, हमले, मौखिक दुर्व्यवहार सहित शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक नुकसान होता है।
शारीरिक हिंसा सबको दिखाई दे जाती है, लेकिन मनोवैज्ञानिक हिंसा एक ऐसी हिंसा है जो सामने से दिखाई नहीं देती है। इसके बारे में समझना और जानना बहुत आवश्यक है।
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के अनुसार मौखिक और भावनात्मक हिंसा, जैसे अपमानित करना, गालियां देना, चरित्र और आचरण पर आरोप लगाना, बेटा पैदा न होने पर प्रताड़ित करना, दहेज के नाम पर प्रताड़ित करना, नौकरी न करने या छोड़ने के लिए मजबूर करना, आपको अपने मन से विवाह न करने देना या किसी व्यक्ति विशेष से शादी के लिए मजबूर करना, आत्महत्या की धमकी देना इत्यादि। मनोवैज्ञानिक हिंसा शारीरिक और यौन हिंसा की तुलना में अन्तरंग साथी द्वारा हिंसा का सबसे सामान्य रूप माना जाता है। मनोवैज्ञानिक हिंसा एक पीड़ित के साथ लगातार की जाती है जिसे आमतौर पर मनोवैज्ञानिक आक्रामकता जैसे चिल्लाना और अपमान कहा जाता है और अधिक गंभीर दुर्व्यवहार के साथ समाप्त होता है, जिसे अक्सर जबरदस्ती जैसे धमकी और अलगाव कहा जाता है।
और पढ़ें : गर्भनिरोध के लिए घरेलू हिंसा का सामना करती महिलाएं
मनोवैज्ञानिक हिंसा को समझना क्यों आवश्यक है?
आज के समय में, अर्थव्यवस्था में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी के कारण महिलाओं में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को समझना महत्वपूर्ण है। अर्थव्यवस्था में भागीदारी के आलावा महिलाएं बच्चों की वृद्धि और विकास और बुजुर्गों के कल्याण में आवश्यक भूमिकाएं निभाती हैं, उन पर अनपेड केयरवर्क का बोझ होता है। अगर हम महिलाओं के बीच हिंसा से जुड़ी मानसिक स्वास्थ्य समस्या को रोकने के उद्देश्य से सांस्कृतिक रूप से विशिष्ट और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शिक्षाप्रद हस्तक्षेपों की संरचना करना चाहते हैं, तो हमें उन महिलाओं के अनुभव का पता लगाने की जरूरत है जो हिंसा का सामना करती हैं और यह समझने की ज़रूरत है कि यह उनके मानसिक विकार से कैसे संबंधित है?
हमारा समाज पुरुष प्रधान है और परिवार में किसी भी दुर्घटना के लिए अक्सर महिलाओं को दोषी ठहराया जाता है। जैसे, पति के माता-पिता बीमार हैं तो ये पत्नी की गलती है कि उसने उनकी ठीक से सेवा नहीं की हैं, बच्चे के स्कूल में अच्छे नंबर नहीं आते तो भी पत्नी की गलती है कि वह उसे ठीक से नहीं पढ़ाती, बच्चे ने किसी को अपने जीवनसाथी कि तौर पर पसंद कर लिया हैं तो भी पत्नी की गलती मानी जाएगी इत्यादि। अब इन गलतियों पर पत्नी को उठते- बैठते खाते-पीते ताने और गालियां सुनने को मिलती हैं। ये ताने और गालियां उस पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। शोधकर्ताओं द्वारा की गयी शोध से पता चलता हैं कि मनोवैज्ञानिक हिंसा का मानसिक स्वास्थ पर गहरा असर पड़ता हैं।
और पढ़ें : घरेलू हिंसा से जुड़े कानून और कैसे करें इसकी शिकायत? आइए जानें | #AbBolnaHoga
यदि पत्नी कामकाजी महिला होती हैं तो उसे घर, बच्चे और काम के बीच में संतुलन बनाना आवश्यक होता है। ऐसा देखा गया है कि कामकाजी महिलाएं काई बार अपनी नौकरी छोड़ देती हैं, घर और बच्चे संभालने के नाम पर ‘त्याग’ देती हैं क्योंकि हमारे समाज के अनुसार सारा घर संभालने की ज़िम्मेदारी उनकी ही है। एक शोध के अनुसार, मनोवैज्ञानिक हिंसा के कारण खुद पर शक और भय जैसी आंतरिक भावनाओं के कारण स्त्री एक अपमानजनक रिश्ते में रहती है। मनोवैज्ञानिक हिंसा के अधीन रहने वाले पीड़ितों की तुलना युद्ध के कैदियों से की गई है, जिसमें पीड़ितों को हिंसक संस्कृति में शामिल किया गया है। परिणामस्वरूप, पीड़ित अपनी पहचान और नियंत्रण को खो देता है जिससे निराशा की भावना पैदा हो सकती है और अपमानजनक रिश्ते को छोड़ने में असमर्थता हो सकती है।
हमारा समाज पुरुष प्रधान है और परिवार में किसी भी दुर्घटना के लिए अक्सर महिलाओं को दोषी ठहराया जाता है।
अंतरंग साथी हिंसा (इंटिमेट पार्टनर वायलेंस) चिंता का एक वैश्विक मुद्दा बन गया है जो शारीरिक चोट से होने वाले तत्काल नुकसान से परे व्यक्तियों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। अंतरंग साथी हिंसा और मानसिक स्वास्थ्य लक्षण भी कई अप्रत्यक्ष जोखिम कारकों से संबंधित होने के लिए जाने जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की बड़े पैमाने पर किए गए अध्ययन की रिपोर्ट में पाया गया कि अवसादग्रस्त लक्षणों वाले अंतरंग साथी हिंसा के पीड़ितों में नशीली दवाओं और शराब के दुरुपयोग के साथ-साथ आत्महत्या के विचार की रिपोर्ट करने की अधिक संभावना है। ऐसे पीड़ित अवसाद, पीटीएसडी (पोस्ट ट्रॉमेटिक मेन्टल डिसऑर्डर) और व्यग्रता जैसे रोगों से पीड़ित हो जाते हैं।
मनोवैज्ञानिक हिंसा को कम रिपोर्ट क्यों किया जाता है?
मनोवैज्ञानिक हिंसा के इतने नकारात्मक प्रभाव के बावजूद यह बहुत काम रिपोर्ट किया जाता है। इनके कम रिपोर्ट करने के पीछे कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं, कुछ पीड़ित डरते हैं कि कोई उन पर विश्वास नहीं करेगा, खासकर यदि उत्पीड़न बंद दरवाज़ों के पीछे हो रहा हो तो वह बंद दरवाज़ों के पीछे की व्यथा को साबित कैसे करेगा। कई बार महिलाएं खुद इन सबसे बाहर नहीं निकलना चाहती हैं। उनका मानना है कि ये सब सामान्य है यह हमारी पितृसत्तात्मक परवरिश का ही नतीजा है। कई बार पीड़ित का पति सार्वजनिक रूप से मॉडल पार्टनर की तरह व्यवहार करता है ऐसे में सवाल यह होता है कि कैसे महिला अपने साथी के दूसरे पहलू को सबके सामने लाए। कुछ पीड़ितों को डर होता है कि वे अपने बच्चों की कस्टडी खो देंगे। कुछ पीड़ित डरते हैं कि वे अपने परिवार को शर्मसार कर देंगे या उनके दोस्त और परिवार उन्हें जज करेंगे। कुछ पीड़ितों को डर है कि उनके पास अपने सहयोगियों की मदद के बिना खुद का समर्थन करने के लिए वित्तीय संसाधन नहीं हैं, अकेले संभावित रूप से तलाक के मुक़दमें के लिए या बच्चों की हिरासत की कानूनी लड़ाई के लिए एक वकील को वो कैसे कर पाएगा। विकलांग पीड़ितों के लिए, घरेलू दुर्व्यवहार की रिपोर्ट करना विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण होता है क्योंकि वे अपनी देखभाल के लिए दुर्व्यवहार करने वाले पर निर्भर होते हैं।
और पढ़ें : स्टॉकहोम सिंड्रोम : शोषण से पीड़ित महिलाएं मदद क्यों नहीं मांगती? #AbBolnaHoga
तस्वीर साभार : The Human Rights Watch