हंसना हमारी सेहत के लिए कितना ज़रूरी है हम सबको पता है। लेकिन किसी को अपनी बातों से हंसना कोई आसान काम नहीं है। हम सभी टीवी पर, फिल्मों में कॉमेडी शो, कॉमेडी सीन देखते हैं, लेकिन कभी आपने सोचा है कि ये कॉमेडी शो, कॉमेडी सीन दिखाने के पीछे का उद्देश्य क्या है? दरअसल टीवी पर जो कॉमेडी सीन आता है वह लोगों का मनोरंजन करता है। अधिकतर लोग शो को इसलिए देखते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि कॉमेडी सीन देखने से उनकी दिनभर की थकान दूर हो जाती है। चेहरे पर हंसी आती है।
आज हम इस लेख में ऐसी ही एक शख़्स के बारे में जानेंगे जिसने लाखों-करोड़ों दर्शकों के चेहरे पर हंसी लाने का काम किया था। बॉलीवुड की दुनिया में कई कलाकार हैं जो अपनी अपनी अलग खासियत की वजह से लोगों के दिलों में अब तक अपनी एक अलग छवी बनाई हुई है। उन्हीं में से एक अभिनेत्री टुनटुन सिंह थीं जिन्हें बॉलीवुड की पहली महिला कॉमिक के नाम से जाना जाता है। ‘टुनटुन’ नाम सुनते ही पुरानी फिल्मों में उनके सीन की झलक जहन में आने लगती है।
बॉलीवुड के शुरुआती दौर में टुनटुन के कॉमेडी सीन देखने के लिए सिनेमा घरों में भीड़ उमड़ जाती थी और चारों तरफ ठहाके के गूंजने लगते थे। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि जिनके कमाल के एक्सप्रेशन और जबरदस्त डायलॉग डिलीवरी खासियत थी वह अपने जीवन में काफी अकेली थीं। टुनटुन एक बेहद गरीब परिवार से थीं। उनका बचपन गरीबी में ही बीता। अपने सारे दुख-दर्द को छिपाकर टुनटुन ने पर्दे के माध्यम से कॉमेडी कर दूसरों को से हंसाने में कोई कसर नही छोड़ी थी। टुनटुन का असली नाम उमा देवी खत्री था।
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शुरुआती जीवन
टुनटुन का जन्म 11 जुलाई, 1923 को उतर प्रदेश के अमरोहा से ज़िले के एक छोटे से गांव में हुआ था। टुनटुन ने बचपन से ही अपनी जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव देखे। टुनटुन की उम्र बहुत छोटी थी जब उनके माता-पिता की हत्या जमीनी विवाद के कारण कर दी गई थी। वह इतनी छोटी थी कि उन्हें अपने माता-पिता का चेहरा तक याद नहीं था। जब वह चार साल की थीं उनके बड़े भाई का निधन हो गया था, जिसके बाद टुनटुन अकेली हो गई थी। परिवार में अकेली बची टुनटुन की सारी ज़िम्मेदारी उनके रिश्तेदारों पर आ गई थी। रिश्तेदारों ने उन्हें अपने घर में तो जगह दी लेकिन कभी दिल में जगह नहीं दे पाए।
बॉलीवुड के शुरुआती दौर में टुनटुन के कॉमेडी सीन देखने के लिए सिनेमा घरों में भीड़ उमड़ जाती थी और चारों तरफ ठहाके के गूंजने लगते थे लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि वह एक बेहतरीन कॉमिक होने के साथ-साथ एक बेहतरीन गायिका भी थीं।
मुंबई आने तक का सफर
टुनटुन को बचपन से ही गाना गाने का बहुत शौक था। अपने इसी शौक के कारण वह अक्सर रेडियो पर गाने सुनकर रियाज़ करती थीं। टुनटुन की तमन्ना थी कि वह मुंबई जाकर गायकी में अपना करियर बनाएं। लेकिन जिस दौर में लड़कियों का घर से बाहर निकल कर पढ़ाई करना मुश्किल था उस दौर में गायकी में अपना करियर बनाने के लिए मुंबई जाना तो टुनटुन के लिए असंभव था। लेकिन किसे पता था टुनटुन की किस्मत मुंबई में बेसब्री से इंतजार कर रही थी। दरअसल, एक दिन टुनटुन की एक सहेली जो मुंबई में रहती थी उनसे मिलने उनके गांव आई। उसने मुंबई के बारे में टुनटुन को काफी कुछ बताया जिसके बाद टुनटुन अपने करियर को ऊंची उड़ान देने के लिए अपनी सहेली के साथ महज 23 साल की उम्र में घर से भागकर मुंबई आ गई।
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गायकी से बनाई पहचान
मुंबई में आकर टुनटुन ने एक जाने-माने कंपोज़र नौशाद का दरवाज़ा खटखटाया। टुनटुन ने नौशाद से कहा कि वह बहुत अच्छा गाती है और उन्हें काम दे दे। टुनटुन ने कंपोजर को यह भी कह डाला कि अगर वह उन्हें काम नहीं देंगे तो वह बंगले से समंदर में कूदकर जान दे देंगी। टुनटुन की धमकी से घबराए नौशाद साहब ने उनका का एक छोटा सा ऑडिशन लिया। नौशाद साहब की आवाज से काफी प्रभावित होकर उन्हें काम दे दिया।
उस दौर में महिलाओं का जीवन काफी बंदिशों में गुजरता था। इस पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं के फिल्म देखने पर भी रोक लगाई जाती थी। उस दौर में टुनटुन पितृसत् समाज की इस सोच को अनदेखा करते हुए अपने नई जीवन की शुरुआत की और अपने करियर को ऊंची उड़ान दी। टुनटुन को दिल्ली में किसी ने निर्देशक नितिन बोस के असिस्टेंट जव्वाद हुसैन का पता दिया था। वह मुंबई आकर उनसे मिलीं। साल 1947 में उन्हें पहली बार गाने का मौका मिला। टुनटुन का पहला गीत फिल्म ”अफसाना लिख रही हूं’ था। यह गाना सुपरहिट हुआ और टुनटुन की किस्मत चमक गई।
बॉलीवुड की कई गाने ने लोकप्रियता हासिल किए हुए हैं। लेकिन “अफसाना लिख रही हूं” गाना सुनने के बाद जिसकी याद आती है वह है टुनटुन की। यह गाना आज भी लोगों की जुबां पर सुनने को मिल जाते हैं। टुनटुन का यह गाना उनके पति को इतना पसंद आया कि वह अपना मुल्क छोड़कर भारत आ गए और टुनटुन से शादी कर ली। टुनटुन अपने जीवन में लगातार करीब 45 गाने गाए। लेकिन गर्भवती होने और कुछ घरेलू जिम्मेदारियों के चलते उन्हें फिल्मों से ब्रेक लेना पड़ा। मगर अफसोस की बात यह है कि टुनटुन दोबारा तो संगीत की दुनिया में वापसी की लेकिन कुछ खास नहीं कर पाई क्योंकि उस दौर में कई और नई गायिकाएं फिल्मी दुनिया में आ चुकी थीं जिसकी वजह से टुनटुन को गाने मिलना कम हो गए।
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आज लोग एक दूसरे का मजाक बनाकर लोगों का मनोरंजन करने की कोशिश कर रहे हैं। इसे ही कॉमेडी बता रहे हैं। लेकिन जरूरी है तो टुनटुन उर्फ उमा देवी खत्री जैसे कॉमेडियन के इतिहास को सहजने की जिन्होंने अपने दम पर पितृसतात्मक समाज के द्वारा बनाई गई बेडियों को तोड़ा।
बड़े पर्दे पर आगाज़
नौशाद साहब टुनटुन के करियर में इस तरह का बदलाव देख हैरान तो हुए लेकिन उन्होंने टुनटुन की अभिनय प्रतिभा को पहचाना फिल्मों में एक्टिंग करने का सुझाव दिया। वह फिल्मों में काम करने के लिए राज़ी तो हो गईं लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी। शर्त यह थी कि वह फिल्म करेंगी तो लेकिन सिर्फ दिलीप कुमार के साथ ही। टुनटुन को यह कहां मालूम था की उनकी यह तमन्ना बहुत जल्द ही पूरी हो जाएगी। टुनटुन को दिलीप कुमार के साथ 1950 में ‘बाबुल’ में काम करने का मौका मिल गया। टुनटुन का किरदार लोगों को बेहद पसंद आया। फिर क्या धीरे-धीरे उन्होंने अपनी एक्टिंग का जलवा बिखेरा और देखते ही देखते भारत की पहली महिला कॉमेडियन बन गईं। उनके लिए उस दौर में खास तरह से रोल लिखे जाते थे। अपने पांच दशक के करियर में टुनटुन ने करीब 200 फिल्मों में काम किया।
हिंदी सिनेमा की पहली महिला कॉमेडियन टुनटुन की मशहूर फिल्मों में आरपार, मोम की गुड़िया, बाबुल, उड़न खटोला, प्यासा, हाफ टिकट और मिस्टर एक्स इन मुंबई शामिल हैं। इन फिल्मों में उनके किरदार देखकर आप अपनी हंसी नहीं रोक पाएंगे। 90 के दशक में पति की मौत के बाद उन्होंने फिल्मों से खुद को अलग कर लिया। और साधारण जीवन जीने लगी। फिर 24 नवंबर, 2003 को टुनटुन इस दुनिया को अलविदा कह गईं और अपने छोड़ गई अपनी मुस्कान। इस तरह से टुनटुन ने अपने परिवार, समाज की परवाह किए बिना अपनी अलग पहचान बनाई और आने वाले पीढ़ी के लिए रास्ता दिखाया। अब तक सिनेमा के इतिहास में टुनटुन सिंह जैसी कोई कॉमेडियन नही आ पाई है।
आज की कॉमेडी और सिनेमा
बॉलीवुड फिल्मों में कॉमेडी सीन न हो तो फिल्म अधूरी सी लगती हैं। कॉमेडी सीन किसी भी फिल्म में जान डाल देती है। लेकिन पिछले कुछ दशक से कॉमेडी में बदलाव हुए है। कॉमेडी की परिभाषा ही मानो बदल सी गई है। अश्लील शब्दों का इस्तेमाल किए बगैर दर्शकों को हंसाने की प्रवृति कलाकारों में नही दिख रही है। लेकिन दुख की बात तो यह है कि आज लोग एक दूसरे का मजाक बनाकर लोगों का मनोरंजन करने की कोशिश कर रहे हैं। इसे ही कॉमेडी बता रहे हैं। लेकिन जरूरी है तो टुनटुन उर्फ उमा देवी खत्री जैसे कॉमेडियन के इतिहास को सहजने की जिन्होंने अपने दम पर पितृसतात्मक समाज के द्वारा बनाई गई महिलाओं के लिए बेड़ियों को तोड़ा और लाखों लोगों की प्रेरणा बनीं।
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