इंटरसेक्शनलजेंडर पीरियड्स लीव पर क्या सोचते हैं भारतीय मर्द, चलिए जानते हैं!

पीरियड्स लीव पर क्या सोचते हैं भारतीय मर्द, चलिए जानते हैं!

पीरियड्स को लेकर मौजूद भ्रांतियां और नकारात्मकता की वजह ही है कि जब भी इससे जुड़ी कोई बात या एक सकारात्मक कदम उठाया जाता है तो बहस में कई पहलूओं को हावी करके मूल विषय के महत्व से भटका दिया जाता है। इस बहस में लैंगिक असमानता की सोच, पीरियड्स को बीमारी मानना, कामकाजी क्षेत्र में लिंग आधारित भेदभाव और महिला विरोध की बातें सामने लाती है जिसमें पीरियड्स होने वाले लोगों की पीड़ा और आवश्यकता को साफ-साफ नंजरअंदाज कर दिया जाता है।

मंगल ग्रह पर पहुंचने वाली दुनिया की एक वास्तविकता यह भी है कि यहां महिलाओं के स्वास्थ्य, शरीर से जुड़ी बातों के बारे में ज्यादातर लोगों के पास संकीर्णता और रूढ़िवाद से भरी सोच है। पीरियड्स एक ऐसा ही विषय है जिसपर बात करना या उससे जुड़ी नीतियों पर पुरुषों की प्रतिक्रियाएं बहुत ही चौंकाने वाली होती हैं। पीरियड्स एक जैविक क्रिया है इस बात को नकारते हुए लोगों के अंदर रूढ़िवाद, असमानता और बीमारी जैसी बातें सामने आती हैं।

पीरियड्स को लेकर मौजूद भ्रांतियां और नकारात्मकता ही वजह है कि जब भी इससे जुड़ी कोई बात या एक सकारात्मक कदम उठाया जाता है तो बहस में अन्य पहलूओं को हावी करके मूल विषय को भटका दिया जाता है। इस बहस में लैंगिक असमानता की सोच, पीरियड्स को बीमारी मानना, कामकाजी क्षेत्र में लैंगिक भेदभाव और महिला विरोधी बातें सामने लाती हैं जिसमें पीरियड्स से गुज़रने वाले लोगों की पीड़ा और ज़रूरत को साफ-साफ नज़रअंदाज कर दिया जाता है। पीरियड्स के दौरान छुट्टी की नीति को भी अक्सर कामकाजी क्षेत्र में भेदभाव बढ़ाने का आरोप का सामना करना पड़ता है।

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हाल ही में स्पेन की सरकार एक प्रस्ताव लेकर आई है जिसमें वहां महिलाओं को हर महीने तीन दिन की अतिरिक्त पेड छुट्टी यानी मेंस्ट्रुअल लीव के तौर पर दी जाएगी। हालांकि, प्रस्ताव का अभी पूरा ब्यौरा सामने नहीं आया है। बीबीसी की ख़बर के मुताबिक मीडिया में आई जानकारियों के अनुसार इस ड्राफ्ट में यह प्रावधान दिया गया है कि महिलाओं को इसके लिए मेंस्ट्रुअल साइकिल में गंभीर लक्षणों का होना ज़रूरी होगा। पीरियड्स के दौरान अधिक दर्द की शिकायत होने के लक्षणों के लिए डॉक्टर के नोट की आवश्यकता होगी। यदि स्पेन की संसद में यह बिल पास होता है तो स्पेन महिलाओं को मेंस्ट्रुअल लीव देने वाला पहला यूरोपीय देश बन जाएगा।

पीरियड्स को लेकर मौजूद भ्रांतियां और नकारात्मकता ही वजह है कि जब भी इससे जुड़ी कोई बात या एक सकारात्मक कदम उठाया जाता है तो बहस में कई पहलूओं को हावी करके मूल विषय से भटका दिया जाता है। इस बहस में लैंगिक असमानता की सोच, पीरियड्स को बीमारी मानना, कामकाजी क्षेत्र में लैंगिक भेदभाव सामने आते हैं जिसमें पीरियड्स से गुज़रनेवाले लोगों की पीड़ा और आवश्यकता को साफ-साफ नज़रअंदाज कर दिया जाता है।

भारत में मेंस्ट्रुअल लीव पर लोगों की राय

भारत के परिदृश्य में पीरियड्स लीव पर बात की जाएं तो यहां समय-समय पर कार्यक्षेत्र में इसकी मांग की जाती है। भारत के बिहार राज्य में पीरियड्स लीव का प्रावधान है। साल 2020 में खाना डिलीवरी करने वाली जोमैटो ने पीरियड्स लीव को लेकर अपनी कंपनी में महिलाओं को एक साल में अतिरिक्त दस छुट्टी देने की नीति बनाई। बीते साल उत्तर प्रदेश की महिला शिक्षक संगठन ने भी पीरियड्स लीव की मांग की थी। हालांकि, उस दिशा में राज्य सरकार ने कोई बयान भी जारी नहीं किया था और मांग को भुला दिया गया। 

भारत में पीरियड्स लीव को लेकर पुरुषों की क्या राय है इसको जानने के लिए हमनें कुछ लोगों से बात की। हमारे सोशल मीडिया पर यह सवाल पूछने पर कुछ फॉलोअर ने पीरियड्स लीव देने के कदम को सही बताया है और इसके समर्थन में दिखें। इससे अलग कुछ अलग-अलग पेशों में काम करने वाले भारतीय पुरुषों की राय दबी जबान में इसके विपरीत ख्याल रखती है। 

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हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार से शिक्षक पद से रिटायर हुए चंद्रकेशव शर्मा (बदला हुआ नाम) की राय पीरियड्स लीव देने के ख़िलाफ़ हैं। उनका कहना है कि महिलाओं को काम पर जाने से पहले छुट्टी चाहिए तो बाहर जाकर काम करने की आवश्यकता क्या है। स्कूलों में पहले से ही स्टाफ की कमी है उस पर से मौजूदा स्टाफ में महिलाओं की अतिरिक्त छुट्टी व्यवस्था को और खराब करेगी। आगे वह कहते हैं, “मेरी राय में तो नहीं लगता कि महिलओं को इस तरह की छुट्टी की असल में ज़रूरत है। यह केवल कुछ लोगों की सोच है जिसको सब पर थोपा जाता है। हमारी इतनी लंबी नौकरी में कभी किसी मैडम के मुंह से कभी ऐसा कुछ नहीं सुनने को मिला है।”

ठीक ऐसा ही एक मल्टीनेशनल सॉफ्टवेयर कंपनी के लिए काम करने वाले 32 वर्षीय रोहित (बदला हुआ नाम) का मानना है कि आदमी और औरत जब बराबर है तो काम के दौरान एक को अलग ट्रीट करने की तो कोई खास ज़रूरत नहीं है। बराबरी और समानता की लड़ाई महिलाएं लड़ रही है यदि उनको काम के दौरान इस तरह का प्रिवलेज चाहिए तो यह तो वर्कप्लेस में उनकी पॉजिशन और हायरिंग पर बहुत असर डालेगा। कंपनी क्यों ऐसे वर्कर को लेगी जिसको उसे एक्ट्रा छुट्टी देनी पड़े। यदि औरतों को ज्यादा परेशानी होती है तो सिक लीव का ऑप्शन होता है। 

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दुनिया में केवल कुछ देशों में कानूनी तौर पर महिलाओं को पीरियड्स के दौरान छुट्टी का प्रावधान है। जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, इंडोनेशिया और जांबिया जैसे कुछ ऊंगली पर गिनती लायक देशों में ही फिलहाल पेड पीरियड्स लीव की राष्ट्रीय नीति बनी हुई है।

वहीं, इससे इतर कॉलेज जानेवाले 22 वर्षीय ईशान से पीरियड्स लीव के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि जो चीज हम लोगों ने कभी महसूस ही नहीं कि उस बारे में राय जाहिर करने का उनका कोई अधिकार नहीं है। पीरियड्स के दौरान कुछ लोगों को बहुत दर्द होता है। हमनें अपने साथ की कई लड़कियों को बहुत बुरी तरह से दर्द में देखा है। भले ही हर किसी के लिए पीरियड्स एक जैसे नहीं होते लेकिन कुछ लोगों के लिए तो बहुत पेनफुल होते हैं। उनको इस दौरान ज्यादा आराम की ज़रूरत होती है। पीरियड्स लीव का ऑप्शन वर्किंग वीमन के लिए होना चाहिए। भारत में इसे लागू होने से एक बात और होगी कम से कम लोग पीरियड्स को लेकर थोड़े सजग होंगे शायद।    

भारत सरकार के तहत काम करनेवाले 26 वर्षीय अमित (बदला हुआ नाम) का कहना है कि महिलाओं के ऑफिस में अभी भी बराबरी वाला स्पेस नहीं है। कई बार उनको उनको शारीरिक तौर पर कमज़ोर माना जाता है। पीरियड्स लीव मिलना काम में महिलाओं के प्रिफरेंस को कम कर देगा। पीरियड्स में परेशानी तो औरतों को होती है लेकिन उन्हें इसका सामना करना भी आता है। 

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मेंस्ट्रुअल लीव का इतिहास

दुनिया में केवल कुछ देशों में कानूनी तौर पर महिलाओं को पीरियड्स के दौरान छुट्टी का प्रावधान है। जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, इंडोनेशिया और जांबिया जैसे कुछ ऊंगली पर गिनती लायक देशों में ही फिलहाल पेड पीरियड्स लीव की राष्ट्रीय नीति बनी हुई है। इतिहास में जाकर बात करें की पीरियड्स के दौरान छुट्टी की मांग कोई नयी नहीं है। टाइम.कॉम में प्रकाशित लेख के अनुसार लगभग एक शताब्दी के समय से इस तरह की मांग की गई थी। सोवियत रूस में पहली बार औपचारिक तौर पर महिलाओं के लिए मेंस्ट्रुअल लीव की मांग की गई थी। साल 1920 के आखिर में जापान की लेबर यूनियन का इस पर ध्यान गया। साल 1947 के समय जापान में पीरियड्स लीव को लेकर कानून बना। 

हालांकि, पीरियड्स लीव के प्रावधान होने के बावजूद महिलाओं में इसको लेकर सहजता कम देखने को मिलती है। जापान में मेंस्ट्रुअल लीव पर अध्ययन करने वाली हांगकांग यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर इजुमी नकायामा ने एक दशक के दौरान जापान में महिलाओं की महावारी के दौरान ली गई छुट्टी के विषय पर शोध किया। 2014 के सरकारी शोध में पाया कि केवल 0.9 % महिलाओं ने इसके आवेदन किया। आवदेन न करने के की वजह शर्म और पुरुषों में इस विषय में कम समझ निकली। 2021 में पढ़ी लिखी और व्हाइट कॉलर जॉब वाली महिलाओं की इसमें और भी कम रुचि देखने को मिली।

भारत में जोमेटो के द्वारा अपने कर्मचारियों को 10 दिन की पेड पीरियड्स लीव देने की पॉलिसी के बारे में कंपनी की ओर से कहा गया है कि अगस्त 2020 से लागू इस योजना के बाद से 621 कर्मचारी इसके लिए आवेदन कर चुके हैं। दुनिया के कई देशों में पीरियड्स लीव को लेकर सहजता की कमी देखी गई है। कामकाजी क्षेत्र में उनकी छवि को नकारात्मक दिखाए जाने तक के लिए इस्तेमाल किया गया है। महिलाओं को होने वाली बीमारी मानने के लिए इसे दवा से ठीक करने जैसी सोच भी सामने आई है।

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पीरियड्स को लेकर चर्चा में शामिल कर्मचारियों की छुट्टी में उस समावेशी सोच को शामिल करने की भी ज़रूरत है जहां पीरियड्स केवल महिलाओं का विषय नहीं है बल्कि ट्रांस समुदाय के मेंस्ट्रुअल साइकिल से गुजरने वाले लोगों की भी बात की जाएं। उनकी आवश्यकता को भी पूरा करने की कोशिश की जाएं । 

डीडब्लूय में प्रकाशित लेख में बिर्ष ने ब्रिटेन नेटवर्क के साथ अपने अनुभव को साझा किया जिसमें महिलाओं की पीरियड्स के दौरान छुट्टी को लेकर संकीर्ण सोच सामने निकलकर आई। बहुत सी महिलाएं यदि नियमित रूप से हर महीने ये छुट्टियां लेती हैं तो उन्हें इसके नकारात्मक परिणाम भुगतने पड़ते है। उनपर अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है और नौकरी गवांने का डर भी होता है। यही नहीं अमेरिका जैसे देश में भी वेतन के साथ छुट्टी को बहुत मुश्किल बताया है क्योंकि अमेरिका में वेतन के साथ आमतौर पर बहुत कम छुट्टी मिलती है। 

भारत में पीरियड्स लीव

भारत में मेंस्ट्रूअल लीव के परिदृश्य में बाते करें तो मौजूदा समय में दर्जन भर से ज्यादा प्राइवेट कंपनियां है जो अपने यहां मेंस्ट्रुअल लीव की नीति का पालन करती है। साल 1992 से बिहार राज्य में महिलाओं को दो दिन के पीरियड्स लीव का प्रावधान है। ठीक इसी तरह इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार केरल के त्रिपुनिथुरा में स्थित गर्वमेंट गर्ल्स स्कूल में भी पीरियड्स के दौरान महिला शिक्षिका और लड़कियों के लिए छुट्टी का प्रावधान है। भारत में जैमेटो के अलावा स्विगी, बाईजू, कल्चर मशीन, मातृभूमि (मलयालम न्यूज़ चैनल), वैट एंड ड्राई (नई दिल्ली स्थिति कंपनी), गो जूप ऑनलाइन प्राईवेट लिमेटेड जैसी कई कंपनियां अपने यहां महिलाओं को पेड पीरियड्स लीव की सुविधा मुहैया करवाती है। 

महिलाओं के लिए पीरियड्स के दौरान छुट्टी की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए बहुत कदम उठाने आवश्यक है। देश में कानून और कंपनियों में नीति बनाकर शामिल ऐसे प्रावधान पीरियड्स के प्रति दकियानूसी सोच से मुक्ति मिलेगी। पीरियड्स को लेकर चर्चा में शामिल कर्मचारियों की छुट्टी में उस समावेशी सोच को शामिल करने की भी ज़रूरत है जहां पीरियड्स केवल महिलाओं का विषय नहीं है बल्कि ट्रांस, नॉन-बाइनरी सबको शामिल किया जाए, उनकी आवश्यकता को पूरा करने की कोशिश की जाए। 

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तस्वीर साभारः IndianStartupNews

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