मेनोपॉज जिन लोगों को पीरियड्स होता है, उनके शरीर में होनेवाला एक प्राकृतिक बदलाव है। मेनोपॉज़ के बाद हर महीने होनेवाला मेंस्ट्रुअल साइकल हमेशा के लिए बंद हो जाता है। यह स्थिति कई बदलाव लेकर सामने आती है जिसका असर शारीरिक और मानसिक दोंनो स्थिति पर पड़ता है। यब प्रक्रिया लगभग 40-50 की उम्र में लोगों को होती है। अगर इससे पहले शरीर में यह बदलाव देखने को मिलता है तो वह प्री-मैच्योर मेनोपॉज की स्थिति होती है। हाल ही में यूरोपियन हार्ट जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार प्री-मैच्योर मेनोपॉज का असर दिल पर पड़ता है जिससे उससे संबंधित बीमारियां होने की संभावना बढ़ जाती है।
इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित ख़बर के अनुसार 40 से कम उम्र में मेनोपॉज होने की वजह से दिल से जुड़ी बीमारियों होने का खतरा अधिक होता है। इस रिसर्च में 1.4 मिलियन महिलाओं को शामिल किया गया जिसमें पाया गया कि जितनी कम उम्र में मेनोपॉज होता है उतने ही हार्ट फेलियर और आर्टिअल फिब्रिलेशन का जोखिम अधिक होता है। शोधकर्ताओं ने मेनोपॉज की हिस्ट्री और हार्ट फेलियर की घटनाओं के संबंध पर शोध किया है। पीरियड्स के खत्म होने के बाद शरीर में हार्मोनल बदलाव की बड़ी प्रक्रिया होती है जिसकी वजह से महिलाओं का शरीर दिल से जुड़ी बीमारियों को लेकर अधिक संवेदनशील हो जाता है। मेनोपॉज की उम्र घटने के साथ हार्ट फेलियर होने का खतरा और भी ज्यादा बढ़ जाता है।
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रिसर्च में मेनोपॉज से गुज़र रही अलग-अलग उम्र की महिलाओं के शरीर में होने वाले बदलाव के बारे में तुलना की गई। मेनोपॉज़ होने के बाद हार्ट फेलियर होने की संभावना 45 से 49 साल की उम्र की महिलाओं में 11 प्रतिशत, 40 से 44 की उम्र के बीच की 23 फीसदी महिलाओं में यह खतरा देखा गया। 40 से कम उम्र में मेनोपॉज़ होने की वजह से 39 प्रतिशत में हार्ट फेलियर होने का जोखिम देखा गया। दिल की धड़कनों में अनियमिता यानी आर्टिअल फिब्रिलेशन का खतरा मेनोपज़ कम उम्र में होने पर अधिक बढ़ जाता है। यह खतरा 45 से 49 के आयुवर्ग में 4 फीसद, 40 से 44 के बीच 10 फीसद और 40 से कम उम्र में मेनोपॉज होने पर इसका खतरा 11 फीसदी बना रहता है।
द प्रिंट में छपी ख़बर के मुताबिक़ इस अध्ययन में प्री-मैच्योर मेनोपॉज, मेनोपॉज की उम्र, हार्ट फेलियर की घटनाएं और आर्टिअल फिब्रिलेशन के बीच संबंधों की जांच की गई। रिसर्च में शामिल डेटा कोरियन नैशनल हेल्थ इंश्योरेंस सिस्टम के हासिल किया गया। यह हर दो साल में हेल्थ स्क्रीनिंग करता है जिसमें 97 फीसद आबादी हिस्सा लेती है। इसमें मेनोपॉज होने वालो को 40 से कम उम्र, 40 से 44, 45 से 49 और 50 साल या उससे अधिक में बांटा गया। प्रीमैच्योर मेनोपॉज को 40 की उम्र से पहले होने में विभाजित किया गया।
रिसर्च में लगभग 28, 111 (2 फीसद) प्रतिभागियों की प्री-मैच्योर मेनोपॉज की हिस्ट्री पाई गई। इन महिलाओं में मेनोपॉज की उम्र 36.7 साल दर्ज की गई। रिसर्च में पाया गया कि प्रीमैच्योर मेनोपॉज का सामना करने वाली 33 फीसद महिलाओं में ह़दय गति रुकने का खतरा पाया गया। रिपोर्ट के अंत में इस अध्ययन की लेखिका डॉ. गा यून नम ने कहा है, “यह गलत धारणा है कि हार्ट से जुड़ी बीमारियां मुख्य तौर पर पुरुषों को प्रभावित करती हैं। इसका मतलब यह है कि बड़े स्तर पर जेंडर के आधार पर खतरे को नज़रअंदाज किया गया है। इस अध्ययन से संकेत मिलता है कि सामान्य तौर पर हृदय से जुड़ी बीमारियों के संबंध में पारंपरिक खतरे और धूम्रपान के अलावा प्रजनन इतिहास पर भी नियमित रूप से विचार करना चाहिए।”
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प्रीमैच्योर मेनोपॉज के कारण
आमतौर पर प्राकृतिक तौर पर महिलाओं में मेनोपॉज की उम्र 50 साल के आस-पास मानी गई है। औसतन 51-52 साल की उम्र में महिलाएं मेनोपॉज की प्रक्रिया से गुजरती हैं। इसमें अगर 40 की उम्र मे मेनोपॉज होता है तो वह प्री-मैच्योर मेनोपॉज कहलाता है। अगर 40- 45 साल की उम्र के बीच होता है तो उसे अर्ली यानी समय से पहले मेनोपॉज की कैटगरी में रखा गया है। प्रीमैच्योर मेनोपॉज होने के बहुत से कारण हैं जैसे- सर्जरी के दौरान शरीर से ओवरी और यूटरस (गर्भाश्य) निकाल देना, धूम्रपान, आनुवांशिक कारण, किसी गंभीर बीमारी होने की वजह से या फिर किसी तरह का संक्रमण।
मेनोपॉज के समय शरीर पर पड़ने वाला असर
मेनोपॉज की प्रक्रिया से गुजरते शरीर में कई तरह के लक्षण सामने आते हैं जिसका असर जीवनशैली को भी प्रभावित करता है। क्लीवलैंड क्लीनिक डॉटकाम के अनुसार मेनोपॉज के दौरान बढ़ती उम्र के साथ-साथ शरीर में हॉट फ्लैशेज यानी शरीर में एकदम से गर्मी का एहसास, अनिद्रा की समस्या, दिल की धड़कने बढ़ना, थकावट, वजाइनल ड्राईनेस, याददाशत, बालों का झड़ना, वजन बढ़ना, चिड़चिड़ापन जैसे अनेक लक्षण आते हैं।
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मेनोपॉज, महिलाएं और महत्वहीन
वर्तमान के तकनीकी और वैज्ञानिक दौर में भी महिलाओं के स्वास्थ्य को एक रहस्य के तौर पर देखा जाता है जिसके बारे में खुलकर बात करना बेशर्मी तक से जोड़ा जाता है। अगर बातें होती भी है तो पीरियड्स और मेनोपॉज पर जोक्स तक सीमित कर दी जाती है। मेनोपॉज को एक कलंक के तौर पर देखा जाता है। रूढ़िवादी धारणा इसे महिलाओं की प्रजनन क्षमता खत्म होना मतलब उनको कम मूल्यवान होने के रूप में भी देखती है। पीरियड्स खत्म होने के अलावा इसके बारे में लोगों में बहुत सीमित जानकारी मौजूद है। जिस वजह से मेनोपॉज के दौरान महिलाओं की सेहत पर पड़ने वाले असर को नज़रअंदाज कर दिया जाता है।
मेनोपॉज महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ा एक महत्वपूर्ण विषय है जिसके बारे में बहुत कम बात होती है। मेनोपॉज और इससे जुड़ी जानकारियों के बारें में शर्म की वजह से खुद महिलाएं इसे कम महत्व देती नज़र आती हैं। फोर्ब्स पत्रिका मे प्रकाशित एक लेख के अनुसार अमेरिका में 73 प्रतिशत महिलाओं मेनोपॉज के लक्षणों की जांच ही नहीं करा पाती हैं। अध्ययन में शामिल एक तिहाई महिलाएं (29 फीसद) ने मेनोपॉज की स्थिति में आने से पहले कभी उसके बारे में कभी कोई जानकारी ही नहीं मांगी।
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मेनोपॉज केवल महिलाओं का एक निजी विषय नहीं है बल्कि यह उनके और उनसे जुड़े हर व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करता है। हर महिलाओं की कार्यशैली को प्रभावित करता है। उनके व्यवहार और सेहत में बदलाव की वजह से उनके हर तरह के काम पर असर पड़ता है। घर से बाहर जाकर काम करने वाली महिलाओं के काम भी इससे अछूता नहीं है। याददाशत पर असर पड़ने की वजह से उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वर्कप्लेस में उनकी परफॉमेंस पर पड़ने वाले असर की वजह से उनका जॉब प्रमोशन तक प्रभावित होता है। मेनोपॉज पर खुलकर बात न करना वर्कप्लेस में लैंगिक भेदभाव को और बढ़ाता है।
मेनोपॉज से जुड़ी शर्म की वजह से उम्र बढ़ने की शर्म, मेनोपॉज पर बात करने के टैबू,और इसे अक्षमता से जोड़ा जाता है। जब तक मेनोपॉज और उससे जुड़े स्टिग्मा को हटाने की कोशिश नहीं होगी तबतक लोग चुपचाप और शर्म के तौर पर इससे जुड़ी परेशानियों का सामना करते रहेंगे। मेनोपॉज की अवस्था और महिलाओं की स्थिति को ध्यान में रखकर ही एक समावेशी वातावरण का निर्माण किया जा सकता है।
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तस्वीर साभारः Female Founders Fund