इतिहास मैरी वुलस्टोनक्राफ्ट के विचार कैसे भारतीय शिक्षा व्यवस्था की बेहतरी के लिए हो सकते हैं मददगार

मैरी वुलस्टोनक्राफ्ट के विचार कैसे भारतीय शिक्षा व्यवस्था की बेहतरी के लिए हो सकते हैं मददगार

मैरी वुलस्टोनक्राफ्ट एक ब्रिटिश लेखिका, दार्शनिक, नारीवादी थीं। इन्होंने आधुनिक समाज में महिलाओं की परिस्थितियों पर काम किया था। बतौर लेखिका इनका पहला प्रकाशित काम ही बेटियों की शिक्षा पर था।

नारीवादी मैरी वुलस्टोनक्राफ्ट कहती हैं, “जब तक महिलाओं को अधिक तर्कसंगत रूप से शिक्षित नहीं किया जाता है, तब तक मानवीय गुणों में प्रगति और ज्ञान में सुधार की निरंतर जांच होनी चाहिए।” वह महिलाओं की प्रगति के लिए तर्कशील शिक्षा की पैरवी उस दौर में करती हैं जिसे विश्व इतिहास में ‘एनलाइटनमेंट पीरियड’ कहा जाता है। इस दौर में जहां रूसो जैसे दार्शनिक, राजनीतिक विचारक हुए जो मानते थे कि महिलाओं को आज़ाद नहीं रहना चाहिए, उनमें अक्ल नहीं होती, वे तर्कसंगत नहीं होती इसीलिए नागरिक कहलाने के लायक भी नहीं है। रूसो की आलोचक जिन्हें ‘मदर ऑफ़ फेमिनिज़म‘ भी कहा जाता है, मैरी वुलस्टोनक्राफ्ट इस बेबुनियाद विचार को नकारते हुए यह बात रखती हैं कि महिलाओं तक शिक्षा पहुंचाई ही नहीं गई है तो वे अपनी बौद्धिकता को कैसे पहचानेंगी।

मैरी वुलस्टोनक्राफ्ट एक ब्रिटिश लेखिका, दार्शनिक, नारीवादी थीं। इन्होंने आधुनिक समाज में महिलाओं की परिस्थितियों पर काम किया था। बतौर लेखिका इनका पहला प्रकाशित काम ही बेटियों की शिक्षा पर था। लिखने की यात्रा में इन्होंने राजनीति, इतिहास, दर्शन आदि विषयों के बारे में पैंपलेट, उपन्यासों के ज़रिए विस्तार से लिखा। यहां एक सवाल आता है कि क्या मैरी वुलस्टोनक्राफ्ट के शिक्षा के विचार भारतीय व्यवस्था में विद्यार्थियों खासकर लड़कियों के जीवन की दिशा मोड़ सकते हैं?

प्रकृति और पालन-पोषण में अंतर है महिलाओं को कमज़ोर किए जाने की वजह

वुलस्टोनक्राफ्ट यह स्वीकार करती हैं कि महिलाएं शारीरिक तौर पर कमजोर होती हैं लेकिन सच्चाई यह है कि अगर ऐसा होता तो निखत ज़रीन, मैरी कॉम के उदाहरण हमारे सामने नहीं होते। इस बात का तर्क भी वुलस्टोनक्राफ्ट के ही तर्क में छिपा है कि लड़के-लड़की को दी जानेवाली शिक्षा और पालन-पोषण अलग होने की वजह से वे कमज़ोर साबित की जाती हैं। शिक्षा में भी हम देखते हैं कि लड़कियों को ऐसे विषय दिलाए जाते हैं जो घरेलू और व्यवहारिक होते हैं। उदाहरण के तौर पर यह कहना कि लड़कियां तो “गणित में होती ही कमज़ोर हैं।” इसका अर्थ है कि वे मानसिक रूप से विकसित नहीं होती हैं जबकि ये सब उनके पालन-पोषण की वजह से है।

समान शिक्षा और महिलाओं की यौनिकता पर एकाधिकार

मैरी महिला, पुरुष दोनों के लिए एक जैसी शिक्षा समान देने की बात करती हैं, जिससे दोनों में तर्क विकसित होगा, जो महिलाओं की मुक्ति का आधार बनेगा। साथ यह धारणा कि महिलाएं सिर्फ़ यौन प्राणी (सेक्सुअल बीइंग्स) हैं जो पुरुषों के लिए भोग की वस्तु हैं, इसे भी नष्ट करने में मदद मिलेगी। इससे महिलाओं के साथ सिर्फ़ एक यौन प्राणी की तरह नहीं बल्कि एक इंसान की तरह बर्ताव करने में मदद मिलेगी। इसे इस चीज़ से जोड़ा जा सकता है कि महिलाओं के साथ होनेवाली यौन हिंसा में एक पहलू यह भी है कि सेक्स एजुकेशन को लेकर भारतीय शिक्षा व्यवस्था ने आज तक कोई बड़ी पहल नहीं की है। हम देखते हैं कि प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक में महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग शिक्षण संस्थान बनाए गए हैं, बनाए जा रहे हैं। मैरी ऐसे शिक्षण संस्थानों का समर्थन नहीं करतीं। वह को-एड एजुकेशन का समर्थन करते हुए कहती हैं कि इससे महिला और पुरुष दोनों जेंडर के बीच के अंतर ख़त्म होंगे और समानता स्थापित होगी।

मैरी महिला, पुरुष दोनों के लिए एक जैसी शिक्षा समान देने की बात करती हैं, जिससे दोनों में तर्क विकसित होगा, जो महिलाओं की मुक्ति का आधार बनेगा। साथ यह धारणा कि महिलाएं सिर्फ़ यौन प्राणी (सेक्सुअल बीइंग्स) हैं जो पुरुषों के लिए भोग की वस्तु हैं, इसे भी नष्ट करने में मदद मिलेगी।

बच्चों में पढ़ने की आदत की शुरुआत

मौजूद वक्त में जब बच्चों के अंदर से स्किल्स, आर्ट, क्राफ्ट को खत्म किया जा रहा है तब इस बात पर ज़ोर देने की कोशिश ज्यादा होनी चाहिए कि बच्चों के अंदर प्राथमिक अवस्था में ही पढ़ने और लिखने की आदत डाली जाए। बहुत साधारण परिधान में रहने की सोच विकसित की जाए। भारतीय शिक्षा संस्थानों में दसवीं के बाद ग्यारहवीं से पसंदीदा विषयों को चुन लिया जाता है जो विज्ञान (साइंस), मानविकी (ह्यूमैनिटीज/आर्ट्स) और कॉमर्स (कॉमर्स) में बंटे होते हैं। लेकिन मैरी की सोच इससे कई गुना आगे है। वह जिस तरह की शिक्षा की पैरवी कर रही हैं उसमें बच्चा जब नौ वर्ष का ही होता है तभी उसके अंदर की प्रतिभाओं को पहचान कर उन्हें उन्हीं प्रतिभाओं में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहन देना चाहिए।

मैरी लड़कियों के लिए खासतौर पर यह कहती हैं कि उन्हें अपने अंदर कोई न कोई कौशल जरूर निर्मित करना चाहिए जिससे कि वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो सकें।

उदाहरण के तौर पर मैकेनिकल दिमागवाले बच्चों को अलग और लॉजिकल रीजनिंग के बच्चों को अलग-अलग शिक्षा देनी चाहिए। अलग-अलग स्किल के बच्चों को अलग-अलग पढ़ाया जाना चाहिए लेकिन उसमें भी लड़के और लड़कियों को साथ ही पढ़ाया जाना चाहिए। हम देखते हैं कि भारतीय शिक्षा के लिए यह कहा जाता है कि जीवन की पढ़ाई कक्षा से बाहर शुरू होती है। मैरी इसके लिए भी शिक्षा को ज़िम्मेदार मानते हुए यह पक्ष रखती हैं कि संस्थानों में ही बच्चों की स्थिति स्थापक बनाया जाना चाहिए ताकि जीवन के उतार चढ़ाव से वे लड़ सकें।

लड़कियों के लिए कौशल विकास के मायने

पढ़ते सभी हैं, लिखते सभी हैं लेकिन एक समान शिक्षा फिर भी प्रत्येक विद्यार्थी को कैसे अलग बनाती है? वह अलग बनाती है उसके अंदर के कौशल को निखारकर। मैरी लड़कियों के लिए खासतौर पर यह कहती हैं कि उन्हें अपने अंदर कोई न कोई कौशल जरूर निर्मित करना चाहिए जिससे कि वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो सकें। इस संदर्भ में महिलाओं की दो ड्यूटी अहम हो जाएगी, पहली कि वे तार्किक बनेंगी दूसरा वे बेहतर नागरिक बनेंगी, माँ बनेंगी। लड़का, लड़की दोनों के लिए समान खेल कूद की वह हिमायती थीं। उनका मानना था कि इससे टीम/समूह शक्ति निर्मित होने में मदद मिलती है। यह धारणा कि इस समाज में एकता नहीं है, इसे समझने के लिए शिक्षण संस्थानों में पहले झांकना ज़रूरी है कि बिना किसी भेदभाव के क्या बच्चों की मानसिक चेतना में एकता का भाव डाला गया है?

व्यक्तिगत सदाचार सामाजिक सदाचार का वाहक है

मैरी वुलस्टोनक्राफ्ट मानती हैं कि व्यक्ति (इंडिविजुअल) की प्रगति ज़रूरी है, जब एक व्यक्ति प्रगति करता है तब समाज के बाकी लोग भी प्रगति की राह पर चलते हैं। महिलाएं जो समाज की आधी हिस्सेदार हैं, अगर वे पिछड़ी रहेंगी तो समाज भी पिछड़ जाएगा। शिक्षा के बूते जब व्यक्ति तर्कशील बनता है, सजग रहता है तब उसमें सदाचार भी आते हैं जो एक समाज को बेहतर बनाते हैं। समाज का शोषणकारी व्यवहार और असमानताएं तभी खत्म हो सकती हैं जब प्रत्येक व्यक्ति को बराबरी मिले, प्राकृतिक मानवीय अधिकार मिलें।

मैरी वुलस्टोनक्राफ्ट के शिक्षा पर विचार बेहद प्रभावशाली हैं। भारतीय व्यवस्था में ये सभी गुण शामिल तो हैं लेकिन प्रभावी तरीके से नहीं। स्कूल को-एड भी हो तो लड़के-लड़कियों को अलग अलग बैठाते हैं। सेक्स एजुकेशन, मोरल एजुकेशन ढांचे से एकदम गायब है। खेल-कूद मुश्किल ही देखने को मिलते हैं। नैशनल एजुकेशन पॉलिसी देशभर में लागू हो चुकी है। इसके तहत मातृभाषा में पढ़ाई पर जोर दिया जा रहा है लेकिन उसमें खेल-कूद, सेक्स एजुकेशन का कोई ज़िक्र नहीं है। मैरी वुलस्टोनक्राफ्ट के नज़रिये से देखें तो कहा जा सकता है कि इंजीनियर, डॉक्टर, अधिकारी आदि के अलावा एक देश को, समाज को बेहतर नागरिक बनाने पर भी ज़ोर देना चाहिए।


स्रोत:

1 Infed. Org

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