समाजविज्ञान और तकनीक डिजिटल समानता की लड़ाई और ऑनलाइन लैंगिक हिंसा की कहानियां 

डिजिटल समानता की लड़ाई और ऑनलाइन लैंगिक हिंसा की कहानियां 

टेकसखी हेल्पलाइन की टेकसखियां हमें बताती हैं कि तकनीक से जुड़ी यह लैंगिक हिंसा किसी एक रूप, किसी एक प्लैटफ़ॅार्म या चलन तक सीमित नहीं है। साथ ही यह एक सुरक्षित नारीवादी इंटरनेट बनाने की ज़रूरत अभी भी एक प्राथमिकता बनी हुई है।

पिछले कुछ सालों में भारत में मोबाइल पर इंटरनेट इस्तेमाल करने के नये-नये तरीक़े अपनाने में काफ़ी तेज़ी दिखाई दी। फिर भी इसमें जेंडर के आधार पर एक बहुत बड़ा अंतर नज़र आता है। आज भी 51% पुरुषों की तुलना में केवल 30% महिलाओं की ही मोबाइल इंटरनेट तक पहुंच है। देखा जाए तो पहुंच का यह मुद्दा वास्तव में मोबाइल किसके पास है, इससे जुड़ा हुआ है। आंकड़े बताते हैं 79% पुरुषों की तुलना में केवल 67% महिलाओं के पास ही किसी प्रकार का अपना फ़ोन है। 

जहां महिलाओं की डिजिटल जगहों पर पहुंच बढ़ी है, तो उसकी वजह अधिकतर उनके बच्चों की ऑनलाइन शिक्षा रही जिसके लिए उन्हें ऐसे फ़ोन या डिवाइस दिए गए जिन पर इंटरनेट चलता हो। इस सामाजिक स्वीकृति के दायरे यानि बच्चों की शिक्षा के अलावा इंटरनेट का इस्तेमाल करने में महिलाएं एक हिचकिचाहट महसूस करती हैं जैसा कि नायशा का अनुभव था।

महिलाओं को आर्थिक अवसरों से दूर करती ऑनलाइन लैंगिक हिंसा

नायशा इंटरनेट पर काम ढूंढ रही थीं। उन्हें एक ऐसा प्लैटफॉर्म मिला जहां पंजीकरण शुल्क देने के बाद रोज़ काम भेजकर उसी दिन पेमेंट करने की बात कही जा रही थी। काम के शुरुआती दौर में उनको कुछ पेमेंट दिया भी गया। इसके बाद इस सिलसिले को आगे बढ़ाने के लिए उनसे एक बड़ी रक़म देने को कहा गया। इस बार उनको कोई पैसा वापस नहीं मिला।नायशा के बार-बार पूछने पर भी जब कोई जवाब नहीं मिला तो उन्हें एहसास हुआ कि उनके साथ धोखा हुआ है। इतना सब होने पर भी उन्होंने अपने साथी को डांट या इससे भी कुछ बुरा होने के डर से इस बारे में कुछ नहीं बताया और न ही मदद मांगी। उन्होंने डिजिटल सुरक्षा के मुद्दों पर महिलाओं और हाशिये के लैंगिक और यौनिक पहचान से आनेवाले लोगों का समर्थन करनेवाली एक हेल्पलाइन, टेकसखी की मदद ली। टेकसखी से उन्हें राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल के साथ-साथ अपने बैंक में भी एक शिकायत दर्ज करने के बारे में तकनीकी मदद मिली।

टेकसखी सहायिका ने उन्हें उनकी सबसे निकट बैंक शाखा का पता जानने की प्रक्रिया के बारे में बताया। साथ ही पैसों को वापस लेने के लिए शिकायत लिखने के बारे में भी बताया। नायशा को न सिर्फ़ पूरी जानकारी दी गई बल्कि उन्हें अपनी बात रखने के लिए एक ऐसी भरोसेमंद जगह भी मिली जहां वह बिना किसी हिंसा के डर या आर्थिक नुक़सान के अपनी बात कह पाई। टेकसखी द्वारा उन्हें पूरी हमदर्दी के साथ सुनते हुए अपनी समस्या को सुलझाने के लिए आगे क़दम लेने के लिए प्रोत्साहित किया गया।

ऑनलाइन लैंगिक हिंसा का गढ़ बनता सोशल मीडिया

आमतौर पर डिजिटल जगहों पर महिलाओं की मौजूदगी पुरषों के मुकाबले कम नज़र आती है। ऑनलाइन लैंगिक हिंसा के कारण उनकी मौजूदगी और भी कम हो गई है। इसीलिए महिलाएं इंटरनेट पर सिर्फ उन्हीं लोगों से जुड़ती हैं जिनको वे जानती हैं। फ़िरोज़ा ने इस चलन को नज़रअंदाज़ करते हुए एक लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर एक व्यक्ति के साथ चैट करना शुरू किया। जान-पहचान हो जाने के बाद उन्होंने उससे आमने-सामने मुलाक़ात की, लेकिन मिलने के बाद फ़िरोज़ा ने उस व्यक्ति से आगे कोई मेल-जोल ना रखने का फै़सला किया।

इस पर उस व्यक्ति ने उन्हें ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया कि अगर वह उनके साथ रोज़ बात नहीं करेंगी तो वह उनकी चैट और तस्वीरें उनके दोस्तों और उनके साथी को भेज देगा। हमारा पितृसत्तात्मक समाज फिरोज़ा जैसी महिलाओं को किसी भी अनजान व्यक्ति से सामाजिक जुड़ाव बनाने से रोकता है। इसलिए इस तरह की बातों का सबके सामने आ जाना उनमें डर पैदा कर देता है। उन्हें डर होता है कि उनका फ़ोन छीन लिया जाएगा या इंटरनेट का इस्तेमाल सीमित कर दिया जाएगा या इससे भी बुरा उनके साथ हिंसा भी हो सकती है।

जेंडर और यौनिक रूप से अल्पसंख्यक लोगों को इन ऑनलाइन जगहों पर आने में अक्सर बहुत सी कठिनाइयों, ख़तरों और हिंसा का सामना करना पड़ता है। यहां तक कि अनौपचारिक और मामूली से रोज़ के ऑनलाइन मेल-जोल में भी।

इन्हीं सब बातों को जानते हुए उस व्यक्ति ने फिरोज़ा को भावनात्मक रूप से परेशान किया जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ने लगा। उन्होंने टेकसखी हेल्पलाइन से मदद मांगी जहां एक टेकसखी ने सबसे पहले उन्हें यह समझाया कि अपने साथ होनेवाली इस हिंसा के लिए वह ज़िम्मेदार नहीं हैं। ऑनलाइन जलैंगिक हिंसा का सामना करने पर सबसे पहले ख़ुद को ग़लत ठहराना, ज़िम्मेदार मानना बहुत आम है। टेकसखी ने उन्हें स्थानीय और समुदाय आधारित महिला सहायता संगठनों के साथ-साथ एक वकीलों के कलेक्टिव के बारे में जानकारी दी ताकि एक मजबूत समर्थन प्रणाली तक उनकी पहुंच सुनिश्चित की जा सके। इसके अलावा टेकसखी ने उनसे इन सभी तरीक़ों को अपनाने के नतीजे में सामने आ सकने वाले संभावित परिणामों के बारे में भी एक-एक करके बात की ताकि फ़िरोज़ा सब कुछ जानते हुए आगे के लिए फ़ैसला ले सकें और साथ ही टेकसखी ने उन्हें सलाह दी कि अगर उन्हें ज़रूरी लगता है तो वह कोई भी क़दम उठाने से पहले इन सब तरीक़ों के बारे में अच्छी तरह से सोच विचार कर लें।

वित्तीय धोखाधड़ी और लैंगिक हिंसा

तकनीक से जुड़ी इस लैंगिक हिंसा में आम तौर पर परेशान करनेवाले फोन कॉल, किसी की सहमति के बिना उसकी निजी तस्वीरों को इंटरनेट पर डालना और ऑनलाइन यौन हिंसा शामिल हैं। लेकिन साथ ही अन्य साइबर अपराधों के साथ लैंगिक भेदभाव भी बढ़ रहा है। जहां भारत में ऑनलाइन जगहों पर वित्तीय और बैंकिंग सेवाओं का उपयोग करनेवाले लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, मोबाइल पर अपना पैसों का अकाउंट रखने वाले पुरुषों और महिलाओं के बीच 73% का अंतर है।

टेकसखी हेल्पलाइन की टेकसखियां हमें बताती हैं कि तकनीक से जुड़ी यह लैंगिक हिंसा किसी एक रूप, किसी एक प्लैटफ़ॅार्म या चलन तक सीमित नहीं है। साथ ही यह एक सुरक्षित नारीवादी इंटरनेट बनाने की ज़रूरत अभी भी एक प्राथमिकता बनी हुई है।

महिलाओं की इस छोटी संख्या में से एक हैं प्रीती, जिनकी अपने मोबाइल के ज़रिये वित्तीय सेवाओं तक पहुंच थी। फिर भी उनके साथ वित्तीय धोखाधड़ी हुई जहां उनसे तत्काल लोन लेने की प्रक्रिया पूरी करने के लिए एक सेल्फ़ी अपलोड करने को कहा गया। उनको लोन तो मिल गया लेकिन भुगतान करने की आख़िरी तारीख़ से एक दिन पहले उस लोन ऐप कंपनी से किसी ने उन्हें कॉल करके कहा कि उनकी सेल्फी को उनके सोशल मीडिया अकाउंट्स की किसी तस्वीर के साथ ’मॉर्फ’ करते हुए एक अश्लील तस्वीर बनाकर उनके कॉन्टेक्ट लिस्ट में मौजूद सभी लोगों को भेज दिया जाएगा। कर्ज़ चुकाने के बाद भी यह ब्लैकमेल और उत्पीड़न जारी रहा।

मदद ढूंढने की कोशिश में प्रीति को टेकसखी हेल्पलाइन के बारे में पता चला। टेकसखी ने प्रीती को बताया कि इस तरह से लोन ऐप्लिकेशन के ज़रिए ब्लैकमेल और तस्वीरें बिगाड़ने की धमकी देने का चलन बहुत बढ़ गया है। साथ ही उन्हें एक महिला हेल्पलाइन, वकीलों के कलेक्टिव और राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल पर शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया की एक-एक करके जानकारी दी गई। टेकसखी ने उन्हें यह भी बताया कि कैसे उन चैट प्लैटफ़ॉर्म्स, जिनका इस्तेमाल वे लोग ब्लैकमेलिंग के लिए कर रहे हैं, पर ही इस तरह के ब्लैकमेलरों की रिपोर्ट की जा सकती है।

भारत में जनवरी 2022 तक इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या 65.8 करोड़ से भी अधिक देखी गई है। जेंडर और यौनिक रूप से अल्पसंख्यक लोगों को इन ऑनलाइन जगहों पर आने में अक्सर बहुत सी कठिनाइयों, ख़तरों और हिंसा का सामना करना पड़ता है। यहां तक कि अनौपचारिक और मामूली से रोज़ के ऑनलाइन मेल-जोल में भी। इस तरह के अनुभव उनकी इंटरनेट पर मौजूदगी को सीमित करते हैं। वे ख़ुद ही अपने आप पर नियंत्रण लगाने लगते हैं। इससे उन्हें मिलनेवाले अवसर कम हो जाते हैं और उनके सुरक्षा, अभिव्यक्ति और मौलिक आज़ादी के अधिकारों का हनन होता है।

टेकसखी हेल्पलाइन की टेकसखियां हमें बताती हैं कि तकनीक से जुड़ी यह लैंगिक हिंसा किसी एक रूप, किसी एक प्लैटफ़ॅार्म या चलन तक सीमित नहीं है। साथ ही यह एक सुरक्षित नारीवादी इंटरनेट बनाने की ज़रूरत अभी भी एक प्राथमिकता बनी हुई है। टेकसखी, महिलाओं, लड़कियों, ट्रांस, नॉन बाइनरी और क्वीयर लोगों के रोज़मर्रा के जीवन में ऑनलाइन जगहों पर होनेवाली हिंसा और नुकसान के अनुभवों के लिए मदद करने के अपने वादे को फिर से दोहराती है।


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