समाजकानून और नीति बॉम्बे हाई कोर्ट का ज़रूरी फ़ैसला, दहेज देने से बेटियों का संपत्ति में हक़ खत्म नहीं हो जाता

बॉम्बे हाई कोर्ट का ज़रूरी फ़ैसला, दहेज देने से बेटियों का संपत्ति में हक़ खत्म नहीं हो जाता

महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित करने की कोशिश हमेशा की जाती रही है, संपत्ति का अधिकार भी इसका एक हिस्सा ही है। पिता की मौत के बाद संपत्ति को बेटों द्वारा अपने नाम करा लेना नयी कहानी नहीं है। अगर कभी भी किसी बहन या बेटी ने अपने संपत्ति के अधिकार का सवाल उठाया है उसे रिश्तें बचाने के नाम पर और बाप/ भाइयों की इज़्ज़त का ठेकेदार बनाकर चुप करवा दिया जाता है।

बॉम्बे हाई कोर्ट की गोवा बेंच ने हाल ही में एक फैसला दिया कि अगर किसी बेटी को उसकी शादी के समय दहेज दिया जाता है, तो भी परिवार की संपत्ति में उसका अधिकार खत्म नहीं होता है और वह शादी के बाद भी दावा कर सकती है। जस्टिस महेश सोनक ने एक परिवार की इस दलील को खारिज कर दिया कि चूंकि चारों बेटियों को उनकी शादी के समय कुछ दहेज दिया गया था, इसलिए वे परिवार की संपत्ति में किसी भी अधिकार का दावा नहीं कर सकती हैं।

कोर्ट ने क्या कहा

बॉम्बे हाई कोर्ट इस केस में घर की सबसे बड़ी बेटी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उसने अपनी माँ और चार भाइयों के खिलाफ अपने परिवार की संपत्ति में किसी तीसरे पक्ष के अधिकार बनाने पर रोक लगाने की मांग की थी। याचिकाकर्ता के चार भाइयों और माँ ने उसके मृत पिता की किसी भी संपत्ति में उसे हिस्सा नहीं दिया था। याचिकाकर्ता ने बताया कि मां और अन्य बहनों ने उसके दो भाइयों के पक्ष में 1990 में किए गए ट्रांसफर डीड के लिए सहमति दी थी। इस हस्तांतरण विलेख के आधार पर, परिवार की दुकान और घर दोनों भाइयों के पक्ष में स्थानांतरित कर दिए गए। अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि उसे साल 1994 में ही इस डीड के बारे में पता चला और बाद में उसने दीवानी अदालत के समक्ष कार्यवाही शुरू की।

भाइयों ने तर्क दिया कि उनकी बहन का इस संपत्ति में कोई अधिकार नहीं है। वे संपत्ति के ‘मौखिक विभाजन’ पर निर्भर थे, जिसमें उनकी अन्य तीन बहनों ने संपत्ति पर अपने अधिकारों का त्याग कर दिया था क्योंकि उन्हें भी उनकी शादी के समय दहेज दिया गया था। उनका यह तर्क कि शादी के समय उन्हें पर्याप्त मात्रा में दहेज दिया गया था इसीलिए उनका अब पिता की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है, इस तर्क पर हाई कोर्ट ने एक बेहद ज़रूरी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा, “भले ही यह मान लिया जाए कि बेटियों को कुछ दहेज दिया गया था, इसका मतलब यह नहीं है कि बेटियों का पारिवारिक संपत्ति में कोई अधिकार नहीं है। पिता की मौत के बाद बेटियों के अधिकारों को उस तरह से समाप्त नहीं किया जा सकता, जिस तरह से भाइयों द्वारा उन्हें समाप्त करने का प्रयास किया गया है।”

पर्याप्त मात्रा में दहेज़ देने और मौखिक रूप से अपने आप ही संपत्ति का विभाजन करने के तर्क पर जज ने कहा कि इस तरह की दलील को बनाए रखने के लिए कोई सबूत नहीं है। केवल यह कहना कि कुछ पारिवारिक व्यवस्था थी जिसके द्वारा चार बेटियों को उनके शादी के वक्त दहेज दिया गया था, परिवार की व्यवस्था या मौखिक विभाजन के अवयवों को स्पष्ट करने के लिए काफी नहीं हैं। दूसरे, पुर्तगाली नागरिक संहिता के अनुच्छेद 2184 के संदर्भ में, एक विभाजन जो केवल एक संयुक्त स्थिति का विच्छेद है, मौखिक रूप से प्रभावित नहीं किया जा सकता है और आवश्यक रूप से एक लिखित दस्तावेज द्वारा होना चाहिए।

हाई कोर्ट ने आगे कहा कि “रिकॉर्ड पर सबूत से पता चलता है कि बहनों को बाहर करने के लिए संयुक्त परिवार की संपत्ति को भाइयों ने हड़प लिया गया था। सिर्फ इसलिए कि बहनों में से एक ने भाइयों के पक्ष में गवाही दी है, इसका मतलब यह नहीं है कि पारिवारिक व्यवस्था या मौखिक विभाजन का मामला विधिवत साबित हो गया था।”

दहेज के नाम पर बेटियों को किया जाता है संपत्ति के अधिकार से दख़ल

घर में बंधी हुई, समाज में अधिकारों से वंचित, और कार्यस्थल पर लैंगिक पक्षपात के अधीन, महिलाओं ने पूरे इतिहास में सारा खामियाज़ा भुगता है। यह केस शादीशुदा महिलाओं का अपने पिता और माता की संपत्ति में अधिकार के लिए एक बड़ी जीत की तरह है। बॉम्बे हाई कोर्ट की दहेज़ को लेकर टिप्पणी भी महिलाओं के संपत्ति के अधिकार को दिलवाने में मददगार साबित होगी  क्योंकि आज तक महिलाओं को उनके संपत्ति के अधिकार से दहेज़ का पैसा और माल गिना कर ही दूर रखा जाता रहा है। जबकि आज के समय में अगर दहेज़ देने के पीछे का उद्देश्य देखें तो पता चलेगा कि रिश्तेदरों में अपनी नाक और समाज में अपनी साख को बचाने के लिए दहे दिया रहा है। इस दहेज़ को देने के बाद बेटी/बहन के हक़ की संपत्ति से उन्हें दूर किया जा रहा है।

अगर महिलाओं को संपत्ति पर अधिकार दे दिया जाएगा तो वे स्वतंत्र हो जाएंगी और स्वतंत्र महिलाएं पितृसत्तात्मक समाज को कभी पसंद नहीं आई हैं। पितृसत्तात्मक समाज हमेशा महिलाओं को अपने ऊपर आश्रित रखना पसंद करता है। उससे वो महिलाओं को अपने हिसाब से चला पाते हैं।

पारिवारिक संपत्ति में बेटियों के अधिकार को हड़पने का यह कोई नया मुद्दा नहीं है। यह मुद्दा लगभग हर घर की कहानी है। हमने हमेशा देखा है कि महिलाओं को हमेशा पुरुषों के पीछेवाले पायदान पर रखा जाता है। नतीजतन महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित करने की कोशिश हमेशा की जाती रही है, संपत्ति का अधिकार भी इसका एक हिस्सा ही है। पिता की मौत के बाद संपत्ति को बेटों द्वारा अपने नाम करा लेना नयी कहानी नहीं है। अगर कभी भी किसी बहन या बेटी ने अपने संपत्ति के अधिकार का सवाल उठाया है उसे रिश्तें बचाने के नाम पर और बाप/भाइयों की इज़्ज़त का ठेकेदार बनाकर चुप करवा दिया जाता है।

संपत्ति का अधिकार और मजबूत पितृसत्तात्मक परंपरा

महिलाओं को संपत्ति के अधिकार से दूर रखने के पीछे कई कारण हैं। जैसे महिलाओं की संपत्ति के अधिकार से संबंधित कानून के बारे में जागरूकता कम होना, माता-पिता को लगता है कि उनकी बेटी की शादी होने वाली है और वह अपने ससुराल चली जाएगी इसलिए उसे संपत्ति की ज़रूरत नहीं है, बेटा अपनी आखिरी सांस तक माता-पिता की देखभाल करेगा इसलिए संपत्ति पर उसका अधिकार है। इस तरह एक मजबूत पितृसत्तात्मक परंपरा चली आ रही है जिसमें महिलाओं को उन्हीं के अधिकार के लिए तरसा दिया जाता है। ऐसा इसीलिए भी है कि अगर महिलाओं को संपत्ति पर अधिकार दे दिया जाएगा तो वे स्वतंत्र हो जाएंगी और स्वतंत्र महिलाएं पितृसत्तात्मक समाज को कभी पसंद नहीं आई हैं। पितृसत्तात्मक समाज हमेशा महिलाओं को अपने ऊपर आश्रित रखना पसंद करता है। उससे वो महिलाओं को अपने हिसाब से चला पाते हैं।

पारिवारिक संपत्ति में बेटियों के अधिकार को हड़पने का यह कोई नया मुद्दा नहीं है। यह मुद्दा लगभग हर घर की कहानी है। हमने हमेशा देखा है कि महिलाओं को हमेशा पुरुषों के पीछेवाले पायदान पर रखा जाता है। नतीजतन महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित करने की कोशिश हमेशा की जाती रही है

हमारे देश में महिलाएं न केवल अपने माता-पिता की संपत्ति से वंचित हैं, बल्कि अपने ससुराल की संपत्ति से भी वंचित हैं।अगर किसी महिला के पति की मृत्यु हो जाती है, तो उसकी संपत्ति का वितरण परिवार के बड़े सदस्य द्वारा तय किया जाता है। ऐसे में महिला अपने पति की संपत्ति पर अपने अधिकार के बारे में नहीं बोल सकती हैं क्योंकि एक तो वह महिला है जिसे चुप रहना सिखाया जाता है और अगर वह ऐसी स्थिति में कुछ बोलती है तो उसे अपने मृत पति के घर से बेदख़ल कर दिया जाएगा।

भारत में, महिलाओं को विरासत और संपत्ति के मालिक होने के संबंध में पुरुषों के समान कानूनी अधिकार प्राप्त हैं। हर धर्म की महिला को संपत्ति का अधिकार दिया गया है। हिन्दू महिला हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के अंतर्गत संपत्ति का अधिकार रखती है। मुस्लिम महिला को शरीयत ने संपत्ति का अधिकार दिया हुआ है। पारसी और क्रिस्चियन महिलाओं को इंडियन सक्सेशन एक्ट के अंतर्गत संपत्ति का अधिकार है। लेकिन हमारे देश की लगभग आधे से अधिक महिलाएं पारिवारिक संपत्ति में अपने अधिकारों के बारे में अनजान हैं और भले ही वे अपने अधिकारों को जानती हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि उन्हें कैसे प्राप्त करना है या उन्हें कैसे लागू करना है। नतीजतन वे संपत्ति पाने में असफल रहती हैं।


Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content