स्वास्थ्यमानसिक स्वास्थ्य बैटर्ड वुमन सिंड्रोम: घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाएं जब लेती हैं हिंसा का सहारा

बैटर्ड वुमन सिंड्रोम: घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाएं जब लेती हैं हिंसा का सहारा

बैटर्ड वुमन सिंड्रोम (बीडब्ल्यूएस) एक मनोवैज्ञानिक स्थिति है। यह स्थिति व्यवहार के एक ऐसे स्वरूप को बताती है जो लंबे समय तक घरेलू हिंसा के सर्वाइवर लोगों में विकसित होती है।

बैटर्ड वुमन सिंड्रोम (बीडब्ल्यूएस) एक मनोवैज्ञानिक स्थिति है। यह स्थिति व्यवहार के एक ऐसे स्वरूप को बताती है जो लंबे समय तक घरेलू हिंसा के सर्वाइवर लोगों में विकसित होती है। ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में सभी कानूनी और मनोवैज्ञानिक क्षेत्रों में वैधता प्राप्त करनेवाली अच्छी तरह से स्वीकृत और अभी तक विकसित होने वाली अवधारणाओं में से एक ‘बैटर्ड वुमन सिंड्रोम‘ का सिद्धांत है। यह सिद्धांत घरेलू हिंसा का सामना करनेवाली उन महिलाओं पर लागू किया जाता है जो कानून के तहत अपने उत्पीड़कों को मारने की दोषी हैं। इस अवधारणा को कानून में इसलिए पेश किया गया है ताकि एक महिला द्वारा अपनी आत्मरक्षा में अपने हिंसक साथी द्वारा की गई हिंसा की तर्क के साथ व्याख्या की जा सके।

1970 के दशक में अमेरिकन मनोचिकित्सक डॉ. लेनोर वॉकर ने ‘बैटर्ड वुमन सिंड्रोम’ को एक मनोवैज्ञानिक सिद्धांत के रूप में पेश किया। यह सिद्धांत यह समझाने के लिए पेश किया गया कि हिंसा का सामना करनेवाली महिलाएं अपने हिंसक साथी को छोड़ने की बजाय उनकी हत्या करना क्यों पसंद करती हैं। लेनोर ई. वाकर ने उन महिलाओं की मनोवैज्ञानिक स्थिति की व्याख्या की जो अपने साथियों से हिंसा और उत्पीड़न का सामना करती हैं।

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घरेलू हिंसा में महिला को लंबे समय तक घरेलू शोषण, मौखिक उत्पीड़न, यौन शोषण, शारीरिक शोषण, सजा की धमकी आदि का सामना करना पड़ता है जो उसकी मानसिक स्थिति को प्रभावित करता है। इसे अक्सर पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) की एक सब-कैटगिरी मानी जाती है, जो युद्ध या यातना जैसी स्थितियों की तुलना में होती है। यह सिंड्रोम मनोवैज्ञानिक पक्षाघात का कारण बन जाता है जहां महिलाएं अवसाद से गुजरती हैं और अपने हमलावर (हिंसा करने वाले साथी) के लगातार उत्पीड़न के कारण हारा हुआ महसूस करती हैं।

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इस सिंड्रोम के दो प्रमुख तत्व, ‘चक्रीय हिंसा’ और ‘लर्नड हेल्पलेस्नेस’ हैं

चक्रीय हिंसा से मतलब हिंसा के दोहराव वाले पैटर्न से है जो आम तौर पर तीन अलग-अलग चरणों में होता है। वॉकर के इस चक्र के पहले चरण में तनाव निर्माण शामिल है जिसमें मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार और / या शारीरिक हिंसा के माध्यम से तनाव की क्रमिक वृद्धि शामिल है जिसमें महिला हिंसा करने वाले साथी को शांत करने का प्रयास करती है।

दूसरे चरण में, पहले चरण के दौरान बने तनावों के बेकाबू निर्वहन के कारण हिंसा गंभीर रूप से हानिकारक स्तरों तक बढ़ जाती है। फिर यह हिंसक साथी द्वारा विस्फोटक क्रोध के साथ शुरू होता है और यह शारीरिक हिंसा का रूप भी ले लेता है।

तीसरे चरण में, हिंसक साथी को पछतावा होता है और वह अपनी हिंसा के लिए इस वादे के साथ पश्चाताप करता है कि भविष्य में शारीरिक हिंसा बंद हो जाएगी। यह प्रेमपूर्ण अंतर्विरोध महिला का हिंसक साथी के साथ रहने के एक तर्क के रूप में काम करता है।

उसके बाद, यह चक्र फिर से शुरू होता है और हर बार हिंसा की तीव्रता और डिग्री बढ़ती जाती है। यह इस चक्र की प्रकृति है, विशेष रूप से तीसरे चरण में, जो एक महिला को हिंसक साथी के साथ रहने के लिए मजबूर करती है।

इसी सिद्धांत में बैटर्ड महिलाओं के व्यवहार की व्याख्या करने के लिए मार्टिन सेलिगमैन के मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से डॉ वाकर द्वारा ‘लर्नड हेल्पलेस्नेस (व्यक्त लाचारी)’ के सिद्धांत को सम्मिलित किया गया। यह लगातार पिटाई होने के कारण पीड़ित महिला को शक्तिहीन होने की स्थिति का वर्णन कराता है जो पीड़ित महिला को रिश्ते में हमेशा के लिए फँसा हुआ महसूस कराता है। पीड़ित महिला इसे रोकने के अपने प्रयासों के बावजूद हिंसक दुर्व्यवहार को झेलती रहती है, वह यह सोचकर बचने की इच्छा खो देती है कि ऐसी कोई संभावना नहीं है जिससे वो यहाँ से बाहर निकल सके। उसके अंदर यह भावना पैदा होती है कि हिंसक साथी शक्तिशाली है जो महिला के लिए उपलब्ध प्रतिक्रियाओं को प्रतिबंधित करता है। यही ‘लर्नड’ (व्यक्त) लाचारी उसे अपने साथी के अपमानजनक नियंत्रण से खुद को मुक्त करने में असमर्थ बना देती है।

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सर्वाइवर महिला क्यों इस हिंसक रिश्ते को निभाने के लिए मजबूर होती है?

हिंसक साथी द्वारा लगातार शारीरिक, यौन या भावनात्मक हिंसा पीड़ित की मारपीट करनेवाले साथी को नहीं छोड़ पाने की में असमर्थता में योगदान करती है। इसके साथ-साथ शर्म की भावना, आत्मसम्मान की हानि और अलगाव की भावना है जो कि सर्वाइवर को हिंसक साथी का साथ ना छोड़ने पर मजबूर करती है। यह काफी समय तक ऐसे हीन और हिंसक वातावरण में रहने के अनुभव होती है। हिंसक साथी द्वारा लगातार हिंसा और आतंक की स्थिति बनाई रखी जाती है जो पीड़ित को भयभीत रखती है। अंत में पीड़ित द्वारा हिंसा का जवाब हिंसा से देने के लिए तैयार करती है। यह मनोवैज्ञानिक सिद्धांत यह बताता है कि क्यों एक पीड़ित महिला सभी तरह की हिंसा सहने के लिए मजबूर होती है और बाद में वह अपने हमलावर को मारने के लिए मजबूर हो जाती है।

हिंसा के चक्र के तीसरे हिस्से में हिंसक साथी द्वार पश्चाताप और माफ़ी भी उन्हें इस बात को मानने पर मजबूर करता है कि कभी न कभी रिश्ते सुधर जाएंगे। बार-बार दुर्व्यवहार का सामना करते हुए बैटर्ड वुमन आखिरकार निष्क्रिय और असहाय होने लगती हैं। इसके आलावा आर्थिक कमज़ोरी, वित्तीय सहायता की कमी, बाहरी और पारिवारिक मदद की कमी, कानूनी सहायता की कमी के कारण उनको इस अपमानजनक संबंध में रहने को मजबूर करती हैं।

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नल्लाथांगल सिंड्रोम: द बैटरर्ड वुमन सिंड्रोम ऑफ इंडिया

भारत में, बैटर्ड वुमन सिंड्रोम की कानूनी मान्यता अभी भी अपने प्रारंभिक चरण में है। भारत में एक अन्य शब्द ‘नल्लाथांगल सिंड्रोम’, जो बीडब्ल्यूएस के लगभग समान है, का प्रयोग किया जाता है। मद्रास हाई कोर्ट ने साल 1989 में ‘नल्लाथांगल सिंड्रोम’ शब्द का इस्तेमाल किया, जिसे व्यापक रूप से भारत में बीडब्लूएस के पूर्ववर्ती शब्द के रूप में माना जाता है। सुयम्बुक्कनी बनाम तमिलनाडु राज्य के मामले में, एक लंबे अरसे से पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ लगातार घरेलू हिंसा की जाती थी और जब स्थिति असहनीय हो गई, तो पत्नी बच्चों को लेकर एक कुएं में कूद गई। लेकिन वह जीवित रही, और उसके बच्चों की मौत हो गई, जिसके कारण उसके खिलाफ हत्या का मुकदमा चलाया गया। अदालत ने भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 300 को छूट के रूप में उद्धृत करते हुए, उसे गैर-इरादतन हत्या का दोषी ठहराया क्योंकि महिला पति द्वार की गई हिंसा के कारण मानसिक रूप से परेशान थी।

BWS की अवधारणा को भारत में सार्वजनिक क्षेत्र में उस समय पेश किया गया था जब अभिनेत्री ऐश्वर्या राय ने फिल्म ‘प्रोवोक्ड’ में किरणजीत अहलूवालिया की भूमिका निभाई थी। यह फिल्म अहलूवालिया के वास्तविक जीवन के अनुभवों पर आधारित थी, जिसमें किरणजीत अहलूवालिया को पहले एक ब्रिटिश अदालत ने अपने पति की हत्या के लिए दोषी ठहराया था, और बाद में कम जिम्मेदारी के आधार पर उसकी सजा को पलट दिया।

फिल्म प्रोवोक्ड का एक सीन, तस्वीर साभार: MUBI

इसी अवधारणा पर कुछ समय पहले एक वेब सीरीज बनाई गई थी- ‘क्रिमिनल जस्टिस: बिहाइंड क्लोज्ड डोर्स’। यह वेब सीरीज घरेलू हिंसा का वह भयावह पक्ष दिखाता है कि घरेलू हिंसा क्या हो सकती है और अगर महिला की परिस्थितियों और मानसिक स्थिति पर विचार नहीं किया गया तो घोर अन्याय कैसे हो सकता है। यह शो बीडब्ल्यूएस की अवधारणा पर आधारित है और दिखाता है कि कैसे जनता, कानूनी व्यवस्था, और इसके अलावा, महिला (आरोपी) स्वयं सिंड्रोम के अस्तित्व और इसके प्रभाव से बेखबर है।

इस वेब सीरीज की कहानी एक ऐसी महिला के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक रात अपने ‘परफेक्ट’ पति का मर्डर कर देती है और अपना अपराध भी कबूल कर लेती है। पहली नज़र में, यह एक सीधा-साधा मामला प्रतीत होता है, लेकिन जब बचाव पक्ष के वकील केस की तह तक जाते हैं, तो असली कहानी सामने आती है। आरोपी महिला के साथ निरंतर यौन और मानसिक शोषण का एक चक्र स्पष्ट रूप से सामने आता है। एक वास्तविकता जिसे महिला पहले अपने आंतरिक आघात के कारण नकारती है, और बाद में मुकदमे की प्रगति पर खुलती है। पूरी श्रृंखला के दौरान, दर्शक महिला प्रधान चरित्र की दुविधा, घुटन और दर्द को महसूस कर सकते हैं, जो स्थिति की शिकार होने के बावजूद लगातार आंतरिक अपराधबोध से लड़ रही है।

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भारतीय कानून के अंतर्गत बैटर्ड वुमन सिंड्रोम एक बचाव के रूप में

भारतीय दंड संहिता के ढांचे के तहत, हत्या के बचाव के रूप में दो प्रकार के अपवाद उपलब्ध हैं। पहला सेक्शन 76 और 106 के तहत है और दूसरा सेक्शन 300 में दिया गया है। यह दोनों बचाव लोगों के लिए उपलब्ध सामान्य अपवाद हैं। भारतीय कानून के तहत बैटर्ड वुमन सिंड्रोम की कोई स्पष्ट वैधानिक मान्यता नहीं है। भारतीय दंड संहिता के तहत, किसी भी अपवाद को प्रथम दृष्टया उस मामले में लागू होते हुए नहीं देखा जाता है जिसमें बैटर्ड वुमन शामिल हैं।

मंजू लाकड़ा बनाम असम राज्य के मामले में पहली बार ‘नल्लाथांगल सिंड्रोम’ को बचाव के रूप में उपयोग किया गया। इस वाद के तथ्य यह थे कि पीड़िता आरोपी के साथ उसके पति द्वारा लगातार घरेलू हिंसा की जाती थी। एक बार उसका पति उसे लकड़ी से पीट रहा था। उसने उस अवसर पर जहाँ वह हिंसा को सहन करने में विफल रही, अपने पति से लकड़ी का टुकड़ा छीन लिया और उसे ही लकड़ी से मार दिया। उन चोटों के कारण उसके पति ने दम तोड़ दिया, पत्नी पर अपने पति की हत्या का आरोप लगाया गया। पीड़ित महिला ने अपने पति को मारने के लिए ‘बचाव के रूप में उकसावे’ का इस्तेमाल किया। गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने महिला को पति की हत्या के बजाय उसे गैर इरादतन हत्या के लिए दोषी ठहराया गया, क्योंकि उसके द्वारा किया गया कार्य निरंतर उकसावे के कारण था। उपरोक्त मामले को भारतीय न्यायालयों में नालंतंगल सिंड्रोम को पहचानने वाले पहले मामलों में से एक माना जाता है।

बीडब्ल्यूएस की अवधारणा हाल ही में मीडिया का ध्यान केंद्रित कर रही है। इस तरह की स्थिति के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए फिल्मों, टीवी श्रृंखलाओं और सार्वजनिक मंच पर चर्चा आयोजित की जा रही है। हालांकि इन सभी पहलों और ‘नल्लाथांगल सिंड्रोम’ की अवधारणा ने भारत में बीडब्ल्यूएस पर थोड़ा ध्यान आकर्षित किया है। हालाँकि सिंड्रोम की स्वीकृति अभी भी एक प्रारंभिक चरण में है। इसलिए, विधि निर्माताओं को बैटर्ड महिलाओं के ऐसे समूह के अस्तित्व को महसूस करने की आवश्यकता है, जिन्हें उनके पति/साझेदारों के हाथों पीटा गया है। ये महिलाएं दुर्व्यवहार के प्रतिशोध में हिंसा के कृत्यों का सहारा लेती हैं, और ऐसी हिंसा को उन विशेष परिस्थितियों के आलोक में आंका जाना चाहिए। इन महिलाओं को स्वयं को ‘मानसिक रूप से बीमार’ नहीं माना जाना चाहिए या घोषित किया जाना चाहिए बल्कि उन्हें उनकी स्थिति के अनुसार शिकार के रूप में देखा जाना चाहिए।

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तस्वीर साभार: Reeling Reviews

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