इंटरसेक्शनलLGBTQIA+ ऑरेंज इज़ द न्यू ब्लैक: महिला कैदियों की स्थिति और यौनिकता के प्रति पूर्वाग्रहों को दर्शाती सीरीज़

ऑरेंज इज़ द न्यू ब्लैक: महिला कैदियों की स्थिति और यौनिकता के प्रति पूर्वाग्रहों को दर्शाती सीरीज़

नेटफ्लिक्स की यह सीरीज़ मुख्य रूप से जेल में महिला कैदियों की बदतर स्थिति को रेखांकित करती है लेकिन उसके साथ हीं यह स्त्री-द्वेष, नस्लभेद, होमोफोबिया, भ्रष्टाचार और लाल फीताशाही पर भी बेबाकी से बात करती है। 

अमेरिकी कॉमेडी-ड्रामा टेलीविज़न सीरीज़ ‘ऑरेंज इज़ द न्यू ब्लैक’ पेपर करमन के संस्मरण, ऑरेंज इज़ द न्यू ब्लैक: माई ईयर इन ए विमेन प्रिज़न (2010) पर आधारित है, जो न्यूनतम सुरक्षा वाली संघीय जेल एफसीआई डैनबरी में उनके अनुभवों के बारे में है। श्रृंखला पाइपर चैपमैन (टेलर शिलिंग) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो न्यूयॉर्क शहर में रहनेवाली 30 साल की एक महिला है, जिसे न्यूनतम सुरक्षा वाली महिला संघीय जेल लिचफील्ड पेनिटेंटरी में 15 महीने की सजा सुनाई गई है।  

नेटफ्लिक्स की यह सीरीज़ मुख्य रूप से जेल में महिला कैदियों की बदतर स्थिति को रेखांकित करती है लेकिन उसके साथ हीं यह स्त्री-द्वेष, होमोफोबिया, नस्लभेद, भ्रष्टाचार और लाल फीताशाही पर भी बेबाकी से बात करती है। सीरीज़ की मुख्य कलाकार एक लेस्बियन महिला है जो अपनी एक्स-गर्लफ्रेंड एलेक्स से दूर होने के बाद एक हेट्रोसेक्सुअल रिश्ते में प्रवेश करती है और अपने नए साथी लैरी के साथ सगाई कर वह अपने पूर्व को भुलाकर एक सामान्य जीवन जीने का प्रयास कर रही है।हालांकि, उसका इतिहास एक बार फिर उसके जीवन में तैरता चला आता है जब उसे दस साल पहले अपनी प्रेमिका के लिए ड्रग तस्करी के पैसों को ले जाने के आरोप में 15 महीने की सज़ा सुनाई जाती है। संयोग से एलेक्स भी उसी जेल में अपनी सज़ा काट रही होती है, और कहानी में आगे उनकी करीबियां भी बढ़ती हैं। 

सीरीज़ में कई ऐसे मौके भी हैं जहां समाज में व्याप्त स्त्री-विरोधी भावना को दर्शाया गया है। जेल के सुरक्षाकर्मी महिला कैदियों के लिए ऐसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं मानों वे इंसान नहीं बल्कि कोई निर्जीव वस्तु हों।

तस्वीर साभारः Buzzfeed News

शुरुआत में पाइपर जेल का खाना, सेनिटेशन आदि की दयनीय स्थिति को देखकर विचलित हो जाती है और जेल- प्रशासन से सुधार-कार्य करने की गुहार लगाती है। परंतु प्रशासन के हर स्तर पर भ्रष्टाचार और लाल फीताशाही होने के कारण जेल की स्थिति में बमुश्किल ही कोई सुधार हो पाता है। सीरीज़ की शुरुआत से ही समाज में फल-फूल रही होमोफोबिया का खुलासा हो जाता है जो प्रशासन के रवैए में साफ़ झलकता है। पाइपर की यौनिक पहचान से अनिभिज्ञ जेल का एक करेक्शनल ऑफिसर और उसका काउंसलर, हिली, उसे पहले दिन ही लेस्बियन कैदियों से दूर रहने की सलाह देता है। वह कहता है कि लेस्बियन महिलाओं का चरित्र अच्छा नहीं होता और वह सेक्स की भूखी होती हैं। यही नहीं, पाइपर को उसकी पुरानी प्रेमिका के करीब आते देख यह ऑफिसर उसे “लेस्बियन गतिविधि” में संलग्न होने के लिए SHU में डाल देता है जिसकी स्थिति सामान्य जेल से कई गुना बदतर होती है।  

सीरीज़ में कई ऐसे मौके भी हैं जहां समाज में व्याप्त स्त्री-विरोधी भावना को दर्शाया गया है। जेल के सुरक्षाकर्मी महिला कैदियों के लिए ऐसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं मानों वे इंसान नहीं बल्कि कोई निर्जीव वस्तु हों। लगभग हर कैदी के “कैदी” बनने के इतिहास को बताते हुए हमें यह दिखाया जाता है कि कैसे कदम-कदम पर समाज उन्हें अपने महिला होने का आभास कराता है और उनके लिए लीक तैयार करता है जिसपे चलने से इंकार करने पर उन्हें तरह-तरह की यातनाएं झेलनी पड़ती हैं और अंततः परिस्थियाँ उन्हें जेल और कानून के अंधे कुएं में धकेल देती हैं। जैसे ही इन महिलाओं पर कैदी होने का धब्बा लगता है, समाज उन्हें पुनः स्वीकारने से इंकार कर देता है। 

पाइपर की यौनिक पहचान से अनिभिज्ञ जेल का एक करेक्शनल ऑफिसर और उसका काउंसलर, हिली, उसे पहले दिन ही लेस्बियन कैदियों से दूर रहने की सलाह देता है। वह कहता है कि लेस्बियन महिलाओं का चरित्र अच्छा नहीं होता और वह सेक्स की भूखी होती हैं।

तस्वीर साभारः The Guardian

समाज में जो नस्लवाद मौजूद है, नस्ल और रंग के आधार पर ठीक वही पृथकता जेल के भीतर भी दिखती है। जेल की डॉरमिटरी, बाथरूम सब ब्लैक और व्हाइट लोगों के लिए अलग-अलग है। ब्लैक लोगों के प्रति जेल में अलगाव का भाव होता है। हालांकि, जेल की सारी ब्लैक कैदी रेसिज्म के खिलाफ़ अपनी लड़ाई लड़ती हैं और बराबरी स्थापित करती हैं। साथ ही, सीरीज़ में सरकारी कामकाज में व्याप्त भ्रष्टाचार और लाल फीताशाही की पोल भी पूरी बेबाकी से खोली गई है। विभागों में जो अंदर की बात होती है, जिसे जनता तक नहीं पहुंचने दिया जाता, किस तरह घोटाले होते हैं, और नागरिकों को अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं सब पर सवाल उठाए गए हैं। 

महिला कैदियों को जेल की बदतर स्थिति और प्रशासन की लापरवाही के खिलाफ़ आंदोलन करते भी दिखाया गया है जो यह संदेश देता है कि हमें पितृसत्तात्मक और भ्रष्ट सरकार और उसके नौकरों से हमेशा लोहा लेने के लिए तैयार रहना चाहिए। सीरीज़ की सबसे अनोखी बात यह है कि यह पूरी कहानी और सारे महत्वपूर्ण मुद्दों को हास्य और व्यंग के माध्यम से सामने लाती है। हंसी-मज़ाक में सैंकड़ों सामाजिक मुद्दे और सरकारी लचरपन दिखा दिया जाता है। इस प्रकार, होमोसेक्सुअलिटी और उससे जुड़ी रूढ़ियों को ललकारती, महिलाओं के हक की बात करती और सामाजिक-राजनीतिक चुनौतियों पर कटाक्ष करती और नेटफ्लिक्स की यह सीरीज़ “ऑरेंज इज द न्यू ब्लैक”, सीरीज़ की दुनिया में एक नया मानक सेट करती है।


Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content