समाज वे महिला मानवाधिकार कार्यकर्ताएं जिन्होंने रूढ़िवादी समाज को दी चुनौती!

वे महिला मानवाधिकार कार्यकर्ताएं जिन्होंने रूढ़िवादी समाज को दी चुनौती!

मानवाधिकार मनुष्य श्रेणी में जन्म लेने से अधिकार के रूप में मिलते हैं, चाहे किसी व्यक्ति की जाति, लिंग, राष्ट्रीयता, जातीयता, भाषा, धर्म या समुदाय कुछ भी क्यों न हो। भेदभाव से मुक्ति, व्यक्ति की स्वतंत्रता, मौलिक अधिकारों की सुरक्षा, काम, शिक्षा आदि कई पहलुएं मानवाधिकार में शामिल हैं।

सत्ता और शासन के खेल में दुनिया में सबसे ज्यादा हाशिये के समुदाय के लोगों के अधिकारों का हनन हो रहा है। दुनिया में प्रत्येक नागरिक चाहे उसकी जाति, लिंग, राष्ट्रीयता, जातीयता, भाषा, धर्म या समुदाय कुछ भी क्यों न हो, समानता और स्वतंत्रता से जीने का हकदार है। भेदभाव से मुक्ति, व्यक्ति की स्वतंत्रता, मौलिक अधिकारों की सुरक्षा, काम, शिक्षा आदि कई पहलुएं मानवाधिकार में शामिल हैं। आज दुनिया के कई देशों में सत्ता पर वर्चस्व को लेकर संघर्ष हो रहा है। कई देशों में सरकारें तानाशाह बनकर लोकतंत्र को कुचल रही है। वहीं लोगों के मानवाधिकार को बचाने के क्षेत्र में काम कर रहे अनेक मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं जो लोगों के हित में काम कर रहे हैं। इनमें कई महिलाएं भी आगे हैं।

संयुक्त राष्ट्र महासभा की तीसरी समिति ने महिला मानवाधिकार रक्षकों (कार्यकर्ताओं) की सुरक्षा की दिशा में अंतरर्राष्ट्रीय महिला मानव अधिकार रक्षक दिवस को अपनाया। मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए बड़ी कुर्बानियां और लंबी लड़ाइयां लड़ी गई थीं और आज भी जारी है। दुनिया के अलग-अलग देशों में मानवाधिकारों के लिए लोग संघर्ष कर रहे हैं। इंटरनैशनल वीमन ह्यून राइट्स डिफेंडर डे पर चर्चा करते हुए हम कुछ महिला मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के बारे में जानेंगे।

ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता और वकील सुधा भारद्वाज

तस्वीर साभारः NewsClick

सुधा भारद्वाज का जन्म 1 नवंबर, 1961 में अमेरिका के बॉस्टन शहर में हुआ था। उनका बचपन अमेरिका में बीता। ग्यारह वर्ष की उम्र में सुधा अपनी माँ के साथ भारत आ गई। उनकी माँ दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू विश्विद्यालय में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर थीं। यहां उन्होंने अपनी किशोरावस्था में जेएनयू के छात्र आंदोलनों को करीब से देखा था। आगे की पढ़ाई के लिए सुधा का आईआईटी कानपुर जाना हुआ। यहीं से उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। गणित में एमएस करने के बाद, उन्होंने छत्तीसगढ़ जाने का फैसला किया और खदान श्रमिकों के साथ काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने ‘छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा’ ट्रेड यूनियन, के बैनर तले संगठित करना शुरू किया। यहां उन्होंने शंकर गुहा नियोगी के साथ मिलकर काम किया और संघ की महिला शाखा ‘महिला मुक्ति मोर्चा’ के तहत महिलाओं को संगठित करने का बीड़ा उठाया।

श्रमिकों के हक की लड़ाई के रास्ते में उनकी भेंट कई दफा पुलिस महकमे से होती थी। वहां वकीलों का सहारा लेना पड़ता था। इस कारण सुधा ने वर्ष 2000 में वकालात की डिग्री हासिल कर ली। इसके बाद, सुधा ने श्रमिकों के मामलों को न्यायालय में मजबूती के साथ उठाया। कई मसलों पर जनहित याचिकाएं दाखिल की। इस संघर्ष के दौरान उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। 28 अगस्त 2018 को, कई अन्य वकीलों, लेखकों और कार्यकर्ताओं के साथ, सुधा को भीमा कोरेगांव मामले में यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया और आरोपित किया गया। इस आरोप के तहत सुधा को तीन साल से ज्यादा जेल में रहना पड़ा।

सामाजिक कार्यकर्ता सुनीता कृष्णन

तस्वीर साभारः The Indian Logical

साल 1972 में जन्मी सुनीता कृष्णन सामाजिक कार्यकर्ता और गैर सरकारी संस्था ‘प्रज्वला’ की सह-संस्थापक हैं, जो मानव तस्करी के पीड़ितों को बचाता है, उनका पुनर्वास करता है और उन्हें समाज में दोबारा बसने में मदद करता है। बचपन से ही सुनीता को सामाजिक कार्यों के प्रति जुनून था। लगभग आठ साल की उम्र में उन्होंने मानसिक रूप से विकलांग बच्चों को नृत्य सिखाना शुरू किया। बारह साल की उम्र में उन्होंने वंचित बच्चों के लिए झुग्गियों में स्कूल चलाना शुरू किया। लेकिन इन सबके बीच महज पंद्रह साल की उम्र में, सुनीता दलित समुदाय के लिए नव-साक्षरता अभियान पर काम करते वक्त सामूहिक बलात्कार की शिकार हुईं। इस घटना के बाद सुनीता ने अपने जीवन को ऐसी ही महिलाओं को सशक्त करने में लगा दिया। अपनी संस्था के माध्यम से उन्होंने मानव तस्करी की शिकार महिलाओं का पुनर्वास की व्यवस्था की जाती है।

इसके अलावा संस्थान के माध्यम से अनेकों महिलाएं जो इस दौरान एचआईवी जैसी बीमारियों का शिकार हो जाती हैं, उन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। प्रज्वला के परिसर में मानव तस्करी के चंगुल से बचाई गई महिलाओं के बच्चों के लिए बेहतर शिक्षा का भी इंतजाम किया जाता है। सुनीता को साल 2011 में यौन हिंसा और मानव तस्करी से लड़ने के लिए केरल सरकार ने महिलाओं और बच्चों के लिए की निर्भया नीति के सलाहकार के रूप में नियुक्त किया। उन्हें 2016 में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया था।

महिला अधिकार कार्यकर्ता मानसी प्रधान

तस्वीर साभारः Odisha Dairy

4 अक्टूबर, 1962 को मानसी प्रधान का जन्म ओडिशा के खोरधा जिले के बानापुर ब्लॉक में अयातापुर नामक एक सुदूर गांव में हुआ। प्रधान महिला अधिकार कार्यकर्ता और लेखिका हैं। वह ऑनर फॉर वूमेन नेशनल कैंपेन की संस्थापक हैं, जो भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को समाप्त करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन है। वह निर्भया वाहिनी, निर्भया समारोह और ओवाईएसएस वुमन की संस्थापक हैं। साल 1987 में शुरू हुआ ओवाईएसएस वुमन भारत में महिलाओं को सशक्त करने की दिशा में काम कर रहा एक गैर-सरकारी संस्था है। आगे जाकर इसी संस्था ने महिलाओं के सम्मान में एक राष्ट्रीय अभियान की शुरुआत की, जिसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं के खिलाफ हो रहे हिंसा पर रोक लगाना था। साल 2012 में दिल्ली में हुए गैंग रेप की घटना के बाद यह आंदोलन और तेज हो गया। साल 2014 में, उन्हें रानी लक्ष्मी बाई स्त्री शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

बाल श्रम विरोधी कार्यकर्ता शांता सिन्हा

तस्वीर साभारः IDR

शांता सिन्हा का जन्म 7 जनवरी, 1950 को आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले में हुआ। वह ममिदिपुड़ी वेंकटरंगैया फाउंडेशन की संस्थापक हैं, जिसे एमवी फाउंडेशन के नाम से जाना जाता है। शांता बाल श्रम विरोधी कार्यकर्ता हैं। उन्होंने स्कूली शिक्षा सिकंदराबाद से हासिल की। फिर उच्च शिक्षा के लिए उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद आ गई। यहां साल 1972 में राजनीति विज्ञान विषय से एमए की डिग्री हासिल की। इसके बाद साल 1976 में जेएनयू से डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की। शांता का काम मुख्य रूप से बाल श्रम से जुड़ा हुआ है। इनके काम को देखते हुए इन्हें साल 1998 में पद्मश्री और साल 2003 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से नवाजा गया। बाल श्रम के क्षेत्र में किए गए इनके प्रयासों को देखते हुए इन्हें ‘राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ का अध्यक्ष बनाया गया।

फ्लाविया एग्नेस

तस्वीर साभारः Legally India

फ्लाविया एग्नेस एक महिला अधिकार वकील हैं जिन्हें वैवाहिक, तलाक और संपत्ति कानून में विशेषज्ञता हासिल है। एग्नेस का जन्म सन 1947 में मुंबई में हुआ था। उनका बचपन कर्नाटक के मैंगलोर में बीता। वह कादरी नामक एक छोटे से शहर में अपनी चाची के साथ रहती थी। अपनी चाची के मौत के बाद फिर वह यमन चली गईं, जहां उन्होंने टाइपराइटर की नौकरी की। इसी दौरान उनके पिता की मौत हो गई। इसके बाद, उनकी मां ने उनसे शादी करने का आग्रह किया। लेकिन यह शादी कथित तौर पर खराब शादी थी और उन्होंने तलाक लेने की कोशिश भी की। कानूनी और सांस्कृतिक संसाधन केंद्र MAJLIS की सह-संस्थापक के रूप में एग्नेस का प्राथमिक कार्य महिलाओं और बच्चों को गुणवत्तापूर्ण कानूनी सेवाएं प्रदान करना रहा है। उन्होंने कानूनी प्रणाली के भीतर महिलाओं के अधिकारों को सबसे आगे लाने, लोगों के जेंडर और पहचान के मुद्दों को प्रासंगिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।


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