हमारे समाज में यौनिकता और जेंडर को लेकर इतने पूर्वाग्रह और रूढ़िवाद है कि लोगों को महज इसी वजह से हिंसा का सामना करना पड़ता है। ट्रांस समुदाय के लोगों को भी अपने जीवन में इसी कारण अनेक तरह के दुर्व्यवहार और हिंसा का सामना करना पड़ता हैं। अपने जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव से गुजर चुकी ऐसी ही कहानी है ट्रांस महिला बेला शर्मा की। उन्होंने अपनी यौनिकता और पसंद की वजह से बचपन से लेकर युवाव्यवस्था तक अनेक परेशानियों और हिंसा का सामना किया। तमाम संघर्षों के बाद आज वह अपनी शर्तों पर जिंदगी जी रही है और समुदाय के हित में काम करने के साथ-साथ खुद के सपनों को पूरा करने में लगी हुई हैं। खुद की मर्जी से जीवन जीने के कारण एक ट्रांस महिला होने के संघर्ष
बेला शर्मा एक ट्रांस महिला और कलाकार हैं। उनका परिवार मूल रूप से बिहार से ताल्लुक रखता हैं और वर्तमान में वह दिल्ली में रहती हैं। उनकी पढ़ाई-लिखाई दिल्ली में ही हुई है। बचपन में अपनी पहचान को लेकर कशमकश और स्कूल में बच्चों के द्वारा बुली किए जाने की वजह से उन्होंने घर तक छोड़ दिया था। उसके बाद जब सड़कों पर उनके साथ यौन हिंसा हुई, तो उन्होंने इन सब चीजों से लड़ने का फैसला लिया और खुद की पसंद से जीवन जीना का तय किया। आज बेला अपने सपनों को जीने के लिए एक आम नागरिक की तरह न केवल मेहनत कर रही हैं, बल्कि ट्रांस समुदाय के लोगों के कल्याण के लिए एक संस्था में काम भी कर रही हैं।
“मैं बचपन में माधुरी और श्री देवी के गाने पर बहुत डांस किया करती थी। मुझे डांस के बाद बहुत अच्छा लगता था और ऐसा लगता था मानो मैंने जीवन में सब कुछ कर लिया है और मैं इसी चीज के लिए बनी हूं। डांस करके मुझे सबसे ज्यादा खुशी मिलती थी और ऐसा लगता था कि ये मेरी काबिलियत है।”
डर और उलझनों से भरा बचपन
बेला एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से संबंध रखती हैं। काम की तलाश में उनके पिता आज से लगभग तीस साल पहले दिल्ली आकर रहने लगे थे। उनके अलावा परिवार में माँ-पिता और तीन बहनें हैं। बचपन से ही उन्हें अपनी माँ और बहनों के प्रति बहुत लगाव था। वह जब छोटी थी तब से ही बहुत ज्यादा स्त्रीत्व के प्रति आकर्षित थी। वह अपनी माँ के काम करने के तौर-तरीकों और व्यवहार से बहुत प्रभावित थी और उन्हें बहुत ऑब्जर्व करती थी। वह अपनी बहनों के साथ बहुत खेलती थी और पढ़ाई करती थी। उनके घर का माहौल में पढ़ाई और खेलकूद दोनों को बहुत महत्व दिया जाता था। पढ़ाई के साथ-साथ उनकी रूचि डांस में बहुत थी।
बेला कहती है, “मैं बचपन में माधुरी और श्री देवी के गाने पर बहुत डांस किया करती थी। मुझे डांस के बाद बहुत अच्छा लगता था और ऐसा लगता था मानो मैंने जीवन में सबकुछ कर लिया है और मैं इसी चीज के लिए बनी हूं। डांस करके मुझे सबसे ज्यादा खुशी मिलती थी और ऐसा लगता था कि ये मेरी काबिलियत है। मुझे ऐसा लगता था कि डांस की वजह से मैं जो महसूस करती हूं वो व्यक्त कर पाती हूंं। उसके बाद मैंने कुछ समय के लिए क्लासिकल डांस सीखा। शुरुआती दौर में जब मैं डांस सीखना शुरू किया तो उसके बाद से जो स्त्रीत्व वाला व्यवहार है, वह मैं खुल के अपनाने लगी। ये मेरी रूचि के साथ-साथ भावना भी थी जो मैं खुद से चाहती थी। इस वजह से जैसे-जैसे मैं बड़ी हुई तो मुझे मेरी किशोराव्यवस्था में काफी संघर्ष करना पड़ा।”
वह आगे कहती है, “मुझे धीरे-धीरे समझ में आया कि समाज में जो दो जेंडर है स्त्री और पुरुष इनकी दो अलग-अलग भूमिका और पैमाने तय किए हुए है जिसके अनुसार ही लड़कों और लड़कियों को रहना चाहिए। लड़कों हाथ नहीं हिलाने चाहिए, गुलाबी रंग नहीं पहनना चाहिए, ऐसे नहीं चलना चाहिए। जब ये सब मुझे धीरे-धीरे समझ में आई तो मुझे बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा क्योंकि बचपन में जैसे मुझे बताया गया था कि मैं एक लड़का हूं। यानि मेरा जन्म एक लड़के शरीर में हुआ है। लेकिन मेरे अंदर जो चल रहा था, मेरी जो रूचि है वह कुछ और है। मेरी उम्र के जो बच्चे थे वे क्रिकेट खेला करते थे, वही मुझे मेरी बहनों के साथ वक्त बिना, घर-घर खेलना, रसोई में वक्त बिताना पसंद था हालांकि मुझे रसोई में जाना सख्त मना था।”
स्कूल में क्वीयर बच्चों के लिए डर का माहौल
स्कूल प्रत्येक बच्चे के लिए वह जगह होती है जहां से उसके दुनिया के अनुभव बनने शुरू होते हैं। लेकिन ट्रांस समुदाय के बच्चे यहां हर चीज़ से अनजान होने के बावजूद बड़े स्तर पर हिंसा सहनी पड़ती है। अनेक शोध और रिपोर्ट इस बात को पुख्ता करते हैं। बेला का स्कूल का अनुभव ऐसा ही था। वह बताती है, “सेकेंडरी में जब मैंने स्कूल बदला तो मेरा जीवन काफी बदला। यहां से मुझे जीवन के काफी सबक मिले। इसी दौरान मुझे समझ में आ गया था कि दुनिया में तय पैमानों से अलग चीज़ या व्यक्ति को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। मेरी हर चीज़ों पर सवाल उठाए जाते थे कि तुम ऐसे क्यों चलते हो। ऐसे क्यों बोलते हो, लड़कियों की तरह डांस क्यों करते हो? स्कूल में मेरी क्लॉस के लड़के मुझे परेशान करने लगे। लेकिन कब वो परेशानी यौन हिंसा में बदल गई मुझे पता ही नहीं चला। मुझे ये सब बहुत बुरा लगता था क्योंकि मैंने इससे पहले ये सब नहीं देखा था।”
“भले ही मैं खुद को लेकर बहुत कश्मकश में रहती थी लेकिन मेरे परिवार ने मुझे हमेशा हर तरह से बहुत सुरक्षित माहौल में रखा था। हम सब लोग परिवार में सारी बातें एक-दूसरे के साथ साझा करते थे लेकिन जो मेरे साथ हो रहा था वैसा कुछ मैंने कभी सुना ही नहीं था। इस वजह से मैं उनके साथ कुछ शेयर ही नहीं कर पाई। साथ ही मैं घर का इकलौता लड़का था तो मेरे पिता मेरी पढ़ाई के लिए लॉन या उधार तक ले रहे थे ताकि मैं अच्छी शिक्षा पाकर घर की स्थिति को बेहतर कर सकूं। मैंने बहुत कोशिश की लेकिन मैं पढ़ाई में ध्यान ही नहीं लगा पा रही थी। आखिर में वही हूं और मैं बहुत उदास रहने लगी। मैं पढ़ाई में काफी अच्छी थी लेकिन स्कूल के नाम से मुझे डर लगने लगा था।”
स्कूल बन गई यौन हिंसा की जगह
स्कूल में हुई हिंसा के बारे में आगे वह बताती है, “स्कूल में होने वाली यौन हिंसा के कारण मैं पढ़ाई से दूर भागने लगी। मेरे स्कूल में मेरे टीचर मुझे सहयोग नहीं किया करते थे, उल्टा मुझे ही दोष देते थे कि मैं ऐसी क्यों हूं। फिर इस सबके बाद एक वक्त आया जब मैंने तय कर लिया कि मुझे पढ़ना नहीं है क्योंकि स्कूल में मेरे साथ होने वाली हिंसा के कारण मुझे वहां जाने से डर लगने लगा था। मैं घर से स्कूल के नाम से निकलती थी लेकिन स्कूल नहीं जाती थी। कुछ दिनों लगातार स्कूल में मेरे न जाने के कारण मेरे पापा के पास फोन चला गया कि मैं स्कूल क्यों नहीं आ रही हूं। उस दिन मेरे पापा ने मेरी माँ के साथ बहुत झगड़ा किया और मेरी वजह उन्होंने माँ पर हाथ उठाया। मेरे पिता ने कभी मुझे नहीं मारा लेकिन मुझे ये लगता था वह मेरा गुस्सा मेरी माँ पर निकालते है।”
बाद में वह इन सब चीजों से बहुत परेशान रहने लगी। इतना ही नहीं उन्होंने कक्षा आठ में कई बार खुद की जान लेने की कोशिश भी की। उन्हें लगाता था कि वह नहीं रहेंगी तो सारी परेशानी खत्म हो जाएंगी। तीन बार ऐसी कोशिशों के बाद उनके परिवार ने उन्हें कहा कि तुम्हें नहीं पढ़ना है तो मत पढ़ो। बाद में कुछ वक्त गुज़रने पर बेला ने फिर से पढ़ाई करने की सोची और वह स्कूल बदलना चाहती थी ताकि हिंसा और बुली से बच सकें। जगह बदली लेकिन लोगों का व्यवहार नहीं बदला और आगे भी उनके साथ होने वाली हिंसा रूकी नहीं। नये स्कूल में सीनियर लड़के तक उन्हें परेशान करने लगे, यौन हिंसा करने लगे और पिटाई तक की।
जब घर छोड़ने का किया फैसला
बेला कहती हैं, “नये स्कूल में भी सीनियर लड़के मेरा यौन शोषण करने लगे। उसके बाद मुझे स्कूल से बहुत नफरत हो गई। इन सब चीजों से परेशान होने के कारण मैंने घर छोड़ दिया और जब घर से बाहर निकली थी वहां भी मेरे साथ बहुत बुरा व्यवहार हुआ। सड़क पर मेरे साथ यौन हिंसा हुई। बस में मेरे साथ यौन हिंसा हुई। उसके बाद मैंने खुद को घर में कैद कर लिया। मैंने जो मेरे साथ हुआ, अपनी बहन को बताया। लेकिन वह कुछ कर नहीं पाई। बस ये हो गया था कि मेरे माता-पिता ने मुझ पर दबाव बनाना बंद कर दिया था। लेकिन धीरे-धीरे उनकी बातें तानों में बदल गई। बाद मुझे लगा कि मुझे कुछ काम करना चाहिए ताकि मैं घर की आर्थिक स्थिति में कुछ योगदान दे सकूं।”
कोरोना महामारी में बढ़ी चुनौतियां
कोरोना महामारी के दौरान गरीब और हाशिये के समुदाय के लोगों ने सबसे ज्यादा परेशानियों का सामना किया। लॉकडाउन के दौरान एलजीबीटीक्यूआई+ समुदाय के लोगों के ख़िलाफ़ हिंसा के मामले ज्यादा हुए और मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ा। लॉकडाउन के संघर्षों पर बेला कहती है, “लॉकडाउन के कारण नौकरियों की स्थिति तो बहुत खराब हो चुकी थी। मेरा परिवार भी बिहार चला गया था क्योंकि यहां किराया देने की समस्या थी। मैं भी कुछ समय बिहार में उनके साथ रही। लेकिन वहां रहकर भी बहुत समस्याएं थी। उसके बाद जैसे ही कुछ रियायत लॉकडाउन में मिलनी शुरू हुई, तो मैंने अकेले दिल्ली आकर नौकरी करने का फैसला लिया ताकि घर की स्थिति को सुधारा जा सके।”
नौकरी ढूंढने के संघर्षों के बारे में बोलते हुए वह कहती हैं, “मैंने उस समय बहुत नौकरी ढूंढ़ी जब बसों में केवल तीस यात्री यात्रा कर सकते थे। तब मैं सुबह छह बजे लाइन में लग जाती थी। कई जगह नौकरियों के लिए अप्लाई किया। लेकिन मेरे पास योग्यता के अनुसार डॉक्यूमेंट नहीं थे तो मुझे हर जगह मना कर दिया था। कहीं मुझे देखकर ही मना कर दिया जाता कि हम आपको काम पर नहीं रख सकते।”
वह बताती है, “सेकेंडरी में जब मैंने स्कूल बदला तो मेरा जीवन काफी बदला। यहां से मुझे जीवन के काफी सबक मिलें। इसी दौरान मुझे समझ में आ गया था दुनिया में तय पैमानों से अलग चीज़ या व्यक्ति को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
वह आगे बताती हैं, “मैं बहुत परेशान थी। हर जगह तमाम कोशिश करने के बावजूद कुछ होता नज़र नहीं आ रहा था। उसके बाद मेरी एक मित्र मुझे सेक्सवर्क करने को कहा। हालांकि मैं इसके बिल्कुल ख़िलाफ़ थी। यह मेरे सिंद्धातों के विपरीत था। मुझे मेरे घर वालों को दिल्ली बुलाना था और मेरे पास टिकट तक के रूपये नहीं थे। बहुत सोचने के बाद आखिर में मैंने सेक्सवर्क करने का फैसला किया। मुझे बहुत बुरा लगता था कि जिस चीज़ से मैं हमेशा भागती आ रही थी आखिर में मुझे वही करना पड़ा। लेकिन जब पैसे आने लगे तो मेरी बाकी की परेशानी भी खत्म होने लगी। मैंने परिवार को दिल्ली बुलाया, घर का किराया दिया, राशन लाई तो इन सब चीजों से घर में भी लगने लगा कि मैं जिम्मेदारी उठाने लायक हूं। इन सब वजहों से घर पर भी मुझसे ज्यादा कुछ पूछा नहीं जाता था।”
शोषण और जीवन में बदलाव
वह आगे कहती है, “एक दिन ऐसा आया जब मेरी माँ ने पूछा कि तुम काम क्या करते हो? तब मैं उन्हें कुछ बता नहीं पाई तो तब पहली बार मुझे लगा कि ये गलत है। दूसरी बार एक व्यक्ति मेरे शरीर पर जलती सिगरेट लगा रहा था। जब मैंने मना किया तो उसने मुझे कहा कि एक घंटे के लिए मेरे शरीर पर उसका अधिकार है। इन बातों ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि मैं क्या कर रही हूं। कहां मुझे एक आर्टिस्ट बनना था, डांस करना था और मैं क्या कर रही हूं।”
उसी दौरान उनके जीवन में बदलाव आया और उन्होंने अपनी शर्तों पर आगे बढ़ने का तय किया। दोबारा से अपनी पढ़ाई शुरू करनी सोची। उसके बाद वह अपने एक दोस्त के माध्यम से शेल्टर होम में पहुंची, जहां घर से बाहर निकलकर उन्होंने दूसरी दुनिया देखी। वहां पहले ओपन से मैंने स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई पूरी की और साथ ही अपने बाल बढ़ाने भी शुरू कर दिए। अपना परिवेश और परिधान बदल दिया। बेला कहती है, “धीरे-धीरे लोग मुझे इसके लिए पसंद करने लगे मेरी तारीफ़ करने लगे। यहीं से मैंने अपना मॉडलिंग करना शुरू कर दिया मुझे कुछ असाइनमेंट मिलने शुरू हो गए।”
खुद की काबिलियत की समझ
वह कहती है, “फिर मुझे एहसास हुआ कि जिस चीज़ के लिए मुझे बचपन से लेकर अबतक रोका-टोका गया है, वास्तव में यही मेरी ताकत है। यही मुझे मेरी माँ से मिली है। मेरा उनके जैसा दिखना और स्त्रीत्व के गुण मेरी ताकत है और मेरी पहचान है। मेरी तारीफ होने लगी और इन सब चीजों को मैंने ताकत बनाया। नौकरी करने के साथ-साथ मैंने अपने एक्टिंग करने के सपने को भी जिंदा रखा और मैं लगातार मॉडलिंग असाइनमेंट करने लगी। मेरी ख्वाहिश थी कि मैं फिल्मों में काम करूं और अपना डेब्यू बालाजी फिल्म्स के साथ करूं और हाल ही में ऐसा ही हुआ। मुझे एक फिल्म में रोल मिला। मेरा पहला दिन शूटिंग के लिए बहुत खास रहा सब लोगों ने मेरे काम की तारीफ की। बस ये शुरुआत है मैं अपने सपने और अपने समुदाय को आगे बढ़ाने का काम ऐसे ही करते रहना चाहती हूं।”
जीवन के तमाम संघर्षों के साथ आज बेला ट्रांस समुदाय के अधिकारों को लेकर भी बहुत मुखर हैं। वह बतौर ट्रांस एक्टिविस्ट समाज को ट्रांस समुदाय के प्रति संवेदनशील बनाने की दिशा में काम कर रही हैं। स्कलों में जाकर विद्यार्थियों को ट्रांस समुदाय के प्रति बने पूर्वाग्रहों को खत्म करने के लिए काम कर रही है। ट्रांस समुदाय के हित और अधिकारों के लिए संघर्ष करती बेला समुदाय के काम, नौकरी के साथ-साथ खुद के एक्टिंग करने और बड़े पर्दे पर आने के सपने को भी पूरा कर रही हैं। उनकी बड़ी इच्छा है कि वह बड़े पर्दे पर ट्रांस समुदाय की कहानी को खुद कहें।
नोटः लेख में शामिल सारी तस्वीरें बेला ने ही उपलब्ध करवाई हैं।