समाजख़बर सोनाक्षी-जहीर की शादी का फैसला और समाज का नफ़रती चेहरा

सोनाक्षी-जहीर की शादी का फैसला और समाज का नफ़रती चेहरा

कुछ लोग उनके अंतरधार्मिक विवाह को लेकर खुश भी हुए बधाई और शुभकामनाएं दी तो वहीं कुछ लोग उन्हें बेहद भद्दे तरीके से ट्रोल करते हुए भी नज़र आये। समाज और सोशल मीडिया में लव जिहाद जैसे मिथ का जहर फैलाने वाले लोग तरह-तरह की बेहूदी बातें सोनाक्षी सिन्हा के लिए लिख रहे हैं।

अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा की शादी पर जो नकारात्मक प्रतिक्रियाएं आ रही हैं वो जाति-धर्म के मसले से कहीं अधिक स्त्री की स्वायत्तता पर पितृसत्ता का नियंत्रक रवैया है। भारतीय संविधान के अनुसार दो वयस्क व्यक्ति किसी भी जाति और धर्म के हो वे विवाह कर सकते हैं, साथ रह सकते हैं। सोनाक्षी सिन्हा की अभी हाल ही में ओटीटी पर आई हीरामंडी सीरीज काफी चर्चा में रही। 23 जून को सिनेमा-अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा और जहीर इकबाल ने विवाह किया। सोनाक्षी और जहीर ने ये विवाह स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत किया। जिसे सिविल मैरिज भी कहा जाता है। इसके पहले भी कई अभिनेता और अभिनेत्रियों ने सिविल मैरिज किया है। सोनाक्षी और जहीर के विवाह के चर्चे लगातार सोशल मीडिया की सुर्खियों में छाये रहे हैं।

कुछ लोग उनके अंतरधार्मिक विवाह को लेकर खुश भी हुए बधाई और शुभकामनाएं दी तो वहीं कुछ लोग उन्हें बेहद भद्दे तरीके से ट्रोल करते हुए भी नज़र आये। समाज और सोशल मीडिया में लव जिहाद जैसे मिथ का जहर फैलाने वाले लोग तरह-तरह की बेहूदी बातें सोनाक्षी सिन्हा के लिए लिख रहे हैं। वे नहीं जानते कि वे एक सांस्थानिक ढंग से राजनैतिक लाभ के लिए फैलाये गये जहर का शिकार हैं। सोनाक्षी की शादी को लेकर सोशल मीडिया पर उन्हें लगातार इतने भद्दे तरीके से ट्रोल किया जा रहा है कि ट्रोलिंग के कारण अभिनेत्री सोनाक्षी ने अपना कमेंट सेक्शन बंद कर दिया है।

सोशल मीडिया ट्रोलिंग में ज़्यादातर लोग लव-जेहाद की बात कर रहे हैं जो कि एक गढ़ा हुआ मिथ है। जाँच एजेंसियों से भी साबित हो चुका है कि लव-जेहाद जैसी चीज का कोई अस्तित्व नहीं है लेकिन नफ़रत और घृणा की राजनीति के चलते जैसी आपराधिक टिप्पणियाँ लगातार की जा रही हैं वो किसी भी लोकतंत्र के लिए चिंता की बात है।

एक लोकतांत्रिक देश में साम्प्रदायिकता को अगर बढ़ावा दिया जा रहा है तो कितनी भयावह स्थिति बन सकती है ये सोनाक्षी सिन्हा के विवाह में लोगों की घृणा भरी बातों से समझा जा सकता है। अंतरधार्मिक विवाह की सहूलियत के लिए हमारे यहाँ आज से नहीं शुरुआत से ही कानून बना हुआ है। 1954 में लागू हुए स्पेशल मैरिज एक्ट से हमारे देश में लगातार अंतरजातीय, अंतर्धार्मिक विवाह होते रहे लेकिन कुछ दशकों से सांप्रदायिकता की राजनीति इसे खत्म करने की कोशिश कर रही है।

समाज में फैलायी गई नफरत का आलम ये है कि लोग सोशल मीडिया साइट्स पर सोनाक्षी सिन्हा को ट्रोल करते हुए तमाम हिंसात्मक बातें कर रहे हैं। वे हलाला की बातें कर रहे हैं और भद्दे तरीक़े से उसे परिभाषित करते हुए एक स्त्री की यौनिकता और चयन पर फूहड़ता से कमेंट कर रहे हैं। सोशल मीडिया ट्रोलिंग में ज़्यादातर लोग लव-जेहाद की बात कर रहे हैं जो कि एक गढ़ा हुआ मिथ है। जाँच एजेंसियों से भी साबित हो चुका है कि लव-जेहाद जैसी चीज का कोई अस्तित्व नहीं है लेकिन नफ़रत और घृणा की राजनीति के चलते जैसी आपराधिक टिप्पणियां लगातार की जा रही हैं वो किसी भी लोकतंत्र के लिए चिंता की बात है।

इन आपराधिक प्रतिक्रियाओं को देखते साफ दिखता है कि सोनाक्षी और जहीर के पास पूँजी की ताकत है नहीं तो कोई आम लड़का-लड़की इस समय अंतरधार्मिक विवाह करे तो आज का ये बर्बर समाज उन्हें मार ही देता। आज के इस धार्मिक घृणा के माहौल में ये हो रहा है। अंतरधार्मिक विवाह करने पर ऑनर क्राइम जैसी घटनाएं समाज में बढ़ती जा रही हैं, कितने जोड़े मारे-मारे फिर रहे हैं उन्हें प्रेम करने और साथ रहने की सजा विभिन्न तरीक़े से दी जा रही है। कितनी हत्याएं हो गयी हैं, कोर्ट परिसर तक में लड़के को गोली मार दी गयी है। सोनाक्षी प्रिविलेज्ड वर्ग से थीं फिर भी ट्रोलिंग की भयावहता ने साबित कर दिया कि स्त्री को नियंत्रित करने के लिए कैसे सांप्रदायिकता भर नहीं जाति-धर्म और पितृसत्ता सब एक होकर हमले करती हैं। स्त्री की यौनिकता उसका चयन कैसे उन्हें बर्दाश्त नहीं होती।

असमानता, अन्याय. अंधविश्वास, सांप्रदायिक कट्टरता और वर्ण-व्यवस्था (जात-पात) ने इसके सौंदर्य पर धब्बे लगा रखे हैं संविधान ने स्पेशल मैरिज एक्ट का प्रावधान करके स्पष्ट कर दिया कि जीवन साथी के चयन का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। इसमें राज्य या समाज का हस्तक्षेप करना अनुचित है। अगर वयस्क व्यक्ति को राज्य में सरकार चुनने की आजादी है तो जीवनसाथी चुनने की आजादी तो हर हाल में होनी चाहिए। समाज में जाति और धर्म के ठेकेदार वयस्कों के जीवनसाथी के चुनाव को लेकर जाति या धर्म की पाबंदियों में जकड़ने की लगातार कोशिश कर रहे हैं और सांस्थानिक रूप से प्रेम पर पाबंदी और नफरत को बढ़ावा कैसे दिया जा रहा है ये किसी से छुपा नहीं है।

सोनाक्षी की शादी दो व्यक्तियों के प्रेम और साथ का निजी मसला था लेकिन जिस तरह से सोनाक्षी को ट्रोल किया गया वो पितृसत्ता का स्त्री पर अधिकार रखने की सदियों कुत्सित मानसिकता है। स्पेशल मैरिज एक्ट में विवाह के लिए धर्म की कोई अहमियत नहीं होती। बिना धर्म बदले किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति से शादी हो सकती है। ऐसा नहीं था कि मीडिया इस सच को नहीं जानता था लेकिन नफरत की दुकान वो खोलकर बैठ गया और सोशल मीडिया पर तमाम तरह की झूठी और नफरती ख़बरों की बाढ़ सी आ गई। ऐसे समय के समाज में कोई भी स्त्री परेशान हो जाएगी, हालांकि सोनाक्षी संयत और आश्वस्त दिखी सोनाक्षी के पिता, फ़िल्म अभिनेता और मौजूदा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा के अलावा माँ और भाइयों की नाराज़गी की फ़र्ज़ी ख़बरों का वहाँ कोई चिन्ह नहीं दिखा। नफरती मीडिया ने विवाह से पहले ऐसा वातावरण सोशल मीडिया पर बनाया जैसे सोनाक्षी वो अकेली स्त्री हैं जो अंतरधार्मिक विवाह कर रही हैं जबकि केवल फिल्मी दुनिया का ही इतिहास देख लिया जाये जाने कितने अंतरधार्मिक विवाह हुए हैं और बकायदा सफल भी रहे हैं।

तस्वीर साभारः NDTV

सोशल मीडिया पर घृणा फैलाते लोग तमाम तरह की बेतुकी और आधारहीन दलील देते हुए नजर आ रहे थे उनका कहना था कि किसी मुस्लिम से शादी करने वाली हर हिंदू लड़की का जीवन बर्बाद हो जाता है उसकी हत्या हो जाती है। वह ‘लव जिहाद’ का शिकार है। उसे बहला-फुसला लिया जाता है। जैसे लड़कियों में सोचने-समझने की शक्ति नहीं होती। उन्हें फ़ैसला लेने की तमीज़ और हक़ नहीं है। आखिर हमारा पारम्परिक समाज स्त्री को नियंत्रित करके क्या हासिल कर रहा है। हमारे धर्मग्रंथ ‘स्त्री को बचपन में पिता, जवानी में पति और बुढ़ापे में पुत्र के अधीन रहना चाहिए, जैसी बात करते हैं जाहिर सी बात है पुरुषों द्वारा लिखा गया धर्मग्रंथ स्त्री की स्वायत्तता को नष्ट कर देना चाहता था।

जब सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने के लिए कोई राजनीति आती है तो वो ‘लव जिहाद’ जैसा सामाजिक मिथ रचती है ये बेहद दुःख और चिंता की बात है उनकी गन्दी राजनीति के कारण प्रेम करने वाले मन इतनी पीड़ा झेलते हैं और मारे जाते हैं। यह तो जाहिर है कि है कि घृणा का व्यापार करने वाले वे लोग कभी किसी से प्रेम नहीं करते उन्हें प्रेम मिला भी नहीं होता है। वे नहीं जानते कि प्रेम किसी साजिश से नहीं होता वो एक नैसर्गिक क्रिया है जो मनुष्यों में स्वतः फूटती है। इस विडम्बना को समझना चाहिए कि लव जिहाद जैसे मिथ को स्थापित करने के लिए हमारे यहां फिल्में बनायी जा रही हैं। बकायदा सांस्थानिक रूप से इस प्रोपेगैंडा को फैलाया जा रहा है ।

स्त्रियों को नियंत्रित करने की मनोदशा हमारे देश में नयी नहीं है लेकिन इसके साथ एक सत्ताधारी ताकत के फैलाये जा रहे झूठ और नफरत के कारण आज समाज का बड़ा समूह उसी तरफ खड़ा नजर आ रहा है। इस राजनैतिक घृणा के पीछे समाज को बांटने का षड्यंत्र है, वे लगातार  इस कोशिश में लगे रहते हैं कि हिंदू और मुस्लिम समुदाय में अलगाव और दूरी बने वे एक-दूसरे से घृणा करें। सोशल मीडिया पर आखिर इतनी मात्रा में इतनी भ्रामक खबरें कैसे घूम रही हैं जाहिर सी बात है इसे प्रायोजित तऱीके चारों तरफ फैलाने का काम कई सारे मीडिया संस्थान कर रहे हैं। वे बता रहे हैं शत्रुघ्न सिन्हा अपनी बेटी से बहुत नाराज है कोई कह रहा है कि सोनाक्षी की माँ नाराज़ हैं तो कोई कह रहा है कि सोनाक्षी का भाई नाराज हैं। ये सारी बातें कितनी आधारहीन और असंगत हैं।

उच्च वर्गों में वैसे भी तरह-तरह की शादियां होती रही हैं और फ़िल्मी दुनिया में जाने कितनी शादियां हुई हैं। इस तरह तो अब इसमें क्या नया हुआ जो सोनाक्षी सिन्हा का परिवार नाराज होगा जबकि पिता खुद ही बड़े अभिनेता रहे हैं। ऐसे पिता को मीडिया कह रहा है कि वे बेटी का चेहरा तक देखना नहीं चाहते। इस तरह नफरत और आपराधिक भाषा की करोड़ों पोस्ट सोशल मीडिया पर घूमती रही जिसमें फ्रिज हलाला तलाक जैसे शब्दों की भरमार रही है फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्वीटर सब ऐसे पोस्ट और वीडियो से पटे हुए थे। जबकि डेटा उठाकर देख लिया जाये तो हमारे यहाँ लड़कियों की हत्याओं के कितने अपराध ऐसे होते हैं जहाँ धर्म, जाति का मसला उतना नहीं होता है जितना स्त्री को नियंत्रित करने का मसला होता है।

स्त्रियों को नियंत्रित करने की मनोदशा हमारे देश में नयी नहीं है लेकिन इसके साथ एक सत्ताधारी ताकत के फैलाये जा रहे झूठ और नफरत के कारण आज समाज का बड़ा समूह उसी तरफ खड़ा नजर आ रहा है।

सोनाक्षी सिन्हा के जीवन साथी के चयन की स्वतंत्रता की जड़ को समझना होगा। लड़कियों के समाज में बनी रूढ़ियों से निकलने का रास्ता आत्मनिर्भरता और स्वतंत्र चेतना से आता है। प्रेम करना और जीवनसाथी का चयन करना किसी पराश्रित लड़की के लिए महज स्वप्न जैसी बात हो सकती है जबकि वहीं आत्मनिर्भर लड़की के लिए ये कदम कठिन जरूर हो सकता है लेकिन असंभव नहीं है। जो लोग लड़कियों के साथ अपराध की घटनाओं की बात कर रहे तो अपराध कहीं भी हो सकता है उसके लिए व्यक्ति आपराधिक मानसिकता जिम्मेदार होती प्रेम और चयन का अधिकार नहीं। किसी भी धर्म में अपराधी हो सकते हैं और होते हैं। दहेज हत्या जैसी चीजें हमारे यहाँ किस हद तक हो सकती है इसका आंकड़ा देख लेना चाहिए।


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