भारतीय इतिहास में जब भी हम इमारतों और ऐतिहासिक धरोहरों की बात करते हैं, तो ज्यादातर हमें पुरुषों के नाम ही याद आते हैं। जैसे मुग़ल बादशाह शाहजहां, या फिर सम्राट अशोक, जिन्होंने शिलालेख बनवाए। लेकिन सवाल यह है कि हमें ऐसी कहानियों में महिलाओं का नाम क्यों नहीं मिलता? इसका कारण यह है कि बहुत लंबे समय तक महिलाओं के पास न तो सत्ता थी और न ही उतने साधन, जितने पुरुषों के पास थे। इसी वजह से वे बड़े-बड़े निर्माण कार्यों में हिस्सा नहीं ले पाईं और उनका इतिहास सामने नहीं आ सका। इतिहास में अक्सर उसी का नाम दर्ज हुआ, जिसके पास ताकत और संसाधन दोनों मौजूद थे। अगर इतिहास के एक लंबे समय को उठाकर देखा जाए तो महिलाएं पुरुषों की तरह इतिहास में कभी भी सत्ता में उतनी सक्रिय नहीं थी।
सत्ता और राजनीति में उनकी भागीदारी पुरुषों के मुकाबले बहुत ही कम थी। सत्ता, राजनीति और साधन में कम हिस्सेदारी के बावजूद इतिहास के अलग-अलग समय में कुछ ऐसी मजबूत महिलाएं हुई जिन्होंने अपने दम पर कुछ शानदार ऐतिहासिक इमारतों की नींव रखी और पूरे देख-रेख और अपने संरक्षण में बनवाया। यह ऐतिहासिक इमारतें मात्र इमारतें ही नहीं है बल्कि उनकी स्थापत्य और वास्तुकला की समझ के साथ-साथ उनकी एजेंसी, सूझबूझ और आर्थिक मजबूती का जीता जागता उदाहरण भी हैं। आज उनकी बनाई गई, यह इमारतें अपनी ऐतिहासिक महत्त्वता और अनोखी स्थापत्य कला शैली के कारण यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज का अहम हिस्सा हैं। इसके साथ ही विश्व भर में भारतीय स्थापत्य और वास्तुकला कला का बेजोड़ नमूना भी हैं।
सत्ता, राजनीति और साधन में कम हिस्सेदारी के बावजूद इतिहास के अलग-अलग समय में कुछ ऐसी मजबूत महिलाएं हुई, जिन्होंने अपने दम पर कुछ शानदार ऐतिहासिक इमारतों की नींव रखी और पूरे देख-रेख और अपने संरक्षण में बनवाया।
विरुपाक्ष मंदिर, रानी लोकमहादेवी की धरोहर

विरुपाक्ष मंदिर कर्नाटक के बागलकोट जिले के पट्टाडकल में स्थित है। यह एक बहुत पुराना और ऐतिहासिक मंदिर है। इसका निर्माण 8वीं शताब्दी में चालुक्य वंश की रानी लोकमहादेवी ने करवाया था। इस मंदिर में पत्थरों पर लेख खुदवाए गए थे, जिससे पता चलता है कि यह मंदिर उन्होंने बनवाया था। इस मंदिर में कुल चार अभिलेख मिलते हैं। अभिलेखों के हिसाब से रानी ने इस शानदार मंदिर का निर्माण अपने पति चालुक्य राजा विक्रमादित्य द्वितीय की पल्लवों पर जीत के बाद बनवाया था। मंदिर के शिलालेखों में लिखा है कि रानी लोकमहादेवी ने मंदिर के संगीतकारों को मंदिर समर्पित किया था।
इसमें मुख्य वास्तुकार गुंडा अनिवारिताचार्य का नाम भी मिलता है। द्रविड शैली में निर्मित यह मंदिर आज अपनी शानदार स्थापत्य कला, वास्तुकला और मूर्ति कला की वजह से यूनेस्को हेरिटेज यानी विश्व धरोहर का हिस्सा हैं। वर्तमान समय में यह भारतीय पुरातत्व विभाग की देख-रेख में संरक्षित है। आज हजारों लोग दुनिया भर से इस शानदार ऐतिहासिक धरोहर को देखने के लिए हर रोज आते हैं। इसके साथ ही यह मंदिर इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के लिए इतिहास लिखने और शोध के नजरिए से भी महत्वपूर्ण है।
विरुपाक्ष मंदिर कर्नाटक के बागलकोट जिले के पट्टाडकल में स्थित है। यह एक बहुत पुराना और ऐतिहासिक मंदिर है। इसका निर्माण 8वीं शताब्दी में चालुक्य वंश की रानी लोकमहादेवी ने करवाया था। इस मंदिर में पत्थरों पर लेख खुदवाए गए थे, जिससे पता चलता है कि यह मंदिर उन्होंने बनवाया था।
रानी की वाव: रानी उदयामति की दूरदर्शिता का प्रतीक

रानी की वाव या बावड़ी और क्वीन स्टेपवेल को गुजरात के सोलंकी वंश की रानी उदयामति ने 11वी. शताब्दी ई. में बनवाया था। यह वही इमारत है जिसे आज हम अपने 100 रुपये के नोट में हर रोज देखते हैं। यह अद्भुत ऐतिहासिक इमारत वर्तमान में गुजरात राज्य के पाटन में स्थित हैं। ऐसा माना जाता है कि उदयामति ने इस बावड़ी का निर्माण अपने पति सोलंकी नरेश भीमदेव प्रथम की मृत्यु के बाद उनकी याद में करवाया था। इसे एक उल्टे मंदिर की तरह बनाया गया था, ताकि पानी को साफ़ रखा जा सके। यह एक खास जल प्रबंधन प्रणाली है, जिसमें सात मंजिला सीढ़ियां और सुंदर मूर्तियां बनी हुई हैं।
यह पूर्व से पश्चिम दिशा में फैली है और इसमें बावड़ी की सभी ज़रूरी चीज़ें शामिल हैं, जैसे नीचे तक जाने वाली सीढियां, चार मंडप, एक तालाब और एक कुआं । इसमें 500 से ज्यादा अनोखी मूर्तियों के साथ कई छोटी मूर्तियां मौजूद है। साल 2014 में रानी की वाव को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में शामिल किया गया। यह खूबसूरत बावड़ी उदयामति की दूरदर्शिता का उदाहरण है। इसकी अनोखी भारतीय वास्तुकला को देखने के लिए रोज़ाना दुनिया भर से इतिहासकार, शोधकर्ता और हज़ारों पर्यटक आते हैं।
रानी की वाव या बावड़ी और क्वीन स्टेपवेल को गुजरात के सोलंकी वंश की रानी उदयामति ने 11वी. शताब्दी ई. में बनवाया था। यह वही इमारत है जिसे आज हम अपने 100 रुपये के नोट में हर रोज देखते हैं। यह अद्भुत ऐतिहासिक इमारत वर्तमान में गुजरात राज्य के पाटन में स्थित हैं।
हुमायूं का मकबरा: बेगा बेगम और हुमायूं के प्रेम की धरोहर

मुग़ल बादशाह हुमायूं का मकबरा देश की राजधानी दिल्ली में स्थित मध्यकालीन भारतीय कला का एक बेहतरीन नमूना हैं। इस शानदार ऐतिहासिक मकबरे का निर्माण 16वी. शताब्दी ई. में हुमायूं की पत्नी बेगा बेगम ने बनवाया था। उनके संरक्षण में, फ़ारसी वास्तुकारों ने भारतीय कारीगरों के साथ मिलकर इस मकबरे का डिज़ाइन तैयार किया था। यह मकबरा इतना सुंदर था कि बाद में शाहजहां ने ताजमहल बनवाने के लिए इसे एक मॉडल के रूप में इस्तेमाल किया। यूनेस्को विश्व धरोहर स्मारक , यह सिर्फ़ एक मकबरा मात्र ही नहीं है बल्कि यह एक बेगम का एक बादशाह के लिए प्रेम की निशानी भी है।
यह मध्यकालीन भारतीय कला का एक अद्भुत स्मारक होने के साथ- साथ भारतीय उपमहाद्वीप का पहला उद्यान मकबरा भी है। इसके आसपास खूबसूरत बाग़, पानी की नहरें और पगडंडियां इसे और भी खास बनाती हैं। इसमें न सिर्फ़ हुमायूं बल्कि बाद में मुग़ल शहजादों, शहज़ादियों और कई उत्तराधिकारियों की कब्रें भी बनीं। आज हुमायूं का मकबरा दिल्ली के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है, जहां हर साल लाखों लोग न सिर्फ़ इसकी खूबसूरती देखने आते हैं, बल्कि बेगा बेगम और हुमायूं की उस प्रेमगाथा को भी महसूस करते हैं, जिसने इस मकबरे को जन्म दिया।
मुग़ल बादशाह हुमायूं का मकबरा देश की राजधानी दिल्ली में स्थित मध्यकालीन भारतीय कला का एक बेहतरीन नमूना हैं। इस शानदार ऐतिहासिक मकबरे का निर्माण 16वी. शताब्दी ई. में हुमायूं की पत्नी बेगा बेगम ने बनवाया था।
लाल दरवाज़ा मस्जिद: बेगम बीबी राजे की धरोहर

लाल दरवाजा मस्जिद, जिसे रूबी गेट मस्जिद भी कहा जाता है, उत्तर प्रदेश के जौनपुर में स्थित है। इसे 15वीं शताब्दी में शर्की वंश की बेगम बीबी राजे ने सूफ़ी संत सैय्यद अली दाऊद कुतुबुद्दीन के लिए बनवाया था। इस ऐतिहासिक इमारत का मुख्य दरवाजा लाल पत्थरों से बनवाया गया है। इसीलिए इसे लाल दरवाजा मस्जिद के नाम से जाना जाता है। यह इस्लामिक वास्तुकला शैली में बनी एक बेहतरीन इमारत है। इस मस्जिद में खास बात है यह कि इसमें हर तरफ महिलाओं के बैठने का स्थान है। इसके साथ ही महिलाओं के लिए मस्जिद की छत पर जाने के लिए एक अलग रास्ता है।
इतना ही नहीं, उन्होंने लाल दरवाज़ा मस्जिद के पास एक मदरसा भी बनवाया था, जिसे जामिया हुसैनिया मदरसा कहा जाता है। यह मदरसा आज भी मौजूद है और यहां इस्लामिक शिक्षा दी जाती है। यह स्थान न केवल धार्मिक शिक्षा का केंद्र रहा है बल्कि आज भी अपनी ऐतिहासिक और शैक्षिक पहचान बनाए हुए है। लाल दरवाज़ा मस्जिद और मदरसा, दोनों ही बेगम बीबी राजे की धार्मिक सोच और शिक्षा के प्रति लगाव को दिखाते हैं। मस्जिद का स्थापत्य उस दौर की इस्लामिक कला का अनोखी धरोहर है, जहां धार्मिक आस्था के साथ-साथ महिलाओं के लिए विशेष स्थान और सुविधाएं भी शामिल की गईं। यह उस समय की प्रगतिशील सोच और सामाजिक दृष्टिकोण का जीता – जागता उदाहरण है।
लाल दरवाजा मस्जिद, जिसे रूबी गेट मस्जिद भी कहा जाता है, उत्तर प्रदेश के जौनपुर में स्थित है। इसे 15वीं शताब्दी में शर्की वंश की बेगम बीबी राजे ने सूफ़ी संत सैय्यद अली दाऊद कुतुबुद्दीन के लिए बनवाया था। इस ऐतिहासिक इमारत का मुख्य दरवाजा लाल पत्थरों से बनवाया गया है।
एतमादुद्दौला का मकबरा: नूरजहां की विरासत

भारत के इतिहास में जब भी मुगल शासन का ज़िक्र आता है, तब नूरजहां का नाम एक सशक्त और प्रभावशाली महिला शासिका के रूप में ज़रूर लिया जाता है। मुगल कालीन भारत की सत्ता और राजनीति में नूरजहां ने सक्रिय रूप से भूमिका निभाई। वह केवल बादशाह जहांगीर की पत्नी ही नहीं थीं, बल्कि एक दूरदर्शी रणनीतिकार, कला और संस्कृति की संरक्षिका, और सत्ता के गलियारों में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने वाली महिला भी थीं। राजनीति के साथ-साथ उन्हें कला और संस्कृति की गहरी समझ थी। यही कारण था कि उनके समय में कई स्मारक, भवन और उद्यानों का निर्माण हुआ, जिनसे न केवल स्थापत्य कला को प्रोत्साहन मिला बल्कि मुगलकालीन संस्कृति को भी नई दिशा मिली।
उनकी सबसे प्रसिद्ध कृतियों में एतमादुद्दौला का मकबरा विशेष रूप से उल्लेखनीय है। यह मकबरा, नूरजहां ने 17वी. शताब्दी ई. में मुग़ल सम्राज्य के वजीर और अपने पिता की याद में उनकी मृत्यु के सात साल बाद बनवाया था। यह मकबरा चारबाग प्रणाली के एक बाग के मध्य बना है जो चारों ओर से ऊंची दीवारों से घिरा हुआ खड़ा है। सफेद संगमरमर से बना यह बेहतरीन मकबरा, उत्तर प्रदेश के आगरा में स्थित है। यह मकबरा अपने सफेद संगमरमर की सुंदरता, रंग-बिरंगे अलंकरण और बारीक नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है।
भारत की कई ऐतिहासिक इमारतें यह साबित करती हैं कि महिलाएं भी कला, संस्कृति और वास्तुकला में गहरा योगदान रखती थीं। रानी लोकमहादेवी का विरुपाक्ष मंदिर, रानी उदयामति की रानी की वाव, बेगा बेगम का हुमायूं का मकबरा, बेगम बीबी राजे की लाल दरवाज़ा मस्जिद और नूरजहां का एतमादुद्दौला का मकबरा ये सभी उनकी दूरदर्शिता और प्रतिभा का उदाहरण हैं। ये धरोहरें दिखाती हैं कि कम संसाधन और सत्ता के बावजूद, जब महिलाओं को अवसर मिला तो उन्होंने अपनी समझ और दूरदर्शिता से ऐसे निर्माण किए जो आज यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज में भारतीय इतिहास और संस्कृति की पहचान हैं। ये इमारतें सिर्फ पत्थरों का ढांचा नहीं, बल्कि महिलाओं की ताक़त, सोच और कला की पहचान हैं। इतिहास लिखते समय ज़रूरी है कि इन महिला-निर्मित धरोहरों को जगह दी जाए, ताकि आने वाली पीढ़ियां जान सकें कि भारत की संस्कृति और धरोहर बनाने में महिलाओं का योगदान भी पुरुषों जितना ही अहम रहा है।

