साल 2025 भारत के क्वीयर समुदाय के लिए बदलाव और उम्मीद का साल रहा है। यह साल केवल भाषणों या वादों तक सीमित नहीं रहा है, बल्कि हक़ और बराबरी की दिशा में भी ठोस कदम उठते दिखे। इस दौरान ट्रांस और क्वीयर समुदाय के लोगों को नौकरी के नए मौके देने की पहल शुरू की गई । परिवार से जुड़े अधिकारों पर खुलकर बात हुई और कई शहरों में प्राइड वॉक भी निकाली गई। क्वीयर समुदाय सिर्फ़ अपनी पहचान की लड़ाई नहीं लड़ रहा, बल्कि सम्मान, सुरक्षा, काम और परिवार जैसे बुनियादी अधिकारों के लिए आगे बढ़ रहा है। कुछ ऐसे पल और घटनाएं रहीं जिन्होंने साल 2025 को भारत के क्वीयर आंदोलन को एक नए रास्ते पर खड़ा कर दिया जहां से इस समुदाय के लोगों के साथ साथ समानता के साथियों को भी आगे बढ़ने का मौका दिया।
1- ट्रांस रोजगार मेला 2025
द प्रिंट में छपी एक खबर के मुताबिक, 18 जून 2025 को दिल्ली में आयोजित ‘ट्रांस एम्प्लॉयमेंट मेला’ भारत में ट्रांस और नॉन-बाइनरी समुदाय के लोगों के लिए, रोज़गार को लेकर चल रही बातचीत में एक अहम मोड़ बनकर उभरा। इस आयोजन का लक्ष्य ट्रांसजेंडर और नॉन-बाइनरी व्यक्तियों के लिए 100 रोज़गार के अवसर सुनिश्चित करना था। यह लक्ष्य पिछले सालों की तुलना में साफ तौर पर प्रगति को दिखाता है । जहां पिछले साल 77 और साल 2023 में हुए पहले संस्करण में 58 रोज़गार उपलब्ध कराए गए थे।
इसमें 17 कंपनियों की भागीदारी के साथ, साक्षात्कार, जागरूकता कार्यशालाएं, नेटवर्किंग सत्र, पैनल चर्चा और सामुदायिक कलाकारों की प्रस्तुतियां भी शामिल थीं। यह आयोजन इसलिए भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि यह सहानुभूति या विशेष छूट की भाषा से बाहर निकलकर योग्यता, कौशल और पेशेवर क्षमता की बात थी। दिल्ली का यह ट्रांस एम्प्लॉयमेंट मेला, भारत में रोज़गार से जुड़े क्वीयर आंदोलन का एक निर्णायक मोड़ माना जा सकता है। यह उस दौर की शुरुआत की ओर इशारा करता है जहां बराबरी सिर्फ़ क़ानून या पहचान तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि रोज़मर्रा के कामकाज़ और आर्थिक आत्मनिर्भरता में भी दिखाई देगी।
2- हैदराबाद इंटरफेथ प्राइड उत्सव
तेलंगाना टुडे में छपी खबर के मुताबिक, हैदराबाद में इस साल पहली बार 14 जून को अंतरधार्मिक गौरव उत्सव का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न धर्मों और क्वीयर समुदायों के 200 से ज्यादा लोग एक साथ शामिल हुए। इस प्राइड उत्सव ने भारत में क्वीयर मुद्दों पर बातचीत को एक नई दिशा दी। यह आयोजन इसलिए भी खास था, क्योंकि पहली बार अलग-अलग धर्मों और क्वीयर पहचानों को एक साथ लाकर खुले और गंभीर संवाद की जगह बनाई गई। हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, दलित, और अन्य समुदायों की मौजूदगी ने यह दिखाया कि क्वीयर लोगों के अनुभव किसी एक समाज या संस्कृति तक सीमित नहीं है, बल्कि वे अलग-अलग सामाजिक और सांस्कृतिक अनुभवों से जुड़े हुए हैं।
इस उत्सव ने उस सोच को चुनौती दी, जिसमें धर्म और क्वीयर पहचान को एक-दूसरे के खिलाफ माना जाता रहा है। अब यह आंदोलन धर्म, संस्कृति और समाज में रहने वाले लोगों के दैनिक जीवन में भी अपनी जगह बना रहा है। इसी वजह से यह उत्सव क्वीयर आंदोलन के सफर में एक अहम पड़ाव माना जा सकता है, जहां अलग-अलग सोच और समुदायों के बीच बातचीत को अहमियत दी गई।
3- प्रयागराज में पहली क्वीयर प्राइड वॉक
31 मार्च 2025 को प्रयागराज में पहली बार क्वीयर प्राइड वॉक निकली। इसका आयोजन स्थानीय समूह सतरंगी सलाम और अन्य संगठनों ने इसका समर्थन किया। यह वॉक उस शहर में क्वीयर समुदाय की मौजूदगी और साहस को सार्वजनिक रूप से दिखाने का एक बड़ा कदम था। जहां अब तक ऐसे कार्यक्रम आयोजित करना मुश्किल माना जाता था। वॉक के दौरान प्रतिभागियों ने अपने हक़, पहचान और समानता के लिए आवाज़ उठाई। इस कार्यक्रम ने न सिर्फ़ लोगों के सामने क्वीयर समुदाय को दिखाया, बल्कि छोटे शहरों में समान अधिकार और स्वीकार्यता के लिए नई उम्मीदें भी जगाईं। इस प्राइड वॉक ने छोटे शहरों में क्वीयर आंदोलन की नींव रखी और इस साल को क्वीयर आवाज़ों के व्यापक विस्तार का साल बना दिया। यह साबित कर दिया कि पहचान और प्यार की लड़ाई केवल बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश में इसे फैलाया जा सकता है।
4- क्वीयर जोड़ों को ‘परिवार’ मानने की पहल
डेक्कन हेराल्ड के मुताबिक, इस साल फरवरी में केंद्र सरकार ने लोकसभा को सूचित किया कि क्वीयर जोड़ों के लिए नया मार्गदर्शन जारी किया गया है। इसके तहत अब क्वीयर जोड़े एक ही परिवार के रूप में मान्य होंगे। यानी अब वे राशन कार्ड, साझा बैंक खाता और मृत्यु की स्थिति में कानूनी और पहचान संबंधी अधिकार आसानी से हासिल कर सकते हैं। इस कदम से क्वीयर जोड़ों के संबंधों को वास्तविक जीवन में मान्यता मिली है। अब उनका रिश्ता सिर्फ़ कागज़ों में दर्ज नहीं होगा, बल्कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी में उनके हक़ और सुरक्षा की गारंटी भी मिलेगी। इससे क्वीयर लोग अपने जीवनसाथी के साथ सुरक्षित और समान अधिकारों के साथ रह सकेंगे, चाहे वे घर में हों, बैंक में या सरकारी संस्थानों में। इससे यह संदेश भी गया कि भारत में परिवार की परिभाषा अब अधिक समावेशी और बराबरी पर आधारित हो रही है। अगर यह जमीनी स्तर पर पूरी तरह से लागू हुआ तो, यह कदम क्वीयर समुदाय के लिए बराबरी और सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।
5- रक्तदान के लिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
इस साल सुप्रीम कोर्ट में एक अहम याचिका पर सुनवाई हुई, जिसमें उन नियमों को चुनौती दी गई थी जो क्वीयर व्यक्तियों को रक्तदान करने से रोकते थे। इस मामले में लोगों की उम्मीद थी कि अदालत इस भेदभावपूर्ण नियम पर स्पष्ट फैसला देगी, क्योंकि यह मामला केवल रक्तदान तक सीमित नहीं था। इसके पीछे तीन बड़े मुद्दे जुड़े हुए थे, पहला यह है कि हर व्यक्ति को जरूरत पड़ने पर रक्तदान करने और सुरक्षित रक्त प्राप्त करने का अधिकार मिलना चाहिए । दूसरा, विज्ञान-आधारित नीति- नियम सिर्फ़ वैज्ञानिक तथ्यों और जोखिमों पर आधारित होने चाहिए भेदभाव पर नहीं। क्वीयर “समुदाय की गरिमा” यानी किसी व्यक्ति को केवल उनकी पहचान के कारण सामाजिक या कानूनी अधिकारों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। इस याचिका ने साल 2025 में बराबरी के साथ रक्तदान करने के अधिकार को पूरे देश की राष्ट्रीय बहस में ला दिया। यह साबित करता है कि क्वीयर अधिकार केवल पहचान तक सीमित नहीं हैं, बल्कि रोज़मर्रा के जीवन, स्वास्थ्य और सामाजिक हिस्सेदारी से भी जुड़े हुए हैं।
6- स्वाभिमान हब्बा
स्वाभिमान हब्बा साल 2025 बेंगलुरु में आयोजित एक अहम आयोजन था, जो क्वीयर और सेक्स-वर्कर समुदाय की पहचान, सम्मान और अधिकारों की मज़बूत आवाज़ बनकर सामने आया। इस मंच पर लोगों ने खुलकर अपनी बातें रखीं और साफ कहा कि वे समाज में बराबरी और सम्मान के साथ जीना चाहते हैं। कार्यक्रम के दौरान क्वीयर समुदाय के लोगों ने अपने अनुभव साझा किए और बताया कि उन्हें आज भी भेदभाव और अनदेखी का सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद माहौल उम्मीद और एकजुटता से भरा रहा। लोगों ने एक-दूसरे का साथ देने और अपने हक़ के लिए मिलकर लड़ने का संदेश दिया। स्वाभिमान हब्बा ने कर्नाटक में सामाजिक बदलाव की नई ऊर्जा पैदा की। यह आयोजन सिर्फ़ एक उत्सव नहीं था, बल्कि क्वीयर संघर्ष का एक बड़ा और प्रेरणादायक प्रतीक बनकर उभरा, जिसने बराबरी और इंसाफ़ की मांग को और मज़बूती दी।
7- क्वीयर लोग और जोड़े खरीद पाएंगे घर
बिज़नेस स्टैन्डर्ड में छपी खबर के मुताबिक, मुंबई में हुए क्रेडाई-एमसीएचआई एक्सपो मेले में एक अहम और ऐतिहासिक बात सामने आई कि अब क्वीयर लोग और जोड़े भी बिना किसी भेदभाव के घर खरीद पाएंगे । इस फैसले से यह साफ संदेश गया कि घर हर इंसान का हक़ है, चाहे उसकी पहचान या रिश्ता कुछ भी हो। यह कदम क्वीयर समुदाय के लिए आर्थिक सुरक्षा और स्थिर जीवन की दिशा में बहुत बड़ा माना गया। यह मेला सिर्फ़ प्रॉपर्टी से जुड़ा कार्यक्रम नहीं रहा, बल्कि 2025 में चल रहे क्वीयर आर्थिक अधिकार आंदोलन को मज़बूती देने वाला एक महत्वपूर्ण पड़ाव बन गया।
8- क्वीयर समुदाय के लिए वित्तीय सहारा या प्राइड फंड
बीज़नेस स्टैन्डर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में क्वीयर समुदाय पर काम करने वाले संगठनों की मदद के लिए एक नई वित्तीय सहायता की पहल शुरू की गई है, जिसे प्राइड फंड कहा गया है। इस पहल को दिल्ली के केशव सूरी फाउंडेशन, मुंबई के गोदरेज इंडस्ट्रीज ग्रुप, और वीआईपी इंडस्ट्रीज लिमिटेड की कार्यकारी निदेशक का समर्थन प्राप्त है। उन्होंने प्राइड फंड के तहत अगले तीन साल तक, उन संगठनों को हर साल 2 करोड़ रुपये देने का वादा किया है। इस फंड का उद्देश्य उन क्वीर-नेतृत्व वाले गैर-लाभकारी संगठनों की आर्थिक मदद करना है, जो क्वीयर समुदाय के लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए काम कर रहे हैं। साथ ही इस पैसे का इस्तेमाल शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, कानूनी सहायता और सामाजिक सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में किया जाएगा, ताकि क्वीयर समुदाय को सम्मान, सुरक्षा और बराबरी मिल सके।
9- हैदराबाद में ट्रांस व्यक्तियों को मिली मेट्रो में नौकरी
हैदराबाद में साल 2025 का एक ऐतिहासिक पल तब आया, जब पहली बार राज्य मेट्रो ने 20 ट्रांस व्यक्तियों को सुरक्षा स्टाफ के रूप में नौकरी दी। यह कदम सिर्फ़ रोज़गार देने तक सीमित नहीं था, बल्कि सम्मान और बराबरी की दिशा में एक बड़ा बदलाव था। इस पहल ने यह साफ तौर पर दिखा दिया, कि काम पाने का आधार किसी की पहचान नहीं, बल्कि उसकी योग्यता और मेहनत होनी चाहिए। ट्रांस समुदाय के लिए यह आत्मसम्मान और भरोसे को मज़बूत करने वाला कदम बना।
10- हाईकोर्ट में ट्रांस लोगों के गोद लेने के अधिकार पर बहस
साल 2025 में मद्रास हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से एक मामले के मद्देनजर सवाल पूछा कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को बच्चा गोद लेने का अधिकार क्यों नहीं दिया जा रहा है। इस सवाल ने देशभर में यह चर्चा तेज कर दी कि परिवार बनाने का हक़ सिर्फ़ कुछ लोगों तक सीमित क्यों है? यह मामला ट्रांस लोगों के उस बुनियादी अधिकार को सामने लाता है, जिसमें वे भी ज़िम्मेदारी के साथ अपना परिवार बनाना चाहते हैं। अदालत की टिप्पणी ने यह साफ़ किया कि बराबरी का मतलब सिर्फ़ पहचान नहीं, बल्कि परिवार और भविष्य से जुड़े अधिकार भी है।
साल 2025 भारत के क्वीयर आंदोलन के लिए उम्मीद और बदलाव का साल रहा है। इस साल क्वीयर और ट्रांस समुदाय ने रोज़गार, परिवार, स्वास्थ्य और पहचान जैसे बुनियादी अधिकारों पर अपनी मज़बूत मौजूदगी दर्ज कराई। छोटे शहरों में प्राइड वॉक, नौकरियों के मौके मिलना आदि यह दिखाता है कि बराबरी की मांग अब सिर्फ़ बातों तक सीमित नहीं रही है। हालांकि संघर्ष पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है, लेकिन इस साल के इन पलों ने यह साफ कर दिया कि क्वीयर समुदाय सम्मान और समान अधिकारों के साथ समाज का हिस्सा बनने की दिशा में मज़बूती से आगे बढ़ रहा है।

