इतिहास बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर का लोकतांत्रिक समाजवाद

बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर का लोकतांत्रिक समाजवाद

बाबा साहब यह बखूबी जानते थे कि राजनीतिक, सामाजिक समानता स्थापित करने के लिए आर्थिक समानता ज़रूरी है। राजनीतिक समानता स्थापित करने के लिए सामाजिक और आर्थिक समानता ज़रूरी है और सामाजिक समानता स्थापित करने के लिए राजनीतिक और आर्थिक समानता स्थापित करना जरूरी है। तीनों ही सिद्धांत एक दूसरे के लिए जरूरी हैं, एक का अभाव सभी का अभाव बनता है। 

इस देश को लोकतंत्र के स्तंभों पर खड़ा करने में एक लंबी लडाई लड़ी गई है, जो आज खतरे में है। जब हम आर्थिक असमानता को बढ़ते और लोकतांत्रिक मूल्यों को ख़त्म होते देख रहे हैं तब बाबा साहब का ‘लोकतांत्रिक समाजवाद’ का विचार जानना और उसे अपने आसपास खोजना उतना ही प्रासंगिक हो जाता है। संविधान निर्माता, समाजवादी, अर्थशास्त्री बाबा साहब आंबेडकर ने भारत को एक ‘सोशलिस्ट स्टेट’ के रूप में स्थापित होने की जो कल्पना की थी वह आज तक न तो पूरी हुई है और न ही जन मानस तक पहुंचाई गई है। 

लोकतांत्रिक समाजवाद को आसान शब्दों में समझें तो यह एक राजनीतिक विचारधारा है, जो राजनीतिक लोकतंत्र के साथ उत्पादन के साधनों के सामाजिक स्वामित्व की वक़ालत करती है। इसका अधिकतर ज़ोर समाजवादी आर्थिक प्रणाली में लोकतांत्रिक प्रबंधन पर रहता है। ऑल इंडिया शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन के अध्यक्ष के रूप में बाबा साहब आंबेडकर ने भारतीय संविधान सभा में आजादी के बाद अनुसूचित जाति और जनजाति के हितों की रक्षा के लिए कुछ प्रस्ताव रखे थे। इन्हीं प्रस्तावों में से एक प्रस्ताव भारत की अर्थव्यवस्था को पुर्नगठित कर ‘स्टेट सोशलिज्म’ बनाना था, जिसे व्यापक परिपेक्ष्य में डेमोक्रेटिक सोशलिज्म (लोकतांत्रिक समाजवाद) के रूप में वर्णित किया जा सकता है। इसे समझने के लिए पहले बाबा साहब के लोकतंत्र की संकल्पना को समझते हैं। 

बाबा साहब के अनुसार आधुनिक राजनीतिक लोकतंत्र निम्नलिखित आधारों पर आधारित है:

  1. व्यक्ति अपने आप में एक ‘अंत’ है। इसका अर्थ है कि व्यक्ति रेशनल (तार्किक) और सोवरेन है। वह किसी और के लिए कुछ पाने का साधन नहीं है बल्कि अपने लक्ष्य को पाने के लिए है, उसका अपना महत्व है।  
  1. व्यक्ति के पास कुछ अहरणीय अधिकार होते हैं जिनकी गारंटी उसे संविधान द्वारा दी जानी चाहिए। भारतीय परिपेक्ष्य में ये अधिकार भारतीय संविधान की प्रस्तावना में दिए गए हैं जिनकी गारंटी भारतीय संविधान अपने नागरिकों को देता है। 
  1. व्यक्ति को विशेषाधिकार प्राप्त करने की पूर्व शर्त के रूप में अपने किसी भी संवैधानिक अधिकार को त्यागने की आवश्यकता नहीं होगी यानी किसी भी व्यक्ति के पास कोई विशेषाधिकार है तो इसका अर्थ यह नहीं होगा कि उसे किसी भी संवैधानिक अधिकार से वंचित कर दिया जाए। 
  1. राज्य निजी व्यक्तियों को दूसरों पर शासन करने की शक्तियां नहीं सौंपेगा। जिसका अर्थ है कि कोई भी निजी संस्थान/व्यक्ति दूसरे व्यक्ति पर शासन नहीं करेगा, उसे अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए साधन के रूप में इस्तेमाल नहीं करेगा। 

संविधान निर्माता, समाजवादी, अर्थशास्त्री बाबा साहब आंबेडकर ने भारत को एक ‘सोशलिस्ट स्टेट’ के रूप में स्थापित होने की जो कल्पना की थी वह आज तक न तो पूरी हुई है और न ही जन मानस तक पहुंचाई गई है। 

इन सभी आधारों को वास्तविकता में बदलने के लिए बाबा साहेब राज्य की अर्थव्यवस्था को नींव मानते हैं और निम्न सुझावों को भारतीय अर्थव्यवस्था को पुनर्गठित करने के लिए जरूरी मानते हैं:

  1. स्वामित्व (ओनरशिप) और उद्योगों का राज्य द्वारा संचालन।
  1. बीमा उद्योग राज्य का एकाधिकार होगा। राज्य प्रत्येक नागरिक को उसकी आय के अनुरूप बीमा पॉलिसी लेने के लिए अनिवार्य करे। यह दूसरी ओर व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करेगा, और राज्य को आर्थिक विकास की योजना बनाने और उपक्रम करने के लिए संसाधन देगा। 
  1. कृषि राज्य का उद्योग होगा। राज्य पूरी जमीन का स्वामी होगा जिससे कि न कोई जमींदार होगा, ना किरायेदार और न ही कृषि मज़दूर होगा। भूतपूर्व जमींदारों को उचित मुआवजा दिया जाए।
  1. खेती सामूहिक हो। राज्य द्वारा अधिगृहीत भूमि, जाति, लिंग या धर्म के भेद के बिना गांव के निवासियों को, मानक खेतों के आकार में, राज्य को सभी आवश्यक इनपुट प्रदान करने के लिए, और बदले में राज्य को देय भुगतान करने के बाद इसके द्वारा प्रदान की गई सेवाओं के साथ-साथ राजस्व, शेष उपज को सरकार द्वारा निर्धारित किरायेदारों के बीच साझा किया जाना है

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बाबा साहब यह बखूबी जानते थे कि राजनीतिक, सामाजिक समानता स्थापित करने के लिए आर्थिक समानता ज़रूरी है। राजनीतिक समानता स्थापित करने के लिए सामाजिक और आर्थिक समानता ज़रूरी है और सामाजिक समानता स्थापित करने के लिए राजनीतिक और आर्थिक समानता स्थापित करना जरूरी है। तीनों ही सिद्धांत एक दूसरे के लिए जरूरी हैं, एक का अभाव सभी का अभाव बनता है। 

भारतीय संविधान के लागू होने के दस साल के अंदर बाबा साहेब इन बिंदुओं को संविधान का अभिन्न अंग बनाना चाहते थे क्योंकि उन्हें विश्वास नहीं था कि सत्ताधारी दल इसे लागू करेगा। बाबा साहेब स्टेट समाजवाद, संसदीय लोकतंत्र स्थापित कर तानाशाही से बचाना चाहते थे। 

लोकतांत्रिक समाजवाद के बाबा साहब आंबेडकर के मॉडल की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

  1. संविधान द्वारा गारंटीकृत राज्य की तुलना में व्यक्ति को बुनियादी स्वतंत्रता का प्रावधान।
  1. भूमि और प्रमुख उद्यमों जैसे उत्पादन के साधनों का राष्ट्रीयकरण।
  1. निजी उद्योगों की भूमिका को मान्यता।
  1. आर्थिक योजना।
  1. नागरिकों के बीच जाति, जेंडर और धर्म को लेकर कोई भेदभाव नहीं।
  1. सामाजिक परिवर्तन के लिए लोकतांत्रिक/संवैधानिक साधन। 

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बाबा साहब के अनुसार समतावादी समाज की स्थापना के लिए स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व और सामाजिक न्याय महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं। स्वतंत्रता, समानता, और बंधुत्व का सिद्धांत लोकतांत्रिक समाजवाद के लिए ‘वैल्यू सिस्टम’ है जो समाज में व्याप्त गैर बराबरी को कम कर सकता है। उन्होंने यह सिद्धांत बौद्ध धम्म से लिए थे। इस तरह उन्होंने दिए गए सिद्धांतों पर आधारित धर्म कैसे समाज को आगे ले जा सकता है को स्पष्ट किया है।

स्वतंत्रता (लिबर्टी)

आर्थिक व्यवस्था, व्यक्ति की स्वतंत्रता में सबसे अहम योगदान देती है। बाबा साहब आर्थिक ढांचे को व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए अलग तरह से देखते हैं। निजी उद्योग में उत्पादन व्यक्ति विशेष के मुनाफ़े के लिए होता है जो मजदूरों का शोषण करता है और संसाधन रहित मजदूर इनके आदेशों को मानने के लिए बाध्य होते हैं। लोकतांत्रिक समाजवाद के लिए बाबा साहब व्यक्ति विशेष को अंत के तौर पर देखते हैं लेकिन ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति साधन बन जाते है और व्यक्ति की स्वतंत्रता में बाधक बनता है जिससे समाज में बराबरी लाना मुश्किल होता है। इसीलिए बाबा साहब के अनुसार मौलिक अधिकार का लाभ उठाने के लिए एक अच्छी आर्थिक संस्थागत व्यवस्था होनी चाहिए (लेख में उनके आर्थिक मॉडल में यह स्पष्ट दिया गया है), जहां व्यक्ति अपने अधिकारों का वहन कर सके।

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समानता (इक्वालिटी)

बाबा साहब पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी और पूंजीवादी उद्योगिक संगठन के बीच के अंतर्विरोध से परिचित थे। पूंजीवादी व्यवस्था में आर्थिक गैर बराबरी निहित होती है जो राजनीतिक बराबरी नहीं ला सकती और लोकतंत्र को बेकार बना देती है। इसलिए बाबा साहब कहते हैं कि पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी ‘स्वतंत्रता’ के लिए जुनून पैदा करती है लेकिन ‘समानता’ को इस तरह नहीं देखा जाता। उत्पादन के स्वामित्व में गैर बराबरी आय में भी गैर बराबरी पैदा करती है और मौकों में भी। जीवन के एक क्षेत्र में गैर बराबरी सभी क्षेत्रों में गैर बराबरी पैदा करती है।

बाबा साहब यह बखूबी जानते थे कि राजनीतिक, सामाजिक समानता स्थापित करने के लिए आर्थिक समानता ज़रूरी है। राजनीतिक समानता स्थापित करने के लिए सामाजिक और आर्थिक समानता ज़रूरी है और सामाजिक समानता स्थापित करने के लिए राजनीतिक और आर्थिक समानता स्थापित करना जरूरी है। तीनों ही सिद्धांत एक दूसरे के लिए जरूरी हैं, एक का अभाव सभी का अभाव बनता है। 

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बंधुत्व (फ्रेटरनिटी)

अधिकांशतः फ्रेटरनिटी शब्द को भाईचारे से जोड़कर उसे पितृसत्तात्मक घोषित किया जाता है। ब्रदरहुड का अर्थ भाईचारे से है लेकिन फ्रेटरनिटी शब्द बंधुत्व से है जिसका अल्टीमेट मतलब एक दूसरे के साथ मैत्रीपूर्ण (मित्रता पूर्वक) तरीके से रहना है। आर्थिक व्यवस्था को संचालित करने के लिए एक दूसरे के मध्य संवाद और बंधुत्व ज़रूरी है वरना एक दूसरे में सुपीरियर/इनफिरियर कॉम्प्लेक्स पैदा होता है जो अंततः अविश्वास, नफरत, अतृप्त्ता को जन्म देता है। 

भारतीय परिपेक्ष्य में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की भावना को जाति व्यवस्था ने ध्वस्त किया है। इसीलिए बाबा साहब जाति व्यवस्था पर हर तरीके से चोट करते हैं। हमें बाबा साहब को विशेष जाति के मसीहा से ऊपर होकर देखना ही होगा। वह एक विजनरी लीडर थे बल्कि हैं क्योंकि वह आज भी प्रासंगिक हैं, हमेशा रहेंगे। उन्होंने धर्म को समाज चलाने में महत्वपूर्ण माना इसीलिए स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व को अपने सिद्धांत करार देता बौद्ध धम्म उन्होंने अपने जीवन के आखिरी वर्षों में अपनाया। आज जब लोकतांत्रिक मूल्य खतरे में हैं, संविधान को ध्वस्त किया जा रहा है, हमें बाबा साहब की उतनी ही ज़रूरत है, उनके विचारों को अमल में लाने की ज़रूरत है। मैं निजी तौर पर बाबा साहब को सोशल साइंटिस्ट के तौर पर देखती हूं, जो किसी विशेष जाति में नहीं बंधे हैं बल्कि पूरे समाज का मार्गदर्शन करते हैं और समतामूलक समाज की कल्पना करते हैं जिसे अभी भी वास्तविकता में बदला जाना बाकी है। 

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तस्वीर साभार: Dibyangshu Sarkar/AFP/ The Scroll

स्रोत:

Dr. B. R. Ambedkar and his thought on socialism in India: A critical evaluation

Quest for democratic socialism by Bhalchandra Mungekar