मातृत्व का सवाल रोज़मर्रा के जीवन में एक बड़ा सवाल है। अक्सर पूछा जाने वाला यह सवाल, “माँ कौन है?” बस इतना ही पर्याप्त नहीं होता और आगे पूछ लिया जाता है कि तुम्हारी “असली माँ कौन है?” जिसे फिर दूसरे सिरे से पूछा जाता है “लेकिन यह तो ‘प्राकृतिक’ या असली माँ नहीं है।” मातृत्व का सवाल औरत होने के सवाल से भी जुड़ा है। इस लेख का उद्देश्य ट्रांस समुदाय के मातृत्व को समझना है।
पारिवारिक संबंधों की पहचान करने में जन्म की जैविक निर्धारणता एक प्रमुख कारक रही है। इसलिए सी-सेक्शन के साथ-साथ, प्राकृतिक रूप से जन्म लेने की प्रक्रिया के ज़रिये या इन विट्रो फर्टिलाइजेशन, इंट्रासाइटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन और सरोगेसी जैसे अन्य वैकल्पिक माध्यमों से जन्म की जैव प्राकृतिक निर्धारणता को बनाए रखा जाता है। अगर इन विकल्पों को हासिल करने में हासिल करने में पैसे की कमी हो तो उस अवस्था में गोद लेना एक विकल्प ही रहता है। हालांकि यह जरूरी नहीं कि यह हर मामले में सच हो। फिर भी, गोद लेने के लिए सामाजिक और पारिवारिक मंज़ूरी लेना आसान काम नहीं है। गोद लेने की प्रक्रिया से एक रूढ़िवादी सोच जुड़ी है।
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क्या एक माँ के लिए ‘औरत’ होना ज़रूरी है?
नारीवाद के भीतर, ट्रांसवुमन को एक महिला के रूप में पहचानने का सवाल अभी तक सुलझ नहीं पाया है। ट्रांसवुमन जैविक रूप से पुरुष नहीं है और ट्रांसवुमन को ‘जैविक रूप से पुरुष’ के रूप में संबोधित करना उनके साथ होनेवाले उस दुर्व्यवहार को सही ठहरा सकता है जिसका सामना अधिकांश ट्रांसवुमन को करना पड़ता है। लिंग निर्धारण के जो तरीके प्रचलन में हैं उनमें से एक तरीका व्यक्ति के सेक्स पर आधारित है और सेक्स कोई स्थिर बाइनरी नहीं है जिससे व्यक्ति का महिला या पुरुष होना निर्धारित किया जा सके। इस खांचे को चिकित्सा समुदाय, कानून और राज्य की मदद से बनाए रखा जाता है।
मातृत्व को अक्सर ‘प्रमाणिक’ नारीत्व प्राप्त करने के ज़रूरी लिंग मानदंड के रूप में देखा जाता है। क्या सिर्फ माँ नहीं होने से ‘कोई औरत से कम’ हो जाता है, या सीधे शब्दों में कहें तो ‘एक अधूरी औरत?’ हो जाता है?
अगला सवाल यह उठता है कि “औरत कौन है?” एक औरत या स्त्री कौन है, इसकी पहचान जैविक अंगों की उपस्थिति की अनिवार्यता पर निर्भर करती है। क्या किसी को एक स्त्री के रूप में पहचानने के लिए एक योनि की ज़रूरत होती है या योनि के साथ पैदा होने से वह अपने आप स्त्री हो जाती है? तब नारीत्व का क्या अर्थ है; यह इस बात पर निर्भर करता है कि किसी महिला से किस लैंगिक भूमिका यानी जेंडर रोल्स निभाने की उम्मीद की जाती है। इसे अगर दूसरे शब्दों में कहें तो जेंडर आधारित भूमिकाओं को निभाने की उम्मीद उन औरतों से की जाती है जो खुद की पहचान एक औरत के रूप में करने का चुनाव करती हैं। यह ‘चुनाव’ पितृसत्ता में मौजूद एक जटिल संघर्ष है, जो व्यवस्थित रूप से लिंग के बीच महिला और पुरुष की खाई को बनाए रखता है। एक स्त्री होने की पहचान जेंडर आधारित भूमिकाओं पर आधारित हो जाती है जो लिंग और यौन मानदंडों को बार-बार सामने रखकर जड़ बना दी जाती है।
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अगला सवाल यह है कि, ‘माँ कौन है?’ क्या यह केवल वह माता-पिता वाली स्त्री है जिसकी पहचान एक स्त्री के रूप में है या ‘माँ’ एक आत्म का शब्द हो सकता है, खासकर उन ट्रांस-पुरुषों के लिए जो जन्म दे सकते हैं लेकिन जिन्हें औरत नहीं कहा जा सकता है? एक माँ होने की प्रक्रिया और माँ की अपेक्षित भूमिकाएं ‘असली माँ’ और ‘अप्राकृतिक माँ’ जैसी श्रेणियों में विभाजित हो जाती हैं। मातृत्व को अक्सर ‘प्रमाणिक’ नारीत्व प्राप्त करने के ज़रूरी लिंग मानदंड के रूप में देखा जाता है। क्या सिर्फ माँ नहीं होने से ‘कोई औरत से कम’ हो जाता है, या सीधे शब्दों में कहें तो ‘एक अधूरी औरत?’ हो जाता है?
ट्रांस सब्जेक्टिबिटीज के माध्यम से मातृत्व पर विचार मातृत्व के विचार का विस्तार करता है और माँ शब्द को समझने के लिए एक नई खिड़की खोलता है। यह या तो नारीत्व को मातृत्व से अलग करके या नारीत्व को ट्रांस-समावेशी बनाकर किया जाता है। उदाहरण के लिए एक ट्रांसमैन थामस बीटी, जिसने एक बच्चे को जन्म दिया, और उसने हार्मोन और सर्जरी के माध्यम से एक पुरुष का शरीर धारण करते हुए भी अपने (महिला) प्रजनन अंगों को बनाए रखने का फैसला किया।
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प्रजनन के पारंपरिक तरीकों की बाध्यताओं को अब प्रयोगशालाओं ने तोड़ दिया गया है, जहां आनेवाले वक्त में मानव प्रजनन बिना सम्भोग संभव हो सकता है। पारंपरिक मातृत्व की सामाजिक अपेक्षाओं की विभिन्न लिंग और यौन भूमिकाओं में जांच की जानी अभी बाकी है। भारत में, पारंपरिक सेक्स और लिंग संबंधी धारणाओं को मातृत्व से ट्रांस समुदाय ने एक हस्तक्षेप स्थान के रूप में हासिल किया है जिन्होंने गोद लेने के माध्यम से मातृत्व को दोबारा प्राप्त किया है। ट्रांस समुदाय द्वारा गोद लेने की औपचारिकताएं कानून और समाज बड़े पैमाने पर दोनों के लिए स्पष्ट नहीं है। इसके अलावा, यह भी रिपोर्टे हैं कि कैसे भारतीय अडॉप्टेशन व्यवस्था अभी भी इंटरसेक्स बच्चों को गोद लेने की ‘समस्या’ का समाधान देने में अक्षम है। पीढ़ीगत संबंधों और परिजनों की सहायता के बदलते संदर्भ में, ट्रांस समुदाय ऐसे किशोरों और वयस्कों को अपनाते हैं जो जन्म के समय अपने निर्धारित लिंग की पहचान करने में सहज नहीं होते हैं।
जो किशोर या वयस्क ट्रांस समुदाय के सदस्य बनना चाहते हैं, उन्हें किन्नर गुरुओं द्वारा एक समारोह में दीक्षा देकर गोद लेने की प्रक्रिया पूरी की जाती है। इसे किन्नर पंचायत या जमात के रूप में जाने जाने वाले किन्नर समुदाय के भीतर सक्रीय संगठन द्वारा मान्यता दी गई है। ट्रांस समुदाय के सदस्य एक-दूसरे को नानी (दादी), ददनानी(परदादी), मौसी या माँ कहते हैं।
किन्नर पंचायत या जमात जो ट्रांस समुदाय के सदस्य बनने के इच्छुक किशोरों और वयस्कों को गोद लेने की प्रक्रिया को वैध बनाती हैं, वे एकतंत्री किन्नर परिषद हैं। वे सगोत्र नेटवर्क और गैर-जैविक परिवारों के नए रूप बनाते हैं जो उनकी अनौपचारिक प्रणाली के भीतर काम करती है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा केन्द्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (सीएआरए) के माध्यम से ‘थर्ड जेंडर’ द्वारा गोद लेने संबंधी कोई जानकारी या प्रावधान हमें नहीं नज़र है। फिर भी ट्रांस समुदाय का मातृत्व एक सामाजिक संस्था के रूप में परिवार की विषमता को चुनौती देता है। मातृत्व का दावा करके ट्रांस समुदाय ने माँ शब्द को ट्रांस-समावेशी बनाया है। इसके अलावा ट्रांस समुदाय मातृत्व के माध्यम से नारीत्व को संवेशी बनाना, किन्नर जेंडर परफोर्मविटी के लिए एक नई सीमा भी निर्धारित की गई है।
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जेंडर-सेक्स बाइनरी के भीतर और बाहर गोद लेने और मातृत्व की धारणाओं पर फिर से विचार करने की ज़रूरत है। अलग-अलग जेंडर और सेक्सों में परिवार, विवाह और सगोत्र पारंपरिक संस्थाओं पर सवाल उठाने की ज़रूरत है। अलग-अलग जेंडर और यौनिक पहचान वाले समुदायों में गोद लेने की प्रक्रिया जानने के लिए नीतिगत स्तर पर हस्तक्षेप करने की ज़रूरत है, जिससे गोद लेने की प्रक्रिया को और अधिक आसान और पारदर्शी बनाया जा सके। अप्रैल 2014 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा आधिकारिक तौर पर थर्ड जेंडर को नागरिक के रूप में मान्यता दिए जाने के बावजूद, थर्ड जेंडर के विभिन्न अल्पसंख्यक समूहों के लिए गोद लेने को अपराध मुक्त करने की ज़रूरत है, जिन्हें अभी तक शादी करने और गोद लेने का अधिकार नहीं मिला है।
परिवर्तन को केवल एक नई नारीवादी चेतना की ओर बढ़ने से सक्षम बनाए जाने की ज़रूरत है जो ‘असल’ और ‘दूसरी’ या अप्राकृतिक आदि मापदंडों के माध्यम से किसी भी लिंग की पहचान करने के झूठे बाइनरी को न मानती हो। पितृसत्ता के भीतर ही ऐसी व्यवस्था है जहां लिंग के भीतर और विभिन्न लिंगों के बीच विभाजन करना एक-दूसरे के खिलाफ गढ्ढे खोदना जैसा है, जो विभिन्न लिंग आधारित पहचान और यौनिकताओं को बयां करने में एक अंतर पैदा करते हैं। इस संदर्भ में ट्रांस समुदाय भविष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण सबक देता है जहां ‘किन्नर माँ’ जैसे पृथक लैंगिक पदों से मातृत्व की पहचान करना ज़रूरी नहीं होगा, बल्कि इसकी बजाय केवल ‘माँ’ के रूप में जाना जाएगा।
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तस्वीर साभार: BBC
(इना गोयल एक स्वतंत्र लेखक और लाडली मीडिया फेलो (2022) हैं। इस आलेख में प्रस्तुत विचार लेखक के अपने निजी हैं जिसका लाडली और यूएनएफपीए से कोई ज़रूरी संबंध नहीं है)