समाजख़बर भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में केवल 10 प्रतिशत महिलाएं हैं शीर्ष पद परः रिपोर्ट

भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में केवल 10 प्रतिशत महिलाएं हैं शीर्ष पद परः रिपोर्ट

हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाओं की अधिकांश फिल्मों में महिलाओं की हिस्सेदारी अभी भी बहुत कम है। सभी भारतीय भाषाओं की फिल्मों में पुरुषों का वर्चस्व हैं।

फिल्मों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के जांचने के लिए प्रचलित बेकडेल टेस्ट के अनुसार किसी भी फिल्म में कम से कम दो महिला चरित्र हो, वे आपस में बात करें लेकिन उनकी बातों के विषय में पुरुष न हो और उनके किरदारों के अपने नाम हो। फिक्शन में महिलाओं की समान हिस्सेदारी को जांचने के लिए यह एक स्वीकृत मानक है। इस आधार पर बात अगर भारतीय सिनेमा जगत की करें तो बड़ी संख्या में फिल्मों के दृश्यों से ये बातें गायब नज़र आती है। भारतीय सिनेमा जगत में घोर लैंगिक असमानता देखने को मिलती है। केवल कुछ चुनिंदा फिल्में ही इस मानक पर खरी उतरती दिखती हैं।

एक सदी से पुराना भारतीय सिनेमा जगत भले ही बहुत प्रगतिशील और आधुनिक माना जाता हो लेकिन जब बात महिलाओं के प्रतिनिधित्व की आती है तो इसमें नेतृत्व के तौर पर काम करनेवाली महिलाओं की संख्या में पुरुषों के मुकाबले काफी कमी देखने को मिलती हैं। हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाओं की अधिकांश फिल्मों में महिलाओं की हिस्सेदारी अभी भी बहुत कम है। सभी भारतीय भाषाओं की फिल्मों में पुरुषों का वर्चस्व हैं। यही वजह है कि फिल्मों के निर्माण, कहानी, निर्देशन और अन्य विभागों में महिलाओं की संख्या न के बराबर है।

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हाल ही में ओर्मेक्स मीडिया और फिल्म कम्पैनियन ने ऐमज़ॉन प्राइम वीडियो के सहयोग से ‘ओ वुमनिया 2022’ के शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में विशाल भारतीय सिनेमा जगत में ऑन-स्क्रीन और ऑफ-स्क्रीन महिलाओं के प्रतिनिधित्व में असमानता की स्थिति से जुड़े आंकड़े जारी किए गए हैं। रिपोर्ट में  आठ भाषाओं की 150 फिल्में और सीरीज़ का विश्लेषण किया गया है। इसमें हिंदी, तेलगु, तमिल, मलयालम, कन्नड, पंजाबी, बंगाली और गुजराती भाषा शामिल है।

रिपोर्ट में तीन प्रमुख श्रेणियों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व और हिस्सेदारी का अध्ययन किया गया है। कॉन्टेंट, जिसमें ऑन एंड ऑफ स्क्रीन महिलाओं का प्रतिनिधित्व, मार्केटिंग में फिल्मों के ट्रेलर के प्रमोशन में उनकी हिस्सेदारी, कॉर्पोरेट में शीर्ष 25 मीडिया और एंटरटेनमेंट फर्मों के बोर्ड रूम में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट में विश्लेषण के लिए 2021 में रिलीज़ फिल्में, स्ट्रीमिंग फिल्म्स और सिरीज़ शामिल की गई हैं। 

हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाओं की अधिकांश फिल्मों में महिलाओं की हिस्सेदारी अभी भी बहुत कम है। सभी भारतीय भाषाओं की फिल्मों में पुरुषों का वर्चस्व हैं। यही वजह है कि फिल्मों के निर्माण, कहानी, निर्देशन और अन्य विभागों में महिलाओं की संख्या न के बराबर है।

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रिपोर्ट के मुख्य प्वाइंट

  • फिल्म इंडस्ट्री में सीनियर लीडरशिप में केवल 10 प्रतिशत महिलाएं ही हेड ऑफ डिपार्टमेंट की पोजिशन में हैं। कैमरे के पीछे महिलाओं प्रमुख डिविज़न जैसे प्रोडक्शन डिज़ाइन, राइटिंग, एडिटिंग, डॉयरेक्शन और सिनेमेटोग्राफी विभागों में 10 प्रतिशत महिला शीर्ष पद पर आसीन है।    
  • विश्लेषण की गई विभिन्न भाषाओं की 56 थियेट्रिकल फिल्मों में एक का भी निर्देशन और संपादन महिलाओं द्वारा नहीं किया गया। 
  • पुरुष कमीशन इंचार्ज द्वारा केवल 8 प्रतिशत महिलाएं हेड ऑफ डिपार्टमेंट (एचओडी) के पद पर नियुक्त की गई हैं, वही कमीशन में महिला इंजार्च ने हेड ऑफ डिपॉर्टमेंट के तौर पर 17 प्रतिशत महिलाओं की नियुक्ति की हैं।
  • केवल 55 प्रतिशत सीरिज़ बेकडेल टेस्ट में सफल पाई गई। पुरुष कमीशन इंचार्ज में से केवल 50 प्रतिशत ही यह टेस्ट पास कर पाई है। महिला कमीशन इंचार्ज में यह टेस्ट पास करने वाली फिल्मों की प्रतिशता 68 फीसद देखी गई।
  • ट्रेलर के अध्ययन से पता चला है कि वहां भी महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कम वरीयता दी जाती है। प्रमोशन और ट्रेलर में महिलाओं के पास केवल 25 प्रतिशत का टॉक टाइम देखा गया। इसमें महिला किरदारों को 10 सेकेंड या उससे कम समय दिया गया।

स्ट्रीमिंग फिल्में और सीरीज़ का थियेट्रिकल फिल्मों के मुकाबले हर पैरामीटर में प्रदर्शन बेहतर है। स्ट्रीमिंग फिल्मों में एचओडी के तौर पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व थियेट्रिकल फिल्मों के मुकाबले पांच गुना अधिक है। स्ट्रीमिंग सिरीज़ में यह 16 फीसदी, स्ट्रीमिंग फिल्म में 13 फीसद और थियेट्रिकल फिल्मों में केवल 3 फीसद ही है। स्ट्रीमिंग सीरिज़ में 64 फीसदी, 55 फीसदी स्ट्रीमिंग फिल्में के अलावा थियेट्रिकल फिल्मों में केवल 46 फीसद ही बेकडेल टेस्ट में सफल साबित रही। जिन फिल्मों के अधिकतर सीन पास हुए हैं उनमें आर्या सीजन-2, मिमी, पगलैट, अजीब दास्तान, द ग्रेट इंडियन किचन, त्रिभंगा और बॉम्बे बेगम्स जैसी फिल्मों के नाम शामिल हैं। 

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बात अलग-अलग भाषाओं की करें तो 34 मलयालय, कन्नड, मराठी, पंजाबी और बंगाली फिल्मों में एक भी शीर्ष पद पर महिलाएं नहीं मिली। तमिल में एक फीसद, तेलगु में पांच फीसद और हिंदी में 17 फीसद महिलाएं शीर्ष पद पर दिखी। रिपोर्ट में देखा गया कि गैर-हिंदी भाषी फिल्मों में महिलाओं को सहीं प्रतिनिधित्व नहीं मिला। रिपोर्ट के आंकड़ो से एक बात निकलकर सामने आई ही कि महिला के नेतृत्व में उन्होंने कई पैमानों पर पुरुषों के मुकाबले बेहतर किया है। 

इस अध्ययन में फिल्म जगत की कई विधाओं में महिला-पुरुष की भागीदारी का विश्लेषण किया गया है। ‘ओ वुमनिया 2022’  की रिपोर्ट अभिनेत्री विद्या बालन ने भी समर्थन दिया है। विद्या बालन हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की उन सफल महिला अभिनेत्रियों में से मानी जाती हैं जिन्होंने कई महत्वपूर्ण महिला प्रधान फिल्में की है। रिपोर्ट के जारी किए निष्कर्षों पर प्रतिक्रिया देते हुए विद्या ने कहा है, “यदि ज्यादा महिलाएं नेतृत्व में होगी तो टीम में ज्यादा महिलाएं शामिल मिलेंगी। ग्यारह साल पहले मैंने जब ‘द डर्टी पिक्चर’ की थी, सेट पर मुश्किल से केवल दो महिलाएं थी। एक साहयक निर्देशक और दूसरी एक कॉस्ट्यूम असिस्टेंट थी।”

विद्या आगे कहती हैं, “यदि वर्तमान में 10 प्रतिशत महिलाएं एचओडी के तौर पर हैं तो यह बहुत सकारात्मक बदलाव है। हमारे पुरुष अभिनेताओं की मुख्य फिल्मों ने दुर्भाग्य से हमारे फिल्म उद्योग की अर्थव्यवस्था को बर्बाद किया है। मुझे महसूस होता है कि यहां कुछ बदलाव करने की आवश्यकता है। हम क्यों फीमेल एक्टर लीड थियेट्रिकल फिल्में ज्यादा रिलीज़ नहीं करते हैं और देखों वे कैसा प्रदर्शन करती है? गंगूबाई काठियावाड़ी, आलिया भट्ट की फिल्म थी और उसने बॉक्स ऑफिस पर 130 करोड़ का बिजनेस किया है।”

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इंडस्ट्री में कई बड़ी अभिनेत्रियां समान वेतन के मुद्दे को भी उठाया है। अभिनेत्रियां लगातार पारिश्रमिक वेतन के मुद्दे पर बोली हैं। वहीं समान पारिश्रमिक वेतन पर बोलने वाली अभिनेत्रियां वे हैं जिन्होंने सफलता हासिल की है। अभिनेत्रियों के वेतन बढ़ाने को उनकी सफलता से जोड़ा गया है।

यहां की समाजिक संरचना के अनुसार ही फिल्म इंडस्ट्री में भी महिला और पुरुषों की भागीदारी में अंतर साफ देखने को मिलता है। भले ही उच्च विशेषाधिकार और विदेशी फिल्म स्कूल से पढ़े आए लोगों का फिल्म जगत में बोलबाल हो, भले ही यह वर्ग खुद को सबसे अधिक प्रगतिशील घोषित करता हो। लेकिन इसी इंडस्ट्री में कई बड़ी अभिनेत्रियां समान वेतन के मुद्दे को भी उठाया है। अभिनेत्रियां लगातार पारिश्रमिक वेतन के मुद्दे पर बोली हैं। वहीं समान पारिश्रमिक वेतन पर बोलने वाली अभिनेत्रियां वे हैं जिन्होंने सफलता हासिल की है। अभिनेत्रियों के वेतन बढ़ाने को उनकी सफलता से जोड़ा गया है।

यह रिपोर्ट भारतीय फिल्म जगत की वास्तविकता को सामने लाती है। पंरपरा के तौर पर सभी विभागों में पुरुषों का दबदबा बना हुआ है। जहां फैसलें लेने की हर जगह में पुरुष आगे हैं। साथ ही यह भी दर्शाती है कि पुरुषों का नेतृत्व लैंगिक असमानता को बढ़ाता है। फिल्मों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने की पैरवी कई महिला निर्देशक और निर्माता कर चुकी हैं।  

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तस्वीर साभारः Lasalle.Edu

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