इंटरसेक्शनलजेंडर फाइनेंशियल प्लानिंग में क्यों पीछे रह जाती हैं औरतें?

फाइनेंशियल प्लानिंग में क्यों पीछे रह जाती हैं औरतें?

आंकड़े बताते हैं कि महिलाएं म्यूचुअल फंड और शेयर बाज़ार से दूरी बनाते हुए बहुत कम या बिना जोखिमवाले उत्पादों जैसे सोना, फिक्सड डिपोज़िट और सार्वजनिक भविष्य निधि में निवेश करना पसंद करती हैं। महिलाओं की शेयर बाज़ारों में कुछ हद तक भागीदारी हुई है लेकिन बराबरी के लिए अभी भी उन्हें एक लंबा सफर तय करना है।

वित्तीय चुनौतियां हम सभी के जीवन में आती हैं। हालांकि, समाज का विशेषाधिकार प्राप्त तबका अक्सर आर्थिक आपदाओं का सामना नहीं करता क्योंकि वह सही जगह पैसा निवेश और वित्तीय नियोजन कर अपने लिए एक ठोस बुनियाद तैयार कर चुका होता है। अपने पैसे को नियंत्रित करना आर्थिक सुरक्षा के लिहाज़ से बेहद आवश्यक है। लेकिन इस क्षेत्र में भी लैंगिक आधार पर गैर-बराबरी और भेदभाव मौजूद है। इस क्षेत्र में मौजूद लैंगिक पूर्वाग्रहों और पितृसत्तात्मक सोच से जुड़ी चुनौतियों के कारण बड़ी संख्या में औरतें वित्तीय योजनाओं के लाभ से दूर रह जाती हैं।

निवेश, वित्तीय नियोजन और धन प्रबंधन पर हमेशा पुरुषों का वर्चस्व रहा है। हमारे पितृसत्तात्मक समाज में बड़ी संख्या में औरतें अपने पिता, भाई या पति या घर के अन्य पुरुष सदस्यों पर निर्भर रहती हैं कि वे उनके लिए वित्त प्रबंधन करेंगे, उनके पैसों की देखभाल करेंगे। वित्तीय नियोजन की बात आने पर महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

महिलाओं के जीवन में हर स्तर पर आनेवाली आर्थिक प्रबंधन से जुड़ी इन चुनौतियों का निवारण ज़रूरी होता है ताकि वह एक स्वतंत्र, तनाव मुक्त और सुरक्षित आर्थिक जीवन बिता सकें। हम सभी जानते हैं, चाहे पहली बार घर छोड़ना हो, नया करियर शुरू करना हो, उच्च शिक्षा प्राप्त करना हो, परिवार पालने के लिए समय निकालना हो, सेवानिवृत्त होना हो या पति के मरने के बाद अकेले जीवन व्यतीत करनी हो, महिलाएं लगातार पितृसत्तात्मक सोच के कारण आर्थिक अनिश्चितता का सामना करती हैं।

आंकड़े बताते हैं कि महिलाएं म्यूचुअल फंड और शेयर बाज़ार से दूरी बनाते हुए बहुत कम या बिना जोखिमवाले उत्पादों जैसे सोना, फिक्सड डिपोज़िट और सार्वजनिक भविष्य निधि में निवेश करना पसंद करती हैं। महिलाओं की शेयर बाज़ारों में कुछ हद तक भागीदारी हुई है लेकिन बराबरी के लिए अभी भी उन्हें एक लंबा सफर तय करना है। महिलाएं आर्थिक रूप से फ़ैसले ले सकें इसके लिए सबसे ज़रूरी कदम उन्हें शुरू से ऐसे फैसलों में शामिल करना है। साथ ही इन मुद्दों पर उन्हें शिक्षित करना भी इस क्षेत्र में एक अहम भूमिका निभा सकता है। सभी महिलाओं को वित्तीय शिक्षा दी जानी चाहिए। एक बार उस शिक्षा से लैस होने के बाद, सभी महिलाएं सही वित्तीय निर्णय लेने में एक कदम आगे बढ़ा सकती हैं।

हम सभी जानते हैं, चाहे पहली बार घर छोड़ना हो, नया करियर शुरू करना हो, उच्च शिक्षा प्राप्त करना हो, परिवार पालने के लिए समय निकालना हो, सेवानिवृत्त होना हो या पति के मरने के बाद अकेले जीवन व्यतीत करनी हो, महिलाएं लगातार पितृसत्तात्मक सोच के कारण आर्थिक अनिश्चितता का सामना करती हैं।

ह्यूमैनिटीज़ वेलफेयर काउंसिल के अनुसार भारत में 80 प्रतिशत महिलाएं वित्तीय साक्षरता के साथ संघर्ष करती हैं। लगभग 62 प्रतिशत भारतीय महिलाओं के पास बैंक खाते नहीं हैं और साथ ही बैंकिंग सेवाओं तक उनकी बेहद सीमित पहुंच है। वहीं, एशियन डेवलपमेंट बैंक के आंकड़े के अनुसार केवल 24% भारतीय महिलाएं ही भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा परिभाषित वित्तीय साक्षरता के न्यूनतम स्तर को पूरा करती हैं।

पैसे का मैनेजमेंट और जेंडर आधारित पूर्वाग्रह

“महिलाएं पैसों को लेकर भावुक होती हैं, वे खुले हाथों से खर्च करती हैं, महिलाओं के पास पैसे नहीं टिकते।” ऐसी कई बातें हमने ज़रूरी सुनी होंगी। यह सच है कि भावनात्मक जीवन की घटनाओं, जैसे तलाक या पति के मर जाने के बाद महिलाओं को अक्सर महत्वपूर्ण वित्तीय निर्णयों का सामना करना पड़ता है। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि वे भावनाएं वित्तीय फैसले लेते वक्त भी शामिल हो। ज़रा सोचिए कि जिन्हें जीवनभर आर्थिक फैसलों से दूर रखा गया हो उनके ऊपर से अचानक ऐसी ज़िम्मेदारियां आ जाएं तो वे कैसा अनुभव करेंगी। वास्तव में, बड़ी संख्या में महिलाओं के मन में कुछ जोखिम भरा निवेश करने की चिंता रहती है। महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अधिक जोखिम का सामना करना पड़ता है। 

ह्यूमैनिटीज़ वेलफेयर काउंसिल के अनुसार भारत में 80 प्रतिशत महिलाएं वित्तीय साक्षरता के साथ संघर्ष करती हैं। लगभग 62 प्रतिशत भारतीय महिलाओं के पास बैंक खाते नहीं हैं और साथ ही बैंकिंग सेवाओं तक उनकी बेहद सीमित पहुंच है। वहीं, एशियन डेवलपमेंट बैंक के आंकड़े के अनुसार केवल 24% भारतीय महिलाएं ही भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा परिभाषित वित्तीय साक्षरता के न्यूनतम स्तर को पूरा करती हैं।

एक मिथक यह भी है कि महिलाएं बिना सोचे-समझें खरीददारी करती हैं। इस मिथक के पीछे यह धारणा है कि जो महिलाएं खरीददारी करती हैं, उनके पास संगठित और नियमित तरीके से बचत करने का नियंत्रण नहीं होता है। जबकि महिलाओं ने बचत करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन हमेशा किया है, विशेष रूप से जब बात उनके परिवार और बच्चों की हो। खरीददारी की लत भी सिर्फ एक वर्ग विशेष पर लागू होती है। ऐसे में यह पूर्वाग्रह महिलाओं को आर्थिक फैसलों से और अधिक दूर करता है।

महिलाओं के लिए क्यों ज़रूरी है फाइनेंशियल प्लानिंग?

घर में रहकर काम करने से लेकर बाहर जाकर पितृसत्तात्मक समाज के बीच जगह बनाने तक के सफर में महिलाओं ने हर पूर्वाग्रह का सामना कर अपनी जगह बनाई है। फिर भी यह पाया गया है कि महिलाओं को समान काम के लिए पुरुषों के मुकाबले कम वेतन मिलता है। इस कारण कई महिलाएं वित्त नियोजन में सक्रिय रूप से शामिल नहीं हो पाती हैं। लेकिन सही वित्तीय योजना बनाकर महिलाएं अपनी बचत का कुछ हिस्सा सही जगह निवेश कर खुद को वित्तीय स्वतंत्र बना सकती हैं। उन्हें अपने पति, भाई या पिता पर निर्भर नहीं रहना होगा।

उदाहरण के तौर पर एक कामकाजी महिला के लिए भी रिटायरमेंट के बाद अपनी ज़रूरतों को पूरा करना बहुत महंगा होता है। अगर आप अपनी सैलरी का कुछ हिस्सा बचाती हैं और निवेश करती हैं तो रिटायरमेंट के बाद आपको किसा अन्य  पर निर्भर नहीं रहना होगा। आप रिटायरमेंट के बाद भी वैसा जीनव जी सकती हैं जैसा आप हमेशा से जीती आई हैं। सही फाइनेंशियल प्लानिंग से सभी इनवेस्टमेंट में होने वाले जोखिमों का पता लगाया जा सकता है। आप अपनी व्यक्तिगत ज़रूरतों और रिस्क लेने की क्षमता के हिसाब से निवेश के विकल्पों पर विचार कर सकती हैं। इनवेस्टमेंट के कई विकल्प मार्केट में उपलब्ध हैं, जिनकी जानकारी महिलाओं तक पहुंचना बेहद ज़रूरी है।


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