स्वास्थ्यशारीरिक स्वास्थ्य क्या होता है यूट्राइन प्रोलैप्स और इससे बचाव के तरीके

क्या होता है यूट्राइन प्रोलैप्स और इससे बचाव के तरीके

बच्चेदानी महिलाओं के शरीर के निचले हिस्से में मूत्राशय और मलाशय के बीच स्थित होती है। जब पेल्विक फ्लोर की माँसपेशियां और टिशू कमज़ोर हो जाते हैं तो बच्चेदानी के अपनी जगह से खिसकने की सम्भावना होती है।

लखनऊ की रहने वाली संगीता (बदला हुआ नाम) फ़िलहाल 65 वर्ष की हैं। उनकी शादी 15 साल की उम्र में हो गई थी। वे बताती हैं कि जब उन्होंने अपने दूसरे बच्चे को जन्म दिया, तो उनकी बच्चेदानी उनकी योनि से पूरी तरह से बाहर निकल आई। उस दौरान नर्सों ने उपचार के तौर पर बच्चेदानी को उनके शरीर में वापस डालने का काम किया था। लेकिन उम्र बढ़ने के साथ उनकी यह समस्या गंभीर होती गई। संगीता बताती हैं, “मैं घण्टों टॉयलेट में बैठी रहती थी, पेशाब और मल करने में बहुत दिक्कत होती थी। खांसते-छींकते समय अकसर पेशाब कपड़ों में ही हो जाती थी जिसकी वजह से मुझे दिन में कई बार कपड़े बदलने पड़ते थे।” कुछ वर्षों पहले ही डॉक्टरों के सलाह पर संगीता ने ऑपरेशन करवाया और उनकी बच्चेदानी अब निकाल दी गई है।

वहीं यूट्राइन प्रोलैप्स की चौथी स्टेज से ही गुज़र रही भोपाल की आयशा (बदला हुआ नाम) 70 वर्ष की हैं। उनकी शादी 16 वर्ष की उम्र में हो गई थी और उन्होंने नॉर्मल डिलीवरी से चार बच्चों को जन्म दिया है। उन्हें पिछले दस सालों से यह समस्या हो रही है। इसका उनके दैनिक जीवन पर किस तरह का असर पड़ रहा है यह पूछने पर वे बताती हैं, “मुझे बार-बार पेशाब जाना पड़ता है। चलती हूं तो पैरों के बीच में बच्चेदानी फंसती है, जिससे अटपटा लगता है।” वे आगे बताती हैं, “4-5 साल पहले मैं एक यात्रा में गई और मुझे एक बार में कई किलोमीटर चलना पड़ा और खून निकलने लगा। तब डॉक्टर ने लगातार इतनी दूरी चलने से मना किया था। आम दिनों में मुझे खून निकलने या दर्द की समस्या नहीं होती।” आयशा को दिल की बीमारी और डायबिटीज भी है। इसलिए डॉक्टर ने उनसे कहा है कि सर्जरी जोखिम भरा हो सकता है। अबतक आयशा ने बच्चेदानी नहीं निकलवाई है।

आयशा जिस समस्या से जूझ रही थीं उसे मेडिकल भाषा में यूट्राइन प्रोलैप्स या प्रोलैप्स्ड यूट्रस कहते हैं और इस तरह की समस्या का सामना करनेवाली वे इकलौती महिला नहीं हैं। आंकड़ों के अनुसार 50-79 वर्ष के बीच की लगभग आधी महिलाएं अपने पूरे जीवन में कभी न कभी किसी न किसी स्तर के यूट्राइन प्रोलैप्स या किसी अन्य पेल्विक अंग के खिसकने की समस्या से गुज़रती हैं। कम उम्र में विवाह के अलावा और भी कई स्थितियों में किसी महिला को यह समस्या हो सकती है।

“मैं घण्टों टॉयलेट में बैठी रहती थी, पेशाब और मल करने में बहुत दिक्कत होती थी। खांसते-छींकते समय अकसर पेशाब कपड़ों में ही हो जाती थी जिसकी वजह से मुझे दिन में कई बार कपड़े बदलने पड़ते थे।”

इससे जुड़े हुए अधिकतर केस रिपोर्ट नहीं हो पाते क्योंकि हमारे समाज में महिलाओं के स्वास्थ्य विशेषकर यौन और प्रजनन स्वास्थ्य पर बात करने पर मनाही है। पितृसत्ता और रूढ़िवाद के कारण महिलाएं शर्मिन्दगी की वजह से न तो डॉक्टर के पास जा पाती हैं और न ही किसी को अपनी समस्या बता पाती हैं। यही नहीं, कई बार वे इसे अपनी बढ़ती हुई उम्र का हिस्सा मानकर स्वीकार कर लेती हैं और इसके साथ जीवन जीना सीख लेती हैं। यह समस्या उनके जीवन में न सिर्फ़ शारीरिक, बल्कि भावनात्मक कष्ट भी लेकर आती है। 

क्या होता है यूट्राइन प्रोलैप्स

तस्वीर साभारः Health Jade

बच्चेदानी महिलाओं के शरीर के निचले हिस्से में मूत्राशय और मलाशय के बीच स्थित होती है। जब पेल्विक फ्लोर की माँसपेशियां और टिशू कमज़ोर हो जाते हैं, तो बच्चेदानी के अपनी जगह से खिसकने की संभावना होती है। इसके चार स्टेज होते हैं।

  • पहला स्टेज – इसमें बच्चेदानी खिसककर योनि के ऊपरी हिस्से में पहुंच जाती है।
  • दूसरा स्टेज – बच्चेदानी खिसककर योनि के निचले हिस्से में पहुंच जाती है।
  • तीसरा स्टेज – बच्चेदानी का कुछ हिस्सा योनि के मुख के बाहर निकल जाती है।  
  • चौथा स्टेज- पूरी बच्चेदानी योनि के मुख से बाहर निकल जाती है।

क्यों खिसकती है बच्चेदानी

मेडिकल न्यूज़ टुडे में छपी जानकारी के अनुसार निम्नलिखित वजहों से बच्चेदानी खिसक सकती है-

  • यह गर्भावस्था और नॉर्मल डिलीवरी के ज़रिए अनेक बच्चों को जन्म देने के कारण हो सकता है।
  • उम्र बढ़ने के साथ शरीर में एस्ट्रोजन हार्मोन का बनना कम होने या मेनोपॉज के कारण हो सकता है।
  • कई बार भारी सामान उठाने से भी पेल्विक माँसपेशियां कमज़ोर हो जाती हैं और यह समस्या हो सकती है।  
  • लगातार खांसी या कब्ज़ की वजह से।  
  • वजन बढ़ने या मोटापे की वजह से।
  • आनुवांशिक कारणों से भी ये समस्या हो सकती है।

ऊपर लिखे कारणों के अलावा एक अन्य वजह से भी हमारी पेल्विक फ्लोर की माँसपेशियां कमज़ोर हो सकती हैं। इंडियन एक्सप्रेस में छपे एक लेख में छपे डॉ. तान्या नरेन्द्र के अनुसार कई लोग इस डर से वेस्टर्न टॉयलेट की सीट पर पूरी तरह से बैठे बिना पेशाब करते हैं कि उन्हें एसटीआई या यूटीआई हो जाएगा, जबकि यह सच नहीं। असल में लम्बे समय तक इस तरह से वेस्टर्न टॉयलेट का इस्तेमाल हमारी पेल्विक फ्लोर की माँसपेशियों को कमज़ोर कर सकता है। इससे न केवल बच्चेदानी बल्कि पेल्विक फ्लोर में मौजूद अन्य अंगों, जैसे-मूत्राशय और मलाशय के खिसकने का खतरा भी रहता है। 

4-5 साल पहले मैं एक यात्रा में गई और मुझे एक बार में कई किलोमीटर चलना पड़ा और खून निकलने लगा। तब डॉक्टर ने लगातार इतनी दूरी चलने से मना किया था। आम दिनों में मुझे खून निकलने या दर्द की समस्या नहीं होती।

क्या है यूट्राइन प्रोलैप्स के लक्षण 

तस्वीर साभार: फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

अगर बच्चेदानी अपनी जगह से बस थोड़ी सी ही खिसकी है तो हो सकता है कि पीड़ित महिला में कोई लक्षण न दिखाई दे। बच्चेदानी कितनी खिसकी है और समस्या ने कितना गंभीर गंभीर रूप ले लिया है इसके आधार पर कुछ महिलाओं में नीचे दिए गए लक्षण दिखाई दे सकते हैं–

  • बार-बार पेशाब आना, पेशाब करने में मुश्किल होना। 
  • छींकते या खाँसते समय पेशाब लीक होने की समस्या हो सकती है।  
  • पेट के निचले हिस्से में भारीपन महसूस होना।  
  • कमर के निचले हिस्से में दर्द रहना।  
  • कब्ज़ की शिकायत या मल त्याग करने में समस्या महसूस हो सकती है।
  • ऐसा महसूस हो सकता है कि मानो आप किसी बॉल पर बैठी हों।  
  • यौन संबंध में दिक्कत महसूस हो सकती है।
  • आपको महसूस हो सकता है कि आपकी बच्चेदानी योनि के रास्ते बाहर निकल गई है।

यूट्राइन प्रोलैप्स से बचाव के तरीके

हालांकि यूट्राइन प्रोलैप्स से बचाव का कोई निश्चित तरीका नहीं है। खान-पान और जीवनशैली में बदलाव के ज़रिए इसके खतरे को कुछ हद तक कम ज़रूर किया जा सकता है। इसके लिए नीचे दिए गए तरीके अपनाए जा हैं।

  • कब्ज़ होने से बचें-इसके लिए खूब सारा पानी और तरल पदार्थ लें। ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन करें जिनमें फ़ाइबर की मात्रा अधिक हो, जैसे- फल, सब्ज़ियां, फलियां और साबुत अनाज। 
  • भारी सामान उठाने से बचें- भारी सामान उठाने से बचें और अगर उठाना भी पड़े तो पैरों के सहारे से उठाएँ, न कि कमर या पीठ के सहारे से।
  • खांसी का इलाज कराएं- लगातार खांसी या ब्रोंकाइटिस होने पर समय रहते इनका इलाज कराएं। 
  • वजन नियंत्रित रखें- अगर वज़न बढ़ गया हो तो डॉक्टर की सलाह और खानपान में बदलाव करके इसे नियंत्रण में रखने की कोशिश करें। 

हालांकि यूट्राइन प्रोलैप्स से बचाव का कोई निश्चित तरीका नहीं है। खान-पान और जीवनशैली में बदलाव के ज़रिए इसके खतरे को कुछ हद तक कम ज़रूर किया जा सकता है।

इलाज के लिए मौजूदा विकल्प 

इसमें आमतौर पर पहले, दूसरे और कभी-कभी तीसरे स्टेज में भी बच्चेदानी निकलवाने की ज़रूरत नहीं होती। दवाइयों, पेल्विक माँसपेशियों को मज़बूत और फिट रखने के लिए कीगल एक्सरसाइज़ करके और उचित पोषण के ज़रिए इसे ठीक किया जा सकता है। लेकिन इसकी चौथी स्टेज काफ़ी गंभीर होती है। इसमें किसी महिला को पेशाब करने और मल त्यागने में बहुत ज़्यादा कठिनाई का सामना करना पड़ता है। गर्भाशय में घाव हो सकते हैं और साथ ही वह मूत्राशय, मलाशय और योनि से जुड़े गंभीर संक्रमणों और समस्याओं का शिकार भी हो सकती है। यही वजह है कि इस स्टेज में अकसर डॉक्टर्स गर्भ निकलवाने की सलाह देते हैं। 

डॉक्टर से परामर्श है आवश्यक

यूट्राइन प्रोलैप्स की स्थिति में इलाज के तौर पर बच्चेदानी निकलवाने के अलावा और कौन से विकल्प उपलब्ध हैं, इस बारे में पुणे की रहनेवाली स्त्री-रोग विशेषज्ञ डॉक्टर ऐश्वर्या रेवडकर कहती हैं, “इस समस्या से गुज़र रही किसी महिला पर इलाज की कौन सी विधि कारगर होगी, इसका निर्णय बीमारी की गंभीरता, महिला की उम्र, उसे और बीमारियां हैं या नहीं, उसकी लाइफस्टाइल कैसी है, यह सब देखते हुए लिया जाता है। जैसेकि अगर मरीज की उम्र चालीस से कम है, वह भविष्य में माँ बनना चाहती है तो ऐसे में स्लिंग सर्जरी का विकल्प चुना जा सकता है। इसमें लैप्रोस्कोपिक विधि से या फिर पेट पर चीरा लगाकर बच्चेदानी को इस तरह से बाँध दिया जाता है कि वह अपनी जगह से खिसके नहीं। लेकिन यह अपने आप में बहुत पेचीदा ऑपरेशन होता है और इस ऑपरेशन को करने के लिए बहुत सावधानी और बहुत प्रशिक्षित डॉक्टर की ज़रूरत होती है, हरेक स्त्री रोग विशेषज्ञ को इसे करना नहीं आता।”

इस समस्या से गुज़र रही किसी महिला पर इलाज की कौन सी विधि कारगर होगी, इसका निर्णय बीमारी की गंभीरता, महिला की उम्र, उसे और बीमारियां हैं या नहीं, उसकी लाइफस्टाइल कैसी है, यह सब देखते हुए लिया जाता है।

वह आगे कहती हैं, “दूसरा विकल्प पेसरी (सिलिकॉन का एक उपकरण जिसे पेल्विक अंगों को सहारा देने के लिए योनि में फिट किया जाता है) है। पेसरी का इस्तेमाल सुनने में जितना आसान है प्रैक्टिकली यह उतना आसान नहीं होता। इसीलिए इसका इस्तेमाल आमतौर पर कम होता है। दूर-दराज के क्षेत्रों में अस्पतालों में मुफ़्त में पेसरी उपलब्ध नहीं होती और अगर होती भी है तो साइज़ की समस्या होती है। हरेक महिला को अलग-अलग साइज़ की पेसरी लगती है। इसके इस्तेमाल में और भी कुछ दिक्कतें हैं। जैसे, अगर किसी महिला को कब्ज़ जैसी कोई समस्या हुई तो यह अपनी जगह से खिसक सकती है और फिर इसे फिट करवाने के लिए फिर से अस्पताल आना पड़ता है। इसे कुछ सालों के अन्तराल पर बदलना भी पड़ता है। यह भी संभावना होती है कि कोई उम्रदराज महिला यह पूरी तरह भूल जाए कि उसके शरीर में पेसरी है और उसे समय-समय पर बदलवाना है। ऐसे में यह पेसरी उसके शरीर के लिए खतरनाक साबित होती है। तो कुल मिलाकर पेसरी अपने आप में एक पेचीदा विकल्प है।”

बच्चेदानी महिलाओं के शरीर के निचले हिस्से में मूत्राशय और मलाशय के बीच स्थित होती है। जब पेल्विक फ्लोर की माँसपेशियां और टिशू कमज़ोर हो जाते हैं तो बच्चेदानी के अपनी जगह से खिसकने की सम्भावना होती है। इसके चार स्टेज होते हैं।

आगे डॉक्टर ऐश्वर्या बताती हैं, “चौथे स्टेज के ऐसे मरीजों के लिए जिन्हें और भी कई गंभीर किस्म की बीमारियां हैं और बच्चेदानी निकालना उनके लिए जानलेवा हो सकती है, उनके इलाज के तौर पर हम बच्चेदानी को अन्दर पुश करके योनि पर टाँके लगा देते हैं ताकि वह योनि के रास्ते बाहर न निकले। समस्या यह है कि कई बार डॉक्टर्स को भी इलाज के तौर पर उपलब्ध विविध विकल्पों की जानकारी नहीं होती इसलिए इस तरीके का उपयोग भी कम ही होता है।”

यूट्राइन प्रोलैप्स की समस्या से जुड़े कई इलाज है जो मरीज की स्थिति के अनुसार आवश्यक है। हर व्यक्ति की स्थिति अलग होने के कारण इलाज अलग तरीके से हो सकता है। इसलिए, समय पर उचित इलाज के लिए डॉक्टर से परामर्श लेना बहुत आवश्यक है। ध्यान रहे कि बच्चेदानी निकलवाने की सलाह उसी स्थिति में दी जाती है जब कोई अन्य विकल्प न बचा हो। इसलिए यह ज़रूरी है कि समस्या के शुरुआती लक्षणों को नज़रअंदाज न करें और तुरंत चिकित्सक विशेषज्ञ से परामर्श लें।

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