सुमन (बदला हुआ नाम) को काफ़ी समय से वजाइनल इनफेक्शन और डिस्चार्ज की समस्या थी। शादी के बाद यह समस्या और भी बढ़ गई। लोक-लाज की वजह से सुमन ने गाँव की ही एक दुकान से दवा ले ली। इससे उसे कुछ दिन आराम हुआ और लेकिन कुछ दिनों बाद यह समस्या और बढ़ गई, लेकिन वह लगातार अपने लक्षणों को छिपाती रही। जब इस समस्या ने गंभीर रूप ले लिया तो बिगड़ी हालत में सुमन को अस्पताल ले जाना पड़ा और वहां पता चला कि उसे यूटरस का कैंसर हो गया है, इसके बाद सुमन का यूटरस निकालना पड़ा।
इसके बारे में जब मैंने सुमन से बात की तो उन्होंने नाम उजागर न करने की शर्त पर बताया, “अपने घर-परिवार में हम अपने शरीर, और ख़ासतौर पर जब गुप्तांग या निजी अंग से जुड़ी बात कर ही नहीं सकते हैं। हमारी बचपन से ही ऐसी परवरिश की जाती है। अगर पेट में या सिर में दर्द है तो यह कहना हमारे लिए आसान है, लेकिन अगर हमारी योनि या स्तन से जुड़ी कोई समस्या है तो इस पर बात करने की मनाही होती है। ये बातें करना गंदी बात मानी जाती हैं और हम महिलाओं से उम्मीद की जाती है कि हम अपने शरीर से जुड़ी बातें किसी को न बताए। लेकिन मैंने कुछ न बोलने का ख़ामियाज़ा भुगता है पर इसके बावजूद मैं इसके बारे में सभी को नहीं बता सकती क्योंकि बिना बच्चेदानी की महिला को भी समाज स्वीकार नहीं करता और उसे बेकार मानता है।”
ग्रामीण क्षेत्रों में सुमन जैसी कई महिलाएं हैं जिन्हें ऐसी समस्या का सामना करना पड़ता है। इसकी कई सारी वजह है जैसे ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधा की कमी, गरीबी, जागरूकता की कमी आदि। लेकिन इन सारी वजहों के बीच इनसे जुड़ी शर्म भी एक बड़ा कारण है। पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं को अपने शरीर के बारे में बात करने की अनुमति नहीं होती है, फिर चाहे वे कितनी भी बड़ी बीमारी से क्यों न अपने दम तोड़ दें। जब हम इस शर्म की परतों को खोलने की कोशिश करते हैं तो इससे जुड़े कई पहलू सामने आते हैं।
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महिलाओं के शरीर पर चुप रहना, उनके लिए ‘सभ्य और अच्छा’ दिखने के लिए ज़रूरी बताया जाता है। पितृसत्तात्मक समाज महिलाओं से यही चाहता है। लेकिन इस चुप रहने वाली संस्कृति की वजह से कई बार महिलाओं को घातक बीमारियों का सामना करना पड़ता है।
गुप्तांगों के बारे जागरूकता न होना
मैं अक्सर गाँव में महिलाओं और किशोरियों के साथ उनके यौन-प्रजनन स्वास्थ्य को लेकर बैठक करती हूं। किसी भी गाँव की पहली बैठक में मेरा महिलाओं से सवाल होता है कि वे बताएं कि एक महिला की योनि में कितने छेद होते हैं? इस सवाल पर पहले तो महिलाएं अपना मुंह छिपाने लगती हैं। इसके बाद अधिकतर महिलाओं का जवाब होता है-दो छेद। ताज्जुब की बात यह होती है कि यह जवाब भी उन महिलाओं का भी होता है जो दो-तीन बच्चों की माँ होती हैं।
उनकी इस बात से हम यह अंदाज़ा लगा सकते हैं कि महिलाओं को अपने खुद की योनि के बारे में कितनी जानकारी होती है। लेकिन सच्चाई यह है कि इसमें उनका भी कोई दोष नहीं होता है। हमें बचपन से ही योनि से जुड़े मुद्दों पर चुप रहने की सीख दी जाती है। इस कारण इन पहलुओं पर बात ही नहीं हो पाती है। लेकिन इस शर्म के कारण पैदा हुई जानकारी की कमी आगे चलकर घातक साबित होती है।
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पैंटी और ब्रा को खुली धूप में सुखाने पर पाबंदी
ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर महिलाएं और लड़कियां अपनी ब्रा और पैंटी को किसी कपड़े से ढककर ही सुखाती हैं, ताकि उस पर किसी की नज़र न पड़े। इन कपड़ों को खुले में सुखाना परिवार और समाज बुरा समझता है। लेकिन इसका नतीजा यह होता है कि खुली धूप में कपड़े न सूखने की वजह से कई बार महिलाओं को इनफ़ेक्शन का सामना करना पड़ता है और ये पाबंदी महिलाओं को अपने शरीर पर भारी पड़ जाती है।
प्रेग्नन्सी ज़रूरी है, पीरियड्स पर बात नहीं
अगर कोई महिला गर्भवती न हो पाए तो उसे पूरा परिवार और समाज उसे भला-बुरा कहने का एक मौका नहीं छोड़ता है। लेकिन जिस पीरियड्स का होना ज़रूरी होता है, उसकी चर्चा आते ही सभी चुप हो जाते हैं। पीरियड्स शरीर से जुड़ी भले ही एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, लेकिन इस दौरान कई लोगों को अलग-अलग शारीरिक और मानसिक कष्ट से गुज़रना पड़ता है। लेकिन महिला शरीर पर चुप्पी वाले रिवाज के चलते औरतें पीरियड्स के दौरान होनेवाली समस्या पर चुप रहने को मजबूर होती है।
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ग्रामीण क्षेत्रों में सुमन जैसी कई महिलाएं हैं जिन्हें ऐसी समस्या का सामना करना पड़ता है। इसकी कई सारी वजह है जैसे ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधा की कमी, गरीबी, जागरूकता की कमी आदि। लेकिन इन सारी वजहों के बीच इनसे जुड़ी शर्म भी एक बड़ा कारण है।
स्तन ज़रूरी है, लेकिन इस पर चर्चा नहीं
जब भी महिला शरीर की बात होती है तो सुंदरता और महिला शरीर के लिए बक़ायदा कुछ मानक तय किए गए हैं, जिनके आधार पर उनके शरीर की वैधता को आंका जाता है। इसमें स्तन का भी प्रमुख स्थान है। लेकिन जब बात आती है स्तन से जुड़े स्वास्थ्य की तो वहां चुप्पी छा जाती है। जैसा कि हम जानते हैं कि भारत में स्तन कैंसर महिलाओं में होने वाला एक आम कैंसर है। आए दिन हम ग्रामीण क्षेत्रों में भी महिलाओं में स्तन कैंसर का केस देखते हैं। लेकिन इससे बचा भी जा सकता है अगर हम समय-समय पर स्तन की जांच करें और स्तन में होने वाले किसी भी बदलाव को नज़रंदाज़ न करें। अक्सर लोकलाज की वजह से महिलाएं अपने स्तन से जुड़ी समस्याओं पर बात नहीं कर पाती हैं और न किसी से कह पाती हैं। इसकी वजह से कई बार जब वे डॉक्टर तक पहुंचती हैं तो तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
महिलाओं के शरीर पर चुप रहना, उनके लिए ‘सभ्य और अच्छा’ दिखने के लिए ज़रूरी बताया जाता है। पितृसत्तात्मक समाज महिलाओं से यही चाहता है। लेकिन इस चुप रहने वाली संस्कृति की वजह से कई बार महिलाओं को घातक बीमारियों का सामना करना पड़ता है। इसके ज़रूरी है कि महिलाएं अपने शरीर पर बात करें, अपने शरीर के बारे में जानें।
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