इंटरसेक्शनल “बाइक नहीं; समाज भेदभाव करता है” देश की महिला बाइक चालकों से बातचीत

“बाइक नहीं; समाज भेदभाव करता है” देश की महिला बाइक चालकों से बातचीत

एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए ही व्यक्ति किसी साधन का उपयोग करता है। अपने मामूली कामों के लिए भी महिलाओं को अपने परिवार के किसी सदस्य पर निर्भर होना पड़ता है। बहुत से परिवारों में बाइक का होना मामूली बात है। लेकिन महिलाओं का उसे चलाना मामूली नहीं है। स्वयं को आत्मनिर्भर बनाने की चाह ने बहुत सी महिलाओं को बाइक चलाने के लिए आकर्षित किया है।

आज भी जब लोगों को एक बाइक चलाती महिला दिखती है, तो उनकी निगाहें कुछ वक्त के लिए ठहर जाती है। बाइक चलाती महिला को देखकर लोगों की नज़र में आश्चर्य और सवाल साफ दिखते हैं। पर क्या आपने कभी किसी बाइक के विज्ञापन में लड़की को देखा है? हम ये भी सोच सकते हैं कि स्कूटर चलाना अगर ज्यादा आसान है, आरामदायक है। स्कूटर वजन में हल्का होता है, तो फिर गियर वाली बाइक चलाना क्यों चुने? लेकिन फिर गियर वाली बाइक लंबे रास्तों के लिए बेहतर होती है। मुश्किल रास्तों पर चलाने के काम भी आती है, जो शायद स्कूटी या स्कूटर में मुश्किल हो सकता है। हर गाड़ी के अपने फायदे और नुकसान होते होंगे, तो फिर कोई चालक कैसे तय करे कि बाइक और स्कूटर में से क्या चुने?

कर्नाटक के बैंग्लोर और मध्य प्रदेश के खरगोन जिले की कुछ महिला बाइक चालकों से बातचीत पर मैंने उनके अलग-अलग विचार, कारण और समस्याएं सामने लाने की कोशिश की। बाइक से यहां हम और गियर वाली गाड़ी की बात कर रहे हैं, स्कूटर और साइ‌किल की नहीं। आप सभी ने सुना होगा ‘व्हाय शुड बॉयस हैव ऑल द फन’ जिसका अर्थ है, लड़के ही सारा मज़ा क्यों करें। ये टैगलाइन एक स्कूटी के विज्ञापन की है जो स्कूटी पर घूमती लड़की को दिखाते हुए बताते है कि लड़कियां भी घूमने जा सकती हैं। वे भी अपनी गाड़ी चलाकर मजा ले सकती हैं। चलिए जानते है कि महिला बाइक चालकों के क्या कारण और विचार रहते हैं बाइक चलाने को लेकर। 

भौमवाड़ा की चेतना सोंगरे कहती हैं, “मैं वो कर सकती हूं, जो गांव की कोई और लड़की नहीं कर सकती।” चेतना सनावद कॉलेज में बीए की विद्यार्थी हैं। चेतना बाइक चलाकर बैंक का काम कर लेती हैं, राशन ला पाती हैं, कभी दादाजी को बाहर के कामों के लिए भी ले जाती हैं।

बाइक चलाना जिम्मेदारी बांटने का तरीका

भौमवाड़ा की चेतना सोंगरे कहती हैं, “मैं वो कर सकती हूं, जो गांव की कोई और लड़की नहीं कर सकती।” चेतना सनावद कॉलेज में बीए की विद्यार्थी हैं। चेतना बाइक चलाकर बैंक का काम कर लेती हैं, राशन ला पाती हैं, कभी दादाजी को बाहर के कामों के लिए भी ले जाती हैं। उन्होंने कभी घर में बाइक की मांग नहीं की। चूंकि परिवार में बाइक थी तो घरवालों ने उनके चलाने का समर्थन भी किया। हालांकि सुरक्षा के मद्देनजर वे कभी गांव के बाहर, दूर शहर बाइक से नहीं गयी। बाइक चेतना के लिए सिर्फ एक साधन है जिससे वो रोज़ के काम आसानी से कर पाती हैं।

एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए ही व्यक्ति किसी साधन का उपयोग करता है। अपने मामूली कामों के लिए भी महिलाओं को अपने परिवार के किसी सदस्य पर निर्भर होना पड़ता है। बहुत से परिवारों में बाइक का होना मामूली बात है। लेकिन महिलाओं का उसे चलाना मामूली नहीं है। स्वयं को आत्मनिर्भर बनाने की चाह ने बहुत सी महिलाओं को बाइक चलाने के लिए आकर्षित किया है। महिला बाइकिंग स्कूल, क्लब्स, कोचिंग्स में बढ़ती संख्या यह बताती है कि महिलाएं अधिक संख्या में प्रोफेशनल बाइक ट्रेनिंग लेने पहुंच रही है।

वर्षों के बाइक चालने के सफर में कई ऐसे मोड़ आए हैं, जब उन्हें महसूस हुआ कि समाज कोई मौका नहीं छोड़ता है ये बताने का कि महिलाओं को क्या करना है, और क्या नहीं। कुछ मुश्किल मौकों ने प्रियंका को ये भी दिखलाया कि समाज किस तरह से महिलाओं को वापस रसोई का रास्ता दिखलाने में सफल हो जाता है।

बाइक चला‌ना सपनों की उड़ान जैसा

प्रियंका प्रसाद, बेंगलुरु में कार्यरत हैं और वे साल 2016 से बाइक चला रही हैं। उनकी सबसे लंबी बाइक यात्रा बेंगलुरु से श्रीनगर की रही है। वे कहती है “महिला बाइक चालकों का नाम सुनते जो एक शब्द उनके मन में आता है वो है ‘पंख’। प्रियंका मानती है कि किसी महिला चालक के मन में इतना जूनून होना चाहिए कि वो इस धारणा को तोड़ने के लिए कदम उठा पाए कि सिर्फ लड़के ही बाइक चलाते हैं। ऐसे तो बाइक चलाना एक कौशल है जो कोई व्यक्ति बाइक के वजन को संभालने पर और  गियर को समझ कर सीखता है। लेकिन जब बात महिलाओं की आती है तो ये एक कौशल मात्र नहीं रहता, कौशल से आगे उनके लिए ये स्वतंत्रता है, जिसके लिए वे लड़ती है और उन्हें साबित करना पड़ता है कि वे ये कर सकती है। प्रियंका के इतने

वर्षों के बाइक चालने के सफर में कई ऐसे मोड़ आए हैं, जब उन्हें महसूस हुआ कि समाज कोई मौका नहीं छोड़ता है ये बताने का कि महिलाओं को क्या करना है, और क्या नहीं। कुछ मुश्किल मौकों ने प्रियंका को ये भी दिखलाया कि समाज किस तरह से महिलाओं को वापस रसोई का रास्ता दिखलाने में सफल हो जाता है। लेकिन महिलाओं को अपने शौक और जूनून में इतना आत्मविश्वास दिखाना होगा कि वे इन तकलीफों से बाहर निकलकर अपने सपनों को उड़ान दे सकें।

क्लिफ़हेंगर राइड से प्रियंका

बाइक चलाना थेरपी जैसा एहसास

प्रियंका के परिवार ने उनके बाइक चलाने के शौक को हमेशा सराहा है। उनके ऑफिस के लोग भी उनकी बाइक ट्रिप की कहानियां सुनने को आतुर रहते हैं। जिस तरह प्रियंका को नई जगहें घूमने का और बाइक चालाने का शौक है, उसी तरह का शौक रखने वाली भावना, जो केरल से हैं और बेंगलुरु में काम करती है, पिछले 6 सालों से बाइक चला रही हैं। जितनी सुविधा उन्हें बाइक चलाने से चलने पर महसूस होती है, उतनी किसी भी अन्य साधन से नहीं मिलती। “बाइक चलाने के निर्णय ने मेरी ज़िंदगी बदल दी, जो अनुभव बाइक से अलग-अलग जगहों पर जाने का होता है, वो बेशक किसी थैरेपी से कम नहीं है”, प्रियंका ने ये साझा किया जब उनसे बाइक चलाने के फायदों के बारे में पूछा गया। वे नई महिला बाइक चालकों को इवेंट्स, वर्कशॉप्स और ट्रेनिंग के माध्यम से मदद करना चाहती हैं। जब उनसे कोई महिला बाइक चालक कुछ सीख पाएंगी या प्रेरणा ले पाएंगी तब उन्हें उनके बाइक चालक होने पर गर्व महसूस होगा।

गांव के लोगों की परवाह किए बिना

बासवा की 21 वर्षीय नमिता सोलंकी पिछले तीन साल से बाइक चला रही है। अक्सर गांव के लोग उसे लड़का ही कहते हैं, क्योंकि वो शर्ट पैन्ट, जीन्स जैसे कपड़े ही पहनती है। वे ये बताती है कि बाइक चलाने से उन्हें आत्मनिर्भर महसूस होता है। इसलिए, कोई उन्हें कुछ भी कहे उन्हें फर्क नहीं पड़ता। नमिता के मामाजी, पुनासा में रहते हैं, जो लगभर 42 किलोमीटर दूर है। तीन साल पहले जब नमिता को बाइक चलाने नहीं आती थी तब उन्हें बस से या किसी और पर निर्भर होकर अपने मामाजी के यहां जाना पड़ता था, “अब मैं खुद ही जब मन करें पुनासा जा सकती हूं। किसी का रस्ता नहीं देखना पड़ता।”

बासवा से नमिता

नमिता यह बताते हुए कहती है कि बाइक चलाते हुए वह प्रकृति के लिए और सतर्क हो गई हैं। रास्तें की हर चीज़ को वह उत्साह से देख पाती हैं। इन महिला बाइक चालकों की कहानियां, आपको हाल ही में रीलीज हुई फिल्म ‘धक-धक’ की याद दिलाएगी, जिसमें चार महिलाएं बाइक लेकर एक लंबी सैर पर निकलती हैं। उन्हें कई दिक्कतों का सामना भी करना पड़ता है, और सब समस्याओं को हल करते हुए वे अपना समय खुद पर खर्च करने निकल पड़ती हैं। 

बाइक चलाना, खुशी और सुविधाओं के साथ महिलाओं के लिए कई चुनौतियां ले कर आती है, जो उनकी यात्रा को सामान्य नहीं बनने देती। प्रियंका प्रसाद बताती है कि लोगों का मानना है कि यदि महिलाएं सारे काम स्वयं करने लगेगी, गाड़ी भी खुद ही चलाएंगी, तो वे शादी नहीं करेंगी। जब भी कोई महिला रोड पर बाइक चलाती है, लोग उसे पलट कर जरूर देखेंगे।

महिलाओं के लिए बाइक चलाने में चुनौतियां

बाइक चलाना, खुशी और सुविधाओं के साथ महिलाओं के लिए कई चुनौतियां ले कर आती है, जो उनकी यात्रा को सामान्य नहीं बनने देती। प्रियंका प्रसाद बताती है कि लोगों का मानना है कि यदि महिलाएं सारे काम स्वयं करने लगेगी, गाड़ी भी खुद ही चलाएंगी, तो वे शादी नहीं करेंगी। जब भी कोई महिला रोड पर बाइक चलाती है, लोग उसे पलट कर जरूर देखेंगे। उनका पलटना ये बताता है कि वे कुछ असामान्य कर रही है क्योंकि जब कोई आदमी बाइक चलाता है, तब तो कोई उन्हें पलट कर नहीं देखता। सुरक्षा महिलाओं के लिए एक बहुत अहम चुनौती है। लंबी बाइक ट्रीप पर एक्सीडेंट से ज्यादा डर महिला होने का लगता है, कि कब कौन क्या कर देगा। बाइक चालकों को लंबे रास्तों में बाथरूम की आवश्यकता भी पड़ती है, और आसानी से साफ़ बाथरूम मिलना कोई चुनौती से कम नहीं। 

समाज की रूढ़िवादी सोच

चेतना सोंगरे अपनी बहन के साथ गांव की एक चाय दुकान के सामने से गुजर रही थी। तभी बाइक बंद हो गयी। चेतना को लगा शायद पेट्रोल खत्म हुआ है। तभी दुकान से किसी व्यक्ति ने मदद की और बाइक में किसी तार की समस्या बताई, उसी दौरान दुकान पर बैठे लड़कों ने कहा- “नहीं चलाते आती बाइक, तो क्यों चलाना है तुमको”, इस बात पर चेतना ने कहा कि वो जल्द ही सीख जाएगी। भावना जिस दिन अपने ड्रायविंग लाइसेंस का टेस्ट देने पहुंची, उस दिन बहुत बारिश हो रही थी। मौसम बिगड़ने से सभी बाइक चालकों को एक छोटे से ग्राउण्ड पर टेस्ट देने को कहा गया। वहीं चेतना को उसी कीचड़ भरी सड़क पर चलाने को कहा गया जहां बाइक चलाना मुश्किल होगा, क्योंकि वो एक महिला थी लेकिन भावना ने एक ही बार में टेस्ट पास करके उनको गलत साबित करके दिखाया। “महिलाओं को हमेशा ये साबित करके दिखाना ही पड़ेगा कि वे ये काम कर सकती है,” भावना ने ये कहते हुए अपनी बात रखी। 

बाइक चलाना ख़ुशी खोजने का प्रयास

महिलाओं को बाइक चलाते समय साड़ी पहनने में दिक्कत हो सकती है। भावना को साड़ी पहनना बहुत पसंद है। पर उनका साड़ी पहनना उन्हें बाइक चलाने से नहीं रोक पाया। जब उन्हें साड़ी पहनकर बाइक चलाना हुआ तो उन्होंने ‘धोती’ पैटर्न में साड़ी पहनकर बाइक चलाई। आमतौर पर पुरुष धोती इस प्रकार से बांधते हैं, जिसे पहनकर वे बाइक के दोनों तरफ पैर दे कर बैठ सकें। या महाराष्ट्र की साड़ी भी इस धोती पैटर्न से पहनी जाती है। “देखनेवालों को अजीब लग सकता है कि लड़की साड़ी में बाइक चला रही है। पर लोगों को तो बाइक पर लड़‌की भी अजीब ही लगती है। भावना ने  ये कहते हुए जोड़ा कि जब तक आप दृढ़ निश्चय ना करें कि आप जो कर रहे है वो गलत नहीं है, तब आप अपनी खुशी के नए तरीके नहीं खोज सकते।  

अपनी बाइक चलाती भावना

ऐसे कई और किस्से होंगे जहां महिलाओं को बाइक चलाने पर असामान्य महसूस कराया गया होगा। महिलाओं का स्कूटर और कार चलाना इतनी समान्यता से देखा जाता है, तो फिर बाइक चालन को असामान्य क्यों माना जा रहा है? “बाइक कोई भेदभाव नहीं करती, भेदभाव तो समाज कर रही है”, प्रियंका ने अपने विचार साझा करते हुए कहा। नमिता, प्रियंका, चेतना, भावना जैसी कई महिला बाइक चालक और लड़कियों को बाइक चलाते हुए देखकर खुशी होगी। हम यही चाहेंगे कि लड़कियां बाइक चलाने को मात्र लड़कों का काम ना समझें। आइए, महिला बाइक राइडिंग को सामान्य बनाने का प्रयास करें।

नोटः लेख में इस्तेमाल की गई सारी तस्वीरें श्रद्धा जैन ने उपलब्ध करवाई हैं।

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