संस्कृतिकिताबें शालडुंगरी का घायल सपना: पितृसत्ता, पूंजीवाद और सत्ता से लड़ती आदिवासी स्त्रियों की कहानी

शालडुंगरी का घायल सपना: पितृसत्ता, पूंजीवाद और सत्ता से लड़ती आदिवासी स्त्रियों की कहानी

लेखक मनोज भक्त सामंती व पूंजीवादी गठजोड़ से बने सत्ता के ठेकेदारों को पहचानते भर नहीं बल्कि अपनी भाषा के आईने में उनका अक्स भी रखते हैं। उनके उस अवसरवादी चलन को दर्ज करते चलते हैं जहां वो संस्कृति और जाति दोनों का  मुनाफा भुनाते हैं। विकास के नाम पर भूमि अधिग्रहण करना सत्ता का पैंतरा कोई नया नहीं है।

मनोज भक्त का उपन्यास  ‘शालडुंगरी का घायल सपना’, धरती की उस हरी-भरी स्वरूप को बचाने के एक घायल सपने की मार्मिक कहानी है। ये उपन्यास हॉकी खेलती लड़कियों और कोच जेमा कुई के संघर्ष की दास्तान है।  पूंजी और सत्ता की इस नव सांस्कृति में कितनी चीखें पैबंद हैं और विकास के नाम पर वे सब घुटती जा रही हैं। नारे लहरों की तरह उठ- गिर रहे थे। नारों के बहाव में लोग अपने तीर धनुष, दऊली या साधारण सी कुल्हाड़ी ऊपर उठा लेते। वे इसे मार-काट के लिए नहीं लाए थे। ये उनके प्रतिवाद व्यक्त करने के साधन थे। ये इनके औजार थे। उन्हें ये उम्मीद नहीं थी कि उन्हें रोकने के लिए पूरी सरकार उतर आएगी। यह साफ बात थी यदि वे अपनी जमीन देने के लिए राजी नहीं हैं, तो राजी नहीं हैं। 

आदिवासी संस्कृति के खत्म होने पर सवाल

अब्राहम मुंडा की शहादत उनकी चेतना है। यह चेतना उलगुलान, हूल से गुजरती हुई वहां तक पहुंच गयी थी जहां सभ्यता से उसकी पहली झड़प हुई थी। वे जानते थे कि विकास का मतलब उनके लिए उजाड़ है। मुख्यमंत्री की तरफ हॉकी लेकर दौड़ती लड़की का दृश्य एक चेतना भर नहीं है। धरती और मनुष्य को बचाने की, एक प्रतिरोध की आदिम परम्परा का उद्घोष भी है। ‘शालडुंगरी का घायल सपना’ जल, जमीन और जंगल की लूट ही नहीं, उस पूरी संस्कृति के लगातार विध्वंस का दस्तावेज भी है।

मुख्यमंत्री की तरफ हॉकी लेकर दौड़ती लड़की का दृश्य एक चेतना भर नहीं है। धरती और मनुष्य को बचाने की, एक प्रतिरोध की आदिम परम्परा का उद्घोष भी है। ‘शालडुंगरी का घायल सपना’ जल, जमीन और जंगल की लूट ही नहीं, उस पूरी संस्कृति के लगातार विध्वंस का दस्तावेज भी है।

हॉकी की खिलाड़ी विद्या का अपहरण हो जाता है। विद्या के भाई की मॉब लिन्चिंग में हत्या हो जाती है। आदिवासी लड़की विद्या हॉकी की बहुत योग्य खिलाड़ी है। उसकी कोच जेमा कुई को विद्या पर हमेशा भरोसा रहता है। लेकिन एक दिन विद्या भी गायब हो जाती है। उपन्यास में बार-बार लड़कियों के गायब होने की बात आती है। हॉकी की कोच जेमा कुई की छः साल की बेटी मानी भी गायब हो गई है। आदिवासी बच्चियों को कौन गायब करता है। इस सवाल का जवाब ऐसा नहीं था कि उस क्षेत्र में कोई जानता नहीं है। लेकिन सत्ता की हनक ऐसी है कि सब अंजान बने हुए थे।

क्यों और कैसे गायब होती है आदिवासी बच्चियां

दिन-दहाड़े ही विद्या को उसके घर से उठा लिया गया था। बबन दूबे को मुहल्ले के सारे लोगों ने देखा था। लेकिन बबन दुबे के डर से कोई गवाही नहीं देता। एफआईआर के पहले जेमा ऊहापोह में थी कि विद्या के अपहरण के सवाल को वो उठाए या नहीं। फिर उसे लगा कि यह विद्या की ही नहीं उसकी मानी की भी लड़ाई है। सड़क-जाम के समर्थन में उतरी भीड़ को वो भूली नहीं थी। इरफ़ान उस दिन विद्या और उसके पिता को आगाह करने आ रहा था। मगर वो ऐसा नहीं कर पाया। उपन्यास ‘शालडुंगरी का घायल सपना’ पढ़ते हुए बिहार के मुजफ्फरपुर के शेल्टर होम की बच्चियों के यौन शोषण की भयावह घटना याद आ जाती है। जेमा कुई जैसी स्त्रियाँ जब इसके खिलाफ आवाज उठाती हैं, तो उनकी आवाज सत्ता कुचल देती है। मानी की खोज में जिम और तुरम यहां-वहां भटक रहे होते हैं। उन्हें एक ऐसी गिरोह के बारे में पता चलता है, जो बच्चियों को उनके परिवार से खरीद कर ले जाता था।

दिन-दहाड़े ही विद्या को उसके घर से उठा लिया गया था। बबन दूबे को मुहल्ले के सारे लोगों ने देखा था। लेकिन बबन दुबे के डर से कोई गवाही नहीं देता। एफआईआर के पहले जेमा ऊहापोह में थी कि विद्या के अपहरण के सवाल को वो उठाए या नहीं। फिर उसे लगा कि यह विद्या की ही नहीं उसकी मानी की भी लड़ाई है।

उपन्यास में बच्चे अपनी आपबीती सुनाते हैं। बच्चों की यातना भयावह है। लेकिन अद्भुत बात है सब मुक्ति के लिए विकल है और जीवन जीना चाहते हैं। हर बच्चे के अंदर पीड़ा का अथाह कुंआ है। हंसी का सूखा हुआ पेड़ है, गुस्से की बंद ज्वालामुखी है। बच्चों की तस्करी को लेकर डॉक्टर लिली तिर्की कहती हैं कि बच्चों की तस्करी संगठित तंत्र के जरिये होती है। लिंग, वर्ण, वर्ग और रंग की अथाह खाइ ने हमारी संवेदना को भोथरा कर दिया है। हम बच्चों का शोषण करते हैं जिसमें खरीद और बिक्री दोनों शामिल है। यह भयानक अपराध है। पर लोग चुप हैं। जिस समाज में यह मौजूद है वहाँ की सत्ता और संस्कार कटघरे में है। 

सत्ता के खिलाफ आवज उठाने पर दबाव

तस्वीर साभार: फेमिनिज़म इन इंडिया

हॉकी कोच जेमा कुई गायब होती लड़कियों को बचाना चाहती है। लेकिन स्टील प्लांट की अनुशासनिक कमेटी जेमा के खिलाफ ही जाँच बैठा देती है। कमेटी में जेमा कुई से उसके निजी जीवन को लेकर सवाल पूछे जाते हैं। स्त्री के निजी जीवन को लेकर समाज हमेशा उसे अपने दायरे में देखना चाहता है। अपने जीवन का दुख कहते हुए जेमा कहती हैं कि हमारे पास विद्या है। हमें उसे बचाना होगा। यहां से स्त्री संघर्ष की कड़ियां वहां जुड़ती हैं जहां हम सोचते हैं कि हमने अपने बिरादराना संघर्ष में अपनी तरफ से क्या जोड़ा। जेमा बेटी के गर्भ में आने के बाद हॉकी खेलना छोड़ देती हैं क्योंकि तब खेल नहीं सकती थीं। बच्ची के अपहरण के बाद जेमा ने कभी हॉकी स्टिक को हाथ नहीं लगाया। तब से जेमा लड़कियों को हॉकी खेलना ही सिखाती रहीं।

अपने जीवन का दुख कहते हुए जेमा कहती हैं कि हमारे पास विद्या है। हमें उसे बचाना होगा। यहां से स्त्री संघर्ष की कड़ियां वहां जुड़ती हैं जहां हम सोचते हैं कि हमने अपने बिरादराना संघर्ष में अपनी तरफ से क्या जोड़ा।

जल, जंगल जमीन की लूट और विकास का दावा

लेखक मनोज भक्त सामंती व पूंजीवादी गठजोड़ से बने सत्ता के ठेकेदारों को पहचानते भर नहीं बल्कि अपनी भाषा के आईने में उनका अक्स भी रखते हैं। उनके उस अवसरवादी चलन को दर्ज करते चलते हैं जहां वो संस्कृति और जाति दोनों का  मुनाफा भुनाते हैं। विकास के नाम पर भूमि अधिग्रहण करना सत्ता का पैंतरा कोई नया नहीं है। पक्ष-विपक्ष, मीडिया, अधिकारी सब इस लूट में भागीदारी करते हैं। एक आदिम सांस्कृतिक चेतना को कुचलने के लिए नीतियां बनती हैं कमेटियां बिठाई जाती हैं। लूट को विकास कहना सत्ता का ढोंग चलता रहता है। उपन्यास में सम्पादक खगेंद्र प्रभात की बात पर सब सहमत हुए कि राज्य के विशिष्ट भूमि कानून को हटाना होगा। या कुछ किंतु-परंतु जोड़कर उन्हें अपाहिज करना होगा। जमीन मालिकों को इन कानून की वजह से खरीद-बिक्री में पाबंदियों का सामना करना पड़ता है। खरीद-बिक्री को सुगम किए बगैर विकास को कोरी कल्पना ही समझो। इसे ठीक करना होगा।

क्या है आदिवासियों के जमीन के समस्या का हल

पूंजी की इस लूट में मुख्यमंत्री भगवत बाबू कर्णधार बनते हैं। पुराने विशेष भू कानून पेंच से राज्य को मुक्ति दिलाकर एक ऐतिहासिक जिम्मेदारी उठाते हैं। आदिवासियों को आंदोलन की नहीं, विकास की जरूरत है। राज्य को समस्याओं का एक बड़ा पहाड़ ही समझो। इसमें कोई शक नहीं कि राज्य में सबसे बड़ी बाधा गुजरे जमाने के जमीन कानून ही है। यह विकास की राह रोक हुए है। आदिवासी क्षेत्र का भूमि अधिग्रहण करने के लिए सत्ता एकदम से कमर कस चुकी है। लेकिन आदिवासी सरकार के खिलाफ आंदोलन लगातार चला रहे हैं। ऐसे में विद्या और अन्य लड़कियों का गायब होना भी आंदोलन का कारण बनता है। मैं जानता हूं कि ताकत का इस्तेमाल कर हम उन गांवों को उजाड़ सकते हैं। मैंने अध्ययन किया है आदिवासी जमीन की एक टुकड़ी किसी दूसरे समुदाय को देना नहीं चाहते। यह भी सच है कि बड़ा विस्थापन ही विकास और सफलता का मानक बन चुका है।

लेखक मनोज भक्त सामंती व पूंजीवादी गठजोड़ से बने सत्ता के ठेकेदारों को पहचानते भर नहीं बल्कि अपनी भाषा के आईने में उनका अक्स भी रखते हैं। उनके उस अवसरवादी चलन को दर्ज करते चलते हैं जहां वो संस्कृति और जाति दोनों का  मुनाफा भुनाते हैं। विकास के नाम पर भूमि अधिग्रहण करना सत्ता का पैंतरा कोई नया नहीं है।

आदिवासियों की लड़ाई और सरकार की अनदेखी  

उपन्यास ‘शालडुंगरी का घायल सपना’ के आखिरी दृश्य एक दृश्य पाठक को बेचैनी और रोमांच से भर देते हैं। शालडुंगरी में अर्था हेडक्वार्टर प्रोजेक्ट का भूमि-पूजन  का मंत्रोच्चार शहर में गूंज रहा है। आदिवासी आंदोलनकारियों के साथ जेमा व हॉकी टीम की लड़कियाँ  वहां पहुँच चुकी है। उनपर लाठियां बरसाई जा रही है। आंसू गैस के गोले छोड़े जा रहे हैं। लेकिन वे पीछे नहीं हट रहे हैं। घायल आदिवासी आंदोलनकारी काफी पीछे रह गए थे। पुलिस की गोली एक आदिवासी बच्चे को लगती है। हॉस्पिटल में जेमा कुई को महिला कॉन्स्टेबल अखबार देती है। अखबार की खबर में शालडुंगरी के मैदान में मुख्यमंत्री पर हमले की निंदा की गयी थी। जेमा कुई  राजद्रोह और कई आपराधिक आरोप में गिरफ्तार हैं। मिलने आयी अलका रानी अखबार का पृष्ठ पलटती हैं। आखिरी पृष्ठ पर विद्या की तस्वीर छपी है। अलका रानी ने जेमा का हाथ पकड़कर कहा बबन दुबे को चकमा देकर विद्या भाग निकली है। हम उसे तलाश रहे हैं। जेमा की आँखें बंद हो रही हैं। वह आधे नींद में सपना देखती है कि सारी लड़कियां हॉकी खेल रही हैं। देखते- देखते कई टीमें उसकी टीम में शामिल हो गई हैं। गोल पोस्ट तो बहुत दूर है लेकिन बहुत साफ दिख रहा है।

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