विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने हाल ही में ‘फेयर शेयर फॉर हेल्थ एंड केयर: जेंडर एंड दा अंडरवैल्यूएशन ऑफ़ हेल्थ एंड केयर वर्क’ नामक रिपोर्ट जारी की है। वैश्विक स्वास्थ्य सेवा में लैंगिक अंतर को संबोधित करते हुए इस रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला है कि वैश्विक स्वास्थ्य और सामाजिक देखभाल कार्यबल में 67 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं। लेकिन पुरुषों की तुलना में उन्हें औसतन 24 प्रतिशत वेतन अंतर का सामना करना पड़ता है। रिपोर्ट के अनुसार कम या मध्यम आय वाले देशों में महिलाओं की आय 9 ट्रिलियन डॉलर बेहतर हो सकती है यदि उनका वेतन और भुगतान किए गए काम तक पहुंच पुरुषों के बराबर हो।
डब्ल्यूएचओ की यह रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि स्वास्थ्य और देखभाल कार्यों में लैंगिक असमानताएं महिलाओं, स्वास्थ्य प्रणालियों और परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। चिकित्सा विशिष्टताओं पर अभी भी पुरुषों का वर्चस्व है। स्वास्थ क्षेत्र में महिलाओं को अब तक पूर्ण रूप से निर्णय लेने में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। इस क्षेत्र में भी महिलाओं को निचली दर्जे की भूमिकाओं में अधिक प्रतिनिधित्व दिया गया है, जिनमें अधिकांश नर्सें और आया शामिल हैं। नेतृत्वकारी भूमिकाओं में उनका प्रतिनिधित्व कम रखा जाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 35 देशों में डॉक्टरों में 25 प्रतिशत से 60 प्रतिशत महिलाएं हैं। लेकिन नर्सिंग स्टाफ में 30 प्रतिशत से 100 प्रतिशत के बीच महिलाएं हैं।
स्वास्थ्य प्रणालियों में कम निवेश की समस्या
स्वास्थ्य और देखभाल कार्य को अमूमन बहुत कम महत्व दिया गया है। यह अवधारणा हानिकारक लैंगिक मानदंडों के आधार पर देखभाल और प्रजनन श्रम के प्रति व्यापक दृष्टिकोण में दिखाई पड़ता है। स्वास्थ्य प्रणालियों में कम निवेश से स्वास्थ्य और देखभाल कार्य में अवैतनिक श्रम की ओर बदलाव, जो भुगतान किए गए श्रम बाजारों में महिलाओं की भागीदारी को कम करता है और महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण और लैंगिक समानता (सतत विकास लक्ष्य 5) में बाधा के रूप में काम करता है। स्वास्थ्य और देखभाल कार्यों में कम निवेश से स्वास्थ्य प्रणालियों की कोविड-19 महामारी जैसे संकट से लड़ने की क्षमता प्रभावित होती है। यह बढ़ते वैश्विक ‘देखभाल के संकट’ में योगदान होता है। स्वास्थ्य और देखभाल में लंबे समय तक कम निवेश इस समस्या को बढ़ाता है, जिससे देखभाल का वैश्विक संकट पैदा हो जाता है।
लैंगिक समानता को खत्म करने में पहले से ज्यादा समय
महामारी के बाद वैश्विक स्तर पर लैंगिक अंतर को कम करने की दिशा में प्रगति प्रभावित हुई है। 2020 के परिणामों के आधार पर अगले 100 वर्षों तक वैश्विक लिंग अंतर कम होने की उम्मीद नहीं थी। लेकिन 2021 के डब्ल्यूईएफ के हालिया अनुमान के अनुसार दुनिया में अब लैंगिक समानता को खत्म करने में अब 136 साल भी लग सकते हैं। दुनिया भर में महिलाएं और लड़कियां पहले से ही लैंगिक असमानताओं का सामना कर रही हैं। महामारी के बाद बढ़ती आर्थिक प्रतिकूलता, बिगड़ता स्वास्थ्य, अवैतनिक देखभाल के लिए असंगत जिम्मेदारी और लिंग-आधारित हिंसा ने तेजी दिखाई है।
पुरुषों की तुलना में महिलाओं में रोजगार खोने, दूसरों की देखभाल के लिए भुगतान किए गए काम छोड़ने या स्कूल छोड़ने की संभावना अधिक रही। महिलाओं और लड़कियों का महसूस किया गया आर्थिक प्रभाव उनकी कम कमाई और बचत के कारण बढ़ गए थे। संयुक्त रूप से, यह अनुमान लगाया गया है कि महिलाओं को 2020 में कोविड-19 महामारी के कारण 800 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की आय का नुकसान हुआ। इसके अलावा, प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल जैसी प्रमुख सेवाओं से दूर संसाधनों के दोबारा आवंटन से भी महिलाओं का स्वास्थ्य प्रभावित हुआ।
अवैतनिक कामों में लगी महिलाएं
इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में महिलाएं प्रतिदिन औसतन 215 से 352 मिनट अवैतनिक काम पर खर्च करती हैं, जो पुरुषों की तुलना में 1.3 से 6.8 गुना अधिक है। भारत में महिलाएं अपने कुल दैनिक कामकाजी समय का लगभग 73 प्रतिशत अवैतनिक कार्यों पर खर्च करती हैं। पुरुष उनकी तुलना में दैनिक कामकाज में केवल 11 प्रतिशत समय अवैतनिक काम पर बिताते हैं। निम्न और मध्यम आय वाले देशों और हाशिए पर रहने वाले समुदायों की महिलाएं देखभालकर्ता की भूमिका में महत्वपूर्ण मात्रा में अवैतनिक कामों में समय देती हैं।
महिलाएं और लड़कियां परिवार के सदस्यों, दोस्तों और पड़ोसियों के लिए, जो गंभीर रूप से या लंबे समय से बीमार या विकलांग हैं, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच नहीं सकते हैं, बुजुर्ग हैं या अत्यधिक बीमार लोगों के लिए असंतुलित रूप से अवैतनिक, घर पर स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करती हैं। महामारी के दौरान अवैतनिक काम पुरुषों की तुलना में दोगुना हो गया क्योंकि पुरानी बीमारियों की देखभाल को घरों में ही करना पड़ रहा था।
स्वास्थ्य कर्मी कार्यस्थल पर हिंसा का कर रहे हैं सामना
स्वास्थ्य और देखभाल क्षेत्र में कार्यस्थल पर हिंसा एक जरूरी मुद्दा है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुमान बताते हैं कि दुनिया की लगभग एक चौथाई कार्यस्थल हिंसा स्वास्थ्य और देखभाल कार्यस्थलों में होती है। इस रिपोर्ट के अनुसार सभी स्वास्थ्य कर्मियों में से लगभग आधे ने अपने कामकाजी जीवन में हिंसा का अनुभव किया है। हालांकि नर्सिंग और आया जैसे महिला प्रधान स्वास्थ्य और देखभाल व्यवसायों में काम करने वाली महिलाओं को अन्य जगहों के मुक़ाबले काम पर ज्यादा भेदभाव और यौन उत्पीड़न का काम सामना करना पड़ता है। कार्यस्थल पर होने वाली हिंसा महिलाओं को पार्ट टाइम नौकरी करने या नौकरी छोड़ देने पर मजबूर करती है।
कामकाजी महिलाओं की चुनौतियां
हर उद्योग में महिला कर्मचारियों को जेंडर पे गैप का सामना करना पड़ता है। लैंगिक भेदभाव का एक बड़ा कारण है कि कंपनियों में उच्च स्तर पर महिलाओं की संख्या बहुत कम है। शीर्ष पदों पर पुरुषों का वर्चस्व है। इसका मतलब यह है कि ज्यादातर पुरुष ही तय करते हैं कि किसी महिला को कितना भुगतान किया जाएगा। इसके अलावा महिलाओं को सलाहकार और रोल मॉडल कम मिलते हैं। साथ ही, महिलाओं को नेतृत्व की स्थिति में रोल मॉडल और सलाहकार ढूंढने के लिए संघर्ष करना पड़ता है, जिससे कॉर्पोरेट परिदृश्य को नेविगेट करना और उनके करियर को आगे बढ़ाना अधिक कठिन होता है।
शीर्ष प्रबंधन में महिलाओं की कम संख्या ही वेतन में लैंगिक असमानता का मुख्य कारण है। दूसरा समाज में मौजूद पूर्वाग्रह है। अक्सर महिलाओं को कार्यबल में कर्मठ और योग्य नहीं माना जाता है। इसका परिणाम ऊपर जाने के अवसरों की कमी और प्रदर्शन मूल्यांकन के दौरान उचित रूप से विचार नहीं किया जाना है। यह महिलाओं के वेतन और वेतन वृद्धि मांगने के तरीके को भी प्रभावित करता है। कई कामों को महिलाओं को करने ही नहीं दिए जाते क्योंकि इन कामों को करने के लिए उन्हें योग्य नहीं समझा जाता।
समावेशी दृष्टिकोण आवश्यक है
समाज में जेंडर के परिदृश्य में शक्ति और विशेषाधिकार, असमानताएं पैदा करने का काम करते हैं। इसमें लिंग, जाति, वर्ग, प्रवासन की स्थिति, विकलांगता, कार्य क्षमता और धर्म शामिल हैं और परस्पर जुड़ी शक्ति संरचनाएं भी इसी में शामिल हैं। अनुभवों को बेहतर समझने के लिए उन महिलाओं जो भेदभाव के विभिन्न रूपों से सबसे अधिक प्रभावित होती हैं, उन्हें सुनने की जरूरत है ताकि न्यायसंगत निर्णय लिए जा सकें। सतत विकास लक्ष्यों को पाने की ओर बढ़ने के बावजूद दुनिया में लैंगिक अंतर को समाप्त करने में अभी भी असफल है। इससे वैश्विक स्तर पर बहुसंख्यक संकट पहले से और भी जटिल हो गई है।
आर्थिक अनिश्चितता, राजनीतिक अस्थिरता, युद्ध और जलवायु परिवर्तन सभी क्षेत्रों में इसका असर देखने को मिलता है। स्वास्थ्य और देखभाल के क्षेत्र में भी जहां 67 प्रतिशत महिलाएं हैं, व्यापक लैंगिक असमानताएं हैं। दुनिया के कई हिस्सों में महिलाओं को अभी भी पुरुषों के बराबर कार्य का भुगतान नहीं मिलता है। समान काम करने पर भी पुरुषों की तुलना में महिलाएं औसतन 24 प्रतिशत कम कमाती हैं। महिलाओं को अब तक पूर्ण रूप से निर्णय लेने के अधिकार नहीं मिले हैं। देखभाल में लैंगिक अंतर को संबोधित कर, गुणवत्तापूर्ण देखभाल कार्य का समर्थन कर और सभी देखभाल करने वालों और देखभाल प्राप्तकर्ताओं के अधिकारों और भलाई को बनाए रखकर हम लैंगिक असमानता को कम कर सकते हैं।