2011 में हुई जनगणना के अनुसार भारत में 5.6 करोड़ लोगों ने भोजपुरी को अपनी मातृभाषा माना था। आंकड़ों के मुताबिक भोजपुरी भाषा देश में छठे स्थान पर बोले जाने वाली भाषा में से एक है। बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में बोली जाने वाली भोजपुरी अपने परंपरागत गीत, संगीत की वजह से मशहूर है। भोजपुरी लोकगीत बच्चों के जन्म से लेकर, विवाह, फसलों की बुवाई, कटाई, पलायन जैसे कई मुद्दों पर लिखे गए हैं जिनमें लोगों की भावनाएं झलकती है। इनके अलावा कई पर्व-त्योहार जैसे छठ पूजा गीत, फगुआ, चैता इत्यादि भोजपुरी गीत-संगीत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मशहूर है।
मगर आज के समय में भोजपुरी गाने और उनमें फूहड़ता, अश्लीलता बढ़ने के कारण इसे कहीं न कहीं सीमित रूप में देखा जाता है। अब के भोजपुरी गानों में महिलाओं के असहज चित्रण और उनके ऊपर गई टिप्पणियों पर भी बड़ा सवाल उठता है। एक्टर और पॉलिटिशियन रवि किशन भोजपुरी भाषा को उसकी खोई हुई पहचान दिलवाने के लिए लोकसभा में भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए विधेयक भी पेश किया है। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को शामिल किया गया है, जिसमें बिहार से मैथिली भाषा भी शामिल है।
भोजपुरी गाने में जितनी फूहड़ता है, उससे ज्यादा हिंदी और उससे भी कहीं ज्यादा अंग्रेजी गानों में है। मगर भोजपुरी को आज नीची नजरों से देखा जाता है। इसके पीछे मुख्य कारण है भोजपुरी इंडस्ट्री में पैसे की कमी। दरअसल भोजपुरी इंडस्ट्री के पास इतने संसाधन नहीं है कि वह अच्छे कलाकारों से अच्छे गाने बनवा सके, जिस कारण भोजपुरी गानों को ऐसे लोगों से लिखवाया जाता है जो अश्लील शब्दों का इस्तेमाल कर गाने को कम दाम में लिख देते हैं।
क्या भोजपुरी गानों में भाषा हमेशा से समस्याजनक थे
दिल्ली में काम करने वाले सॉफ्टवेयर इंजीनियर उज्जवल त्रिपाठी बिहार से है। उज्जवल बताते हैं, “भोजपुरी गाने में जितनी फूहड़ता है, उससे ज्यादा हिंदी और उससे भी कहीं ज्यादा अंग्रेजी गानों में है। मगर भोजपुरी को आज नीची नजरों से देखा जाता है। इसके पीछे मुख्य कारण है भोजपुरी इंडस्ट्री में पैसे की कमी। दरअसल भोजपुरी इंडस्ट्री के पास इतने संसाधन नहीं है कि वह अच्छे कलाकारों से अच्छे गाने बनवा सके, जिस कारण भोजपुरी गानों को ऐसे लोगों से लिखवाया जाता है जो अश्लील शब्दों का इस्तेमाल कर गाने को कम दाम में लिख देते हैं। मगर ऐसा हाल भोजपुरी के साथ हमेशा से नहीं था। शुरुआत में भोजपुरी इंडस्ट्री में काफी अच्छा और असरदार काम हो रहा था।”
भोजपुरी गानों में बदलती भाषा और लोक लुभाने की चाहत
द हिंदू को दिए गए इंटरव्यू में भोजपुरी लोक गायिका नेहा सिंह राठौड़ ने कहा था कि भोजपुरी बोलने वाले लोग दशकों से इस भाषा को अधिकारिक दर्जा मिलने का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन जब तक इस भाषा से शिक्षा देने की शुरुआत नहीं होगी, नौकरियों के लिए प्रवेश परीक्षा नहीं ली जाएगी, तब तक भोजपुरी को वह पहचान नहीं मिल पाएगी। गानों में अश्लीलता को लेकर बिहार के जमुई की रहने वाली जूही राज कहती हैं, “भोजपुरी गाने काफी बिट्स के साथ बनाए जाते हैं। इन बिट्स के कारण भोजपुरी गाने हर एक शादी-पार्टी में बाजाए जाते हैं, जिससे यह फेमस हो रहे हैं। इनके अलावा आज की जनरेशन उन सभी शब्दों को इस्तेमाल करने में काफी सहज महसूस करती है, जिसे हमारे बड़े- बुजुर्ग पहले प्रतिबंधित मानते थे। इन गानों के बढ़ता बढ़ाने और इन्हें प्रचारित करने में सोशल मीडिया का सबसे बड़ा हाथ है। सोशल मीडिया स्क्रोल करते हुए आजकल छोटे से छोटे बच्चे को भी भोजपुरी गानों की रील दिख जाती है। कई बार कल्चर को रिप्रेजेंट करने के लिए भोजपुरी गाने बनाए जाते हैं, जिन्हें बेचने के लिए फुहड़़ शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है।”
गानों में साफ तौर पर अश्लीलता परोसी जाती है। इन गानों पर सिर्फ लड़के ही नहीं बल्कि लड़कियां भी खूब नाचती है। अमूमन इन गानों को वैसे लोगों से प्रचार कराया जाता है जो कम पढ़े-लिखे होते हैं। बाहर के शहरों में भोजपुरी फूहड़ गाने सभी जगह नहीं बजते है। इन गानों की पापुलैरिटी का एक कारण यह भी है कि इन्हें बजाने से रोकने वाला कोई नहीं।
समृद्ध भाषा के बावजूद गानों में फूहड़ता
एक ओर जहां केंद्र सरकार ने बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा देने के लिए शुरुआत की है, जिसमें 52 भाषाओं को शामिल किया गया है। वहीं भोजपुरी को जगह नहीं दी गई। भोजपुरी गानों में पहले जहां लोकगीतों, पारंपरिक धुनों और सांस्कृतिक मूल्यों पर आधारित गीतों का बोलबाला था, वहीं अब कई गानों में अपमानजनक और अश्लील शब्दों का धड़ल्ले से उपयोग हो रहा है। पटना में रहकर पढ़ाई कर रही अनामिका मेहता भोजपुरी गाने और उसमें इस्तेमाल होने वाले शब्दों पर बताती हैं, “हमारे हॉस्टल में जब भी कोई पार्टी होती है, तो उसमें भोजपुरी गाने जरूर बजाए जाते हैं। ऐसे गानों की पिच हाई होती है और यह माहौल को भड़किला बना देते हैं। बोल अश्लील होने पर अगर कोई इन गानों को बंद करने के लिए कहता है, तो उसे भोजपुरी से प्यार नहीं… अपनी भाषा और अपने गानों की इज्जत नहीं… जैसी चीजें कहीं जाती हैं।”
वह आगे कहती हैं, “गानों में साफ तौर पर अश्लीलता परोसी जाती है। इन गानों पर सिर्फ लड़के ही नहीं बल्कि लड़कियां भी खूब नाचती है। अमूमन इन गानों को वैसे लोगों से प्रचार कराया जाता है जो कम पढ़े-लिखे होते हैं। बाहर के शहरों में भोजपुरी फूहड़ गाने सभी जगह नहीं बजते है। इन गानों की पापुलैरिटी का एक कारण यह भी है कि इन्हें बजाने से रोकने वाला कोई नहीं। अगर किसी चीज का विरोध झुंड में किया जाए तो वह ज्यादा साकार साबित होता है।” 2017 में मिड डे में छपी ‘पीपल लिंग्विस्टिक्स सर्वे ऑफ़ इंडिया’ के 11वें संस्करण के मुताबिक भोजपुरी भाषा में सबसे ज्यादा रुझान देखा गया है। भोजपुरी ने समताली (उड़ीसा), मिजो (मिजोरम) और अन्य भारतीय भाषाओं को पीछे छोड़ दिया।
आज युवाओं को फुहड़ कंटेंट ज्यादा पसंद आते हैं। भोजपुरी गानों में कई बार जातिगत वर्चस्वता की बात भी की जाती है जैसे बबुआन, भूमिहार इत्यादि। इनके अलावा अब भोजपुरी गानों में हथियारों का प्रदर्शन किया जाता है।”
भोजपुरी भाषियों के लिए गानों में फूहड़ता बनती समस्या
दिल्ली के रोहिणी में रहने वाली दीप्ति सहाय हाउसवाइफ हैं। शादी के बाद पति के साथ रहने के लिए उन्हें दिल्ली आना पड़ा। उन्हें यहां बिहारी होने के नाते काफ़ी कुछ सहना पड़ा। दीप्ति कहती हैं, “मेरी शादी के बाद मुझे यहां के सोफिस्टिकेटेड माहौल में ढलने में काफी वक्त लग गया। बिहार से आने के बाद मेरे बाल कमर से नीचे तक थे, मेरे भाषा में बिहारिपन झलकता था। परंपरा के अनुसार हर एक गीत मुझे आते थे। दिल्ली के अपार्टमेंट की कई महिलाओं ने इसे नोटिस करना शुरू किया। शुरुआत में उन्होंने मेरे लिए देहाती, अनपढ़ और गरीब जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। आज भी मुझे बिहारी बहु के नाम से आस-पास में जानते हैं।”
भोजपुरी गानों में स्त्रीद्वेषी भाषा और जातिगत वर्चस्वता
भोजपुरी गाने को लेकर दिप्ती आगे कहती हैं, “मेरे भोजपुरी गीत-संगीत को अपने साथ संजोकर रखती हूं। कोशिश करती हूं कि इसे अपने स्तर पर पहचान दिलाऊँ। मगर भोजपुरी फूहड़ गाने और अश्लीलता ने कई बार मेरी मातृभाषा पर दाग लगाया है।” पिछले दिनों भोजपुरी भाषा की समृद्धता की बात कहते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बिहार के लोकगीत, संगीत और परंपरा की तारीफ की थी। पटना के मोकामा में रहने वाले भव्य किशोर भोजपुरी गाने सुनना पसंद करते हैं। भोजपुरी गाने को लेकर वह बताते हैं, “भोजपुरी में पहले कई पारंपरिक गीत आते थे, हर मौसम, त्योहार और दिन के हिसाब से गाने बनते थे। आज भी बड़े-बुजुर्गों को ऐसे भोजपुरी गाने आते हैं जो अच्छे हैं और परंपरा को दर्शाते हैं। मगर आज युवाओं को फुहड़ कंटेंट ज्यादा पसंद आते हैं। भोजपुरी गानों में कई बार जातिगत वर्चस्वता की बात भी की जाती है जैसे बबुआन, भूमिहार इत्यादि। इनके अलावा अब भोजपुरी गानों में हथियारों का प्रदर्शन किया जाता है।”
मेरे घर में होली, छठ, दशहरा जैसे मौकों पर भोजपुरी गाने बजाए जाते हैं। मैं कभी घर जाती हूं तो भी भोजपुरी फुहड़ गाने नहीं बजाती।
भोजपुरी गानों की विविधता और समृद्धि
लोकसंगीत बिहार के संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है। बिहार से बाहर रहने वाले बिहारी भोजपुरी पारंपरिक गानों को आज भी सुनना पसंद करते हैं। हालांकि भोजपुरी में महिलाओं उन गीतों की समृद्ध परंपरा है, जहां शादियों गालियों वाले गीत गाए जाते हैं। पिछले साल राज्य विधान सभा में भोजपुरी अश्लील गीतों का मुद्दा गुंजा था, जहां भोजपुरी अश्लील गानों पर रोक लगाने के लिए नियामक प्राधिकरण के गठन की मांग रखी गई थी। आज भी बिहार में रामलीला, नौटंकी, रंगमंच मशहूर है। भिखारी ठाकुर के गीत, नाटक मंचन बड़े स्तर पर आयोजित होते हैं।
जिस समय ठाकुर ने समाज में होने वाली कुरीतियों और उन पर प्रहार करने वाले गीतों और नाटकों का मंचन किया, उस समय देश में म्यूजिक इंडस्ट्री में इन मुद्दों को जगह नहीं मिली थी। आज भी हिन्दी गानों में महिलाओं और समाज के कई अहम मुद्दे नदारद हैं। बिहार की रहने वाली अदिति सिन्हा पश्चिम बंगाल से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की हैं। वह कहती हैं, “मेरी रूममेट मुझसे ज्यादा भोजपुरी गाने सुनती है, वह पश्चिम बंगाल की ही है। उसने बताया कि गाने के बोल समझ नहीं आते मगर यह डांस वाली वाइब देते हैं, जिस कारण वह इसे सुनती है। मेरे घर में होली, छठ, दशहरा जैसे मौकों पर भोजपुरी गाने बजाए जाते हैं। मैं कभी घर जाती हूं तो भी भोजपुरी फुहड़ गाने नहीं बजाती।”
मेरे भोजपुरी गीत-संगीत को अपने साथ संजोकर रखती हूं। कोशिश करती हूं कि इसे अपने स्तर पर पहचान दिलाऊँ। मगर भोजपुरी फूहड़ गाने और अश्लीलता ने कई बार मेरी मातृभाषा पर दाग लगाया है।”
सिनेमा का बाजार बहुत व्यापक है जो समय अनुसार बदलता रहता है। सिनेमा में बदलाव के साथ गानों में भी बड़े स्तर पर बदलाव देखा जाता है। भोजपुरी गानों में दर्शकों को आकर्षित करने के लिए महिलाओं को आब्जेक्टिफाइ किया जाता है। भोजपुरी सिनेमा और गाना समाज में किसी तरह का छाप नहीं छोड़ रही, जिस कारण आज लोग इन्हें देखने से कतराते हैं। भोजपुरी की मिठास में कई फिल्मी गानों में पसंद किए जाते हैं। मगर फूहड़ गानों को हाय बिट्स के साथ तैयार कर भोजपुरी की असली पहचान को छुपाने की कोशिश हो रही है।